साल 2012 का स्वागत हो तेजी से!

खाद्य मुद्रास्फीति शून्य के करीब पहुंच चुकी है। चीन ब्याज दरों में कटौती के मूड में है। भारत भी ब्याज दरों में कटौती से मुंह नहीं मोड़ सकता। इन सारी बातों से यही लगता है कि बाजार को अब पलटकर बढ़ना चाहिए। सेबी ने माना है कि आईपीओ में धांधली होती है और इनमें निवेशकों को भारी नुकसान हुआ है। लेकिन तथ्य यह है कि सबसे ज्यादा नुकसान खुद भारत सरकार को हुआ है क्योंकि आईपीओ में दिनदहाड़े धांधली करनेवालों के चलते किसी भी सार्वजनिक उपक्रम का एफपीओ इस साल नहीं आ सका।

बाजार के गिरने के कारण सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में भारी कमी आई है और निवेशक अब इन कंपनियों के एफपीओ में हाथ नहीं जलाना चाहते। शुक्र है कि अंततः सेबी ने साहसिक पहल की है। उसने धांधली को रोकने के लिए कई कठोर उपाय किए हैं। यह सचमुच काबिल-ए-तारीफ है।

चलिए, आईपीओ का मामला तो रफा-दफा हुआ। अब सेकेंडरी या शेयर बाजार का क्या करना है? एफ एंड ओ सेगमेंट में हो रही धांधली से कैसे निपटा जाएगा? फिजिकल सेटलमेंट के अभाव में एफ एंड ओ में शामिल स्टॉक्स को कृत्रिम रूप से अधिकतम लाभ पाने के लिए नचाया जाता है और इसके लिए पी-नोट्स का जमकर इस्तेमाल किया जाता है। पी-नोट्स में पोजिशन बनाई जाती है, स्टॉक लेंडिंग (बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट) की जाती है और मार डालने तक उस पर हथौड़ा चलाया जाता है। दिसंबर सेटलमेंट में पैंटालून रिटेल और जेट एयरवेज को 40 फीसदी से ज्यादा तोड़ दिया गया, जबकि आईएफसीआई को पहले 35 फीसदी उठाया गया और फिर आखिरी आधे घंटे में तोड़कर बैठा दिया गया। यह एफआईआई के शातिर अंदाज का नमूना है। मुझे लगता है कि इस मोर्चे को दुरुस्त करने के लिए बहुत कुछ किया जाना जरूरी है।

अभी तो हालत यह है कि भारत में एफआईआई जो चाहते हैं, आपके पास उसका पालन करने के अलावा कोई चारा नहीं है। उनको माकूल जवाब देने के लिए न तो पब्लिक या रिटेल निवेशकों की मजबूत भागीदारी है और न ही डीआईआई या म्यूचुअल फंड इतने मजबूत हैं कि बाजार में वाजिब संतुलन बना सकें। म्यूचुअल फंडों को तो वैसे भी मंदी के बाजार में हमेशा विमोचन या रिडेम्प्शन के दबाव से दो-चार होना पड़ता है।

इस तरह सारा खेल एकतरफा है जहां बाजार की मूल्य खोजने की प्रणाली का कोई मतलब नहीं रह गया। यह प्रणाली बस कहने भर को कागज पर मौजूद है। पी-नोट्स से जरिए भारतीय बाजार में हुआ निवेश 14 फीसदी से बढ़कर 19 फीसदी हो गया है और इसमें से 7 फीसदी डेरिवेटिव्स में लगा है। इसका साफ अर्थ यह है कि भले ही वित्त मंत्रालय कहता रहे कि हमारी अर्थव्यवस्था के मूलभूत पहलू मजबूत हैं, पर मंदड़ियों की मार चलती रहेगी। मंदड़ियों का दावा है कि बाजार जनवरी में 10 फीसदी और गिरेगा।

देखिए, असल में क्या होता है। मंदड़ियों का कहना है कि निफ्टी 2500 या इससे भी नीचे जा सकता है। इस पर भी हमारे पास देखने और इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं है। कोई ऐसी वैकल्पिक ताकत नहीं है जो मंदड़ियों (ऑपरेटर + एफआईआई) से लोहा ले सके। टेक्निकल एनालिसिस के चार्टों पर चलनेवाले कुछ विद्वान तो आगामी महीनों में निफ्टी के 1200 पर पहुंचने का अनुमान फेंकने लगे हैं।

मैं यह सब बताकर आपके भीतर डर पैदा करने की कोशिश नहीं कर रहा क्योंकि आप तो पहले से ही डरे हुए हैं और बाजार से हाथ खींच चुके हैं। इस समय कुछ बहुत खांटी किस्म के ट्रेडर ही ट्रेड कर रहे हैं क्योंकि उनको ऐसी लत लग चुकी है कि वे ट्रेडिंग से दूर रह ही नहीं सकते। मैं अब भी खांटी तेजड़िया हूं और अगले चार सालों तक बाजार में बुनियादी तेजी की धारणा रखता हूं जो हमें नए ऑरबिट में पहुंचा देगी। लेकिन हमें हमेशा पता होना चाहिए कि हमारा विरोधी पक्ष क्या कह रहा है।

हम उसको नजरअंदाज नहीं कर सकते क्योंकि पिछले 15 महीनों से वही बाजार पर हावी है। सही ही कहा गया है कि स्टॉक एक्सचेंजों में जो वलण या सेटलमेंट तय करते हैं, वे ही बाजार भी बनाते हैं। आज भी करीब दो बजे तक बाजार बढ़त बरकरार रखे हुए था। लेकिन उसके बाद निफ्टी 0.47 फीसदी गिरकर 4624.30 पर बंद हुआ। नए साल के पहले दिन तेजी की उम्मीद है। निफ्टी को 4705 तक तो पहुंच ही जाना चाहिए।

सच्चाई किसी के मन का धन नहीं है। उसकी स्वतंत्र सत्ता है। जो इस सच को समझते हैं, जीत उन्हीं की होती है।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए अनाम है। वह अंदर की बातें आपके सामने रखता है। लेकिन उसमें बड़बोलापन हो सकता है। आपके निवेश फैसलों के लिए अर्थकाम किसी भी हाल में जिम्मेदार नहीं होगा। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का कॉलम है, जिसे हम यहां आपकी शिक्षा के लिए पेश कर रहे हैं)

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