बचत में सरताज, निवेश में फिसड्डी!

देश की अर्थव्यवस्था या शेयर बाजार की हालत में कोई खास मौलिक बदलाव नहीं आया है। फिर भी बाजार की दशा-दिशा दर्शानेवाला सेंसेक्स 15,900 के निचले स्तर से उठकर 17,805 पर जा पहुंचा। अभी की स्थितियों में यह वाकई कमाल की बात है।

यूरोप की हालत पर खूब मगजमारी हो रही है। वहां के ऋण-संकट को वैश्विक बाजार की कमजोरी का खास कारण बताया जा रहा है। इसलिए यूरोप की संकट-मुक्ति की हल्की-सी आभा ने पूरे माहौल में रौनक भर दी। अतिशय निराशावाद से निकलकर उत्साह व तेजी का सिलसिला शुरू हो गया। लेकिन यह चमत्कार मूल्यवान स्टॉक्स की खरीद के बजाय शॉर्ट कवरिंग के चलते हुआ है। यूरोप के बारे में हम पहले भी कह चुके हैं कि उसकी हालत बीआईएफआर के हवाले कर दी जानेवाली बीमार कंपनियों या कसाई को बेच दिए जानेवाले जानवर जैसी हो गई है। इसलिए मामूली-सा सुधार भी जबरदस्त चहक का सबब बन जाता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत सारे नकारात्मक कारक हैं। विनिवेश का न हो पाना, मुद्रास्फीति की ऊंची दर, ब्याज दरें, इंफ्रास्ट्रक्चर के बढ़ने में दिक्कतें, आदि-इत्यादि। फिर भी हमारी राय है कि बाजार में रुझान ऊपर का है। कमोडिटी से जुड़े स्टॉक्स की बात करें तो हम अब भी तेजी के बाजार में हैं। इसलिए जितनी भी गिरावट आती है, वह महज तात्कालिक तौर पर दम भरना या करेक्शन है। हमारा मानना है कि बाजार में कमोडिटी आधारित तेजी का दौर 2015 से पहले नहीं खत्म होगा। इसलिए 2015 से पहले मंदी की धारणा पालने का कोई तुक नहीं है।

अभी बाजार में निवेश का जैसा पैटर्न है और एफआईआई, डीआईआई व एचएनआई के पास जितना कैश है, वो साफ दिखाता है कि इस समय बाजार में निवेश जितना होना चाहिए, उससे बहुत ही कम है और यह बाजार की गिरावट का मुख्य कारण है। दूसरा कारण यह है कि पश्चिमी बाजारों की तुलना में हमारे इक्विटी बाजार की संरचना दुरुस्त नहीं है। बाजार व्यापक भागीदारी के बजाय कुछ हाथों में सिमटा हुआ है। इसलिए हम इधर या उधर, दोनों ही सूरत में अति कर देते हैं जो जबरदस्त वोलैटिलिटी पैदा कर देती है। हमारा मानना है कि 129 साल तक कामयाब रहा बदला सिस्टम डेरिवेटिव सौदों की मौजूदा प्रणाली से कहीं बेहतर था। अभी तो फ्यूचर्स व ऑप्शंस में निवेशकों व ट्रेडरों को आखिरी मौके पर अंधी गली में फंसाकर लूट लिया जाता है।

स्टैंडर्ड एंड पुअर्स के डाउनग्रेड से पहले अमेरिकी बाजार (डाउ जोंस सूंचकांक) 12,500 पर था। उसके बाद 10,400 तक नीचे जाने के बाद फिलहाल 12,300 पर है। ऐसा केवल इसलिए क्योंकि वहां बड़ी सुपरिभाषित व्यवस्था है और रिटेल निवेशकों की व्यापक भागीदारी है। इससे हर तरह के निवेशकों को पर्याप्त सुरक्षा व बचाव मिल जाता है। कृपया ध्यान दें कि अमेरिकी बाजार अपने औसत उच्चतम स्तर से मात्र 200 अंक नीचे है, जबकि वहां की आर्थिक विकास दर का अनुमान 2.8 फीसदी से घटाकर एक फीसदी से नीचे कर दिया गया है।

दूसरी तरफ भारत की विकास दर का संशोधित अनुमान अब भी 7.6 फीसदी है। फिर भी हम शिखर से 12 फीसदी नीचे चल रहे हैं। ऐसा दुनिया के किसी हिस्से में हो नहीं सकता। बाजार के माफिक सिस्टम बना दीजिए। फिर देखिए कि भारत की ताकत कैसे उभरकर सामने आती है। सोचिए तो सही कि भारत में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के अनुपात में बचत की दर दुनिया में सबसे ज्यादा है, जबकि इस बचत से होनेवाला प्रति व्यक्ति पूंजी निवेश की दर दुनिया में सबसे कम है।

खैर, संवत 2068 की शुरुआत बड़े ही संभावनामय अंदाज में हुई है। टेक्निकल एनालिस्ट तक मानते हैं कि भारतीय बाजार में सेंसेक्स के 17,200 के स्तर पर जबरदस्त ब्रेकआउट है। इसलिए मेरी राय में, जब तक सेंसेक्स 17,200 के ऊपर ट्रेड करता है, तब तक बाजार के आगे बढ़ते जाने की भरपूर गुंजाइश है। शॉर्ट कवरिंग और नई लॉन्ग पोजिशन बाजार को अगले कुछ हफ्तों में 18,400 तक ले जा सकती हैं। हमने पहले भी कहा कि तेजी के माहौल में पलीता तभी लग सकता है जब स्टैंडर्ड एंड पुअर्स जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी भारत को डाउनग्रेड कर दे।

अभी तक इन रेटिंग एजेंसियों का रिकॉर्ड यही रहा है कि वे बिना किसी ठोस वजह के डाउनग्रेड कर सकती हैं। उन्होंने पहले अमेरिका को डाउनग्रेड किया। फिर भारत के सबसे बड़े बैंक एसबीआई को गलत वक्त पर गलत वजहों से डाउनग्रेड कर दिया। फिर भी डाउनग्रेड तो डाउनग्रेड ही होता है। इसलिए ऐसी हालत के लिए भी तैयार रहें क्योंकि तब सेंसेक्स गिरकर 16,000 तक जा सकता है। फिलहाल मौजूदा तेजी अब मिड कैप स्टॉक्स का रुख कर रही है। पिछले तीस दिनों में ए ग्रुप के शेयर काफी सुधर चुके हैं। इसलिए अब उनकी जगह आपको अपना ध्यान मिड कैप स्टॉक्स पर लगाना चाहिए।

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