थोड़े में संतोष करना उस जमाने की सोच है जब राजा दिग्विजय करता था और प्रजा के पांव बंधे थे। मजबूरी से उपजी उस सोच को आज ढोते रहने का कोई मतलब नहीं हैं। आज हम सभी राजा हैं तो खुद को बांधे क्यों?
2010-09-04
थोड़े में संतोष करना उस जमाने की सोच है जब राजा दिग्विजय करता था और प्रजा के पांव बंधे थे। मजबूरी से उपजी उस सोच को आज ढोते रहने का कोई मतलब नहीं हैं। आज हम सभी राजा हैं तो खुद को बांधे क्यों?
© 2010-2020 Arthkaam ... {Disclaimer} ... क्योंकि जानकारी ही पैसा है! ... Spreading Financial Freedom