ऑर्किड केम इत्ता ज्यादा दबा!!

ऑर्किड केमिकल्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड के धंधे में बराबर बरक्कत हो रही है। चालू वित्त वर्ष में जून 2010 की पहली तिमाही में उसका शुद्ध लाभ 172 फीसदी बढ़ा है। इधर कंपनी का शेयर भी पिछले करीब एक महीने से धीरे-धीरे बढ़ रहा है। 30 अगस्त को 187.40 रुपए था। 27 सितंबर तक 213.10 रुपए पर पहुंच गया। लेकिन कल 28 सितंबर को 1.01 फीसदी गिरकर 210.95 रुपए पर बंद हुआ है। शेयर बीएसई (कोड – 534372) और एनएसई (कोड – ORCHIDCHEM) दोनों में लिस्टेड है। ट्रेडरों और निवेशकों की दिलचस्पी लगता है कि अब इस शेयर में घट रही है। बीएसई में इसमें पिछले हफ्ते का औसत कारोबार 21.47 लाख शेयरों का रहा है। लेकिन कल वहां इसके केवल 5.45 लाख शेयरों का कारोबार हुआ। एनएसई में कल इसके 13.4 लाख शेयरों में सौदे हुए, जबकि परसों यह मात्रा 58.68 लाख थी।

खैर, किसी की दिलचस्पी या घटे। हमें फर्क नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि यह बहुत मजबूत कंपनी है और इसके शेयर काफी सस्ते चल रहे हैं। इसका ठीक पिछले बारह महीने (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 54.33 रुपए है। यानी शेयर इस समय मात्र 3.88 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। जबकि सेंसेक्स का पी/ई अनुपात 21 के आसपास हो, तब बाजार में किसी 1250 करोड़ की आय वाली कंपनी का शेयर 4 से कम पी/ई पर चल रहा हो तो उसे सस्ता ही माना जाएगा वह भी तब जब इस तरह की दूसरी कंपनियों में सिप्ला, बायोकॉन और अवेंतिस फार्मा के स्टॉक का पी/ई अनुपात इस समय क्रमशः 23.25, 26.13 और 29.63 चल रहा है। इस लिहाज से ऑर्किड का शेयर इस समय 1000 रुपए से ऊपर होना चाहिए। फिर आखिर इतना ज्यादा दबा क्यों है? उसकी बुक वैल्यू भी ठीकठाक 142.14 रुपए है।

आधिकारिक रूप से ऐसी कोई खबर भी नहीं है जिसके आधार पर कंपनी के शेयर के दबे होने की वजह समझ में आ सके। अभी 11 दिन पहले 18 सितंबर को जरूर इकनॉमिक टाइम्स ने खबर छापी थी कि रैनबैक्सी आर्किड केम में बची अपनी 13.02 फीसदी हिस्सेदारी बेच सकती है। कंपनी ने इसे अफवाह बताते हुए साफ किया था कि चालू वित्त वर्ष में प्रवर्तक कंपनी में अपनी हिस्सेदारी करीब 5 फीसदी बढ़ा चुके हैं। हां, इस बीच सोलरेक्स फार्मा ने जरूर कंपनी में अपनी 8.01 फीसदी (56.39 लाख शेयर) इक्विटी बाजार में बेच दी है।

मार्च 2010 और जून 2010 तक कंपनी में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 26 फीसदी है। दिसंबर 2009 में उनकी हिस्सेदारी 21.17 फीसदी थी। अब प्रवर्तक कह रहे हैं कि उन्होंने 2010-11 में अपना हिस्सा 5 फीसदी और बढ़ा लिया तो यह अब 31 फीसदी के आसपास पहुंच गया होगा। एक दिक्कत यह है कि 30 जून 2010 तक की आधिकारिक सूचना के मुताबिक प्रवर्तकों ने अपने शेयरों में 80.95 फीसदी गिरवी रखे हुए हैं। एफआईआई के पास कंपनी के 4.99 फीसदी और डीआईआई के पास 13.99 फीसदी शेयर हैं।

1994 से उत्पादन शुरू करनेवाली चेन्नई की इस 100 फीसदी निर्यातोन्मुख दवा कंपनी ने कुछ महीने पहले ही अमेरिका की एक कंपनी को खरीदा है। अमेरिका समेत यूरोप, जापान व चीन तक में इसकी मौजूदगी है। कंपनी का पब्लिक इश्यू 1993 में आया था और दस रुपए के शेयर समभाव पर जारी किए गए थे, जबकि लिस्टिंग 80 रुपए के आसपास हुई थी। इसके बाद 1996 में उसका राइट इश्यू 40 रुपए (30 रुपए प्रीमियम) पर आया था। फिलहाल उसकी गिनती देश की बड़ी कंपनियों में होती है। इसलिए इधर-उधर की बातों पर ध्यान न देते हुए हमें इसके शेयर खरीद लेने चाहिए क्योंकि वाकई ये काफी सस्ते में मिल रहे हैं।

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