कौआ चले ही क्यों हंस की चाल!

हालांकि बाजार का सबसे बुरा वक्त या कहिए कि राहुकाल बीत चुका है, लेकिन अब भी दो और आसान मोहरे हैं जिनके दम पर चालबाज बाजार में उठापटक पैदा कर सकते हैं। फिलहाल बाजार से ऑपरेटर की अवधारणा ही खत्म होने जा रही है। इसलिए आगे से हमें दो नई अवधारओं पर केंद्रित करने की जरूरत है – एक, मार्केट मेकर (सेबी की इजाजत मिल चुकी है, लेकिन अमल में नहीं) और दो, बाजार के चालबाज या मैनिप्युलेटर।

सबसे ज्यादा एक्शन ए ग्रुप में होता है क्योंकि वहां ट्रेड करने पर कोई बंदिशें नहीं हैं, कोई सर्किट लिमिट नहीं है। बड़े खिलाड़ी हैं और सबसे ऊपर, वहां जोड़तोड़ की भरपूर गुंजाइश है। कोई खिलाड़ी कोई शिकायत नहीं करता क्योंकि सभी बड़ी औकात व कलेजे वाले लोग हैं, नुकसान सह सकते हैं। यह पूरा हलका उन्हीं के लिए बना है। दिक्कत यह है कि रिटेल निवेशक ए ग्रुप में चल रही हलचल से ऐसे लहालोट हो जाते हैं कि बड़े लोगों के इस हलके में कूद पड़ने की गलती कर बैठते हैं। असल में रिटेल निवेशकों के लिए बी ग्रुप और डिलीवरी वाले शेयर ही माफिक हैं। लेकिन वे बड़े खिलाड़ियों की चाल चलना चाहते हैं और फिर जेब में भारी सुराख हो जाने पर रोने लगते हैं।

इस तरह ए ग्रुप का एक्शन और रिटेल निवेशकों की मानसिकता – दो ऐसे मोहरे हैं जिनका इस्तेमाल बाजार में अफरातफरी मचाने के लिए किया जा सकता है। चीन में ब्याज दरों का बढ़ना एफआईआई के अब कोई मायने नहीं रखता क्योंकि वहां जबदस्त व्यापार अधिशेष है। इसलिए ब्याज दरों का बढ़ना स्वाभाविक है। ऐसे में मेरा कहना है कि अभी जहां जो चीज है, उसे वैसी ही वहीं छोड़कर देखा जाए कि अगले दो दिनों में बाजार में क्या होता है। इधर आईबी रिपोर्ट पर गृह मंत्रालय की सतर्कता के बाद मीडिया का टोन बदल गया है और वह रिटेल निवेशकों को हुए नुकसान, बाजार में चली उठापटक और मार्जिन कॉल्स के दबाव वगैरह की बात करने लगा है।

अगर पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी आईबी रिपोर्ट के बारे में सही स्थिति बता देती तो सारा भ्रम व कयासबाजी खत्म हो जाती और निवेशकों का भरोसा वापस लौट आता। बाजार नियामक ही वो आखिरी संस्था है जो इन मसलों से डील करती है। गृह मंत्रालय की यह चिंता एकदम जायज है कि आईबी की रिपोर्ट लीक कैसे हो गई। रिपोर्ट लीक हुई, मीडिया ने उसे ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, जिससे शेयर बाजार के पूंजीकरण, रिटेल निवेशकों की स्थिति और भारत की छवि को गहरा धक्का पहुंचा है। इसलिए इस मसले को हमेशा के लिए सुलटा देने के लिए सेबी की तरफ से साफ-सफाई आनी ही चाहिए। सोमवार संसद के शीत सत्र का आखिरी दिन है। इसलिए अगले सत्र तक अब बाजार का ध्यान बंटाने के लिए कोई हंगामा नहीं होना है।

खैर, मैं बस इतना पक्का करना चाहता हूं कि आपके मन में किसी तरह के डिप्रेशन या अवसाद का भाव न रहे। सब कुछ दुरुस्त हो चुका है। सारे लफड़े सुलझ गए हैं और जिनको निपटाया जाना था, वे अब निपट चुके हैं। मैं गारंटी कर सकता हूं कि बजट के पहले बाजार नई ऊंचाई पकड़ेगा। बाजार में इस तेजी का आकार अंग्रेजी के अक्षर V की तरह होगा। मेरी यह बात आप कट-पेस्ट करके रख लें।

आपको माहौल या धारा के साथ बहना है और चीजों के सुधरने तक इंतजार करना है – ये आपकी मर्जी है। हालांकि मेरा जांचा-परखा ट्रैक रिकॉर्ड है कि संकट के ऐसे हर दौर में मेरी समझ और राय सही रही है और मैं हमेशा आपको ऐसे हालात से उबार कर बाहर ले गया हूं। रीयल्टी सेक्टर में मेरे सबसे बेहतर दांव अब भी सेंचुरी, बॉम्बे डाईंग और एचडीआईएल हैं क्योंकि ये सभी स्टॉक का आरएसआई (रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स) 30 या इससे कम है जो दिखाता है कि इमें भारी शॉर्ट सेल हो रखी है। अगले 30 दिनों में इनमें निश्चित रूप से 30 से 50 फीसदी का बाउंस-बैक होना है।

बता दें कि किसी स्टॉक के आरएसआई से उसके ओवरसोल्ड या ओवरबॉट होने की स्थिति का पता चलता है। इस अनुपात को निकालने का बाकायदा एक फॉर्मूला है। अगर यह अनुपात 50 के ऊपर है तो मतलब वह ओवरबॉट है और उसमें गिरावट का अंदेशा है। अगर यह 50 के नीचे, खासकर 10 के आसपास है तो समझिए कि यह ओवरसोल्ड स्थिति में है और इसमें बढ़त की भरपूर गुंजाइश है।

सभ्य समाज में एक चीज विवेक से भी ज्यादा मूल्यवान होती है और वह है इंसान का चरित्र।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ हैलेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *