बढ़ते बाजार में पैसे बनाने का मंत्र

फंडामेंटल जस के तस, फिर भी बाजार खटाखट 1000 अंक ऊपर चला गया! लोगों को अचानक अर्थव्यवस्था व कॉरपोरेट क्षेत्र की मजबूती का इलहाम हो रहा है। लेकिन हम लगातार इस सच से निवेशकों को वाकिफ कराते रहे हैं कि ताकि उनका विश्वास गिरने न पाए। हालांकि हमें यह भी पता है कि निवेशक जो देखते-सुनते हैं, अफवाहों की ताकतवर मशीनरी जैसा उन्हें समझाती है, वे उसी में बह जाते हैं। हर कोई अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और मार्केट मेकर जैसा ज्ञान बघारने लगता है। लेकिन उनकी वास्तविकता उस सड़क चलते आदमी जैसी होती है जो सचिन तेंडुलकर को बैटिंग की सलाह देता है।

अभी तक इस सेटलमेंट में दो ऐसी चीजें हुई हैं जिन्होंने पूरे बाजार का माहौल बदल दिया। एक बजट और दूसरा जापान। इन दोनों ने निवेशकों से वो करा दिया जो बद से बदतल हालात में भी वे कभी नहीं करना चाहते थे। वे बजट के दिन अपनी लांग पोजिशन छोड़कर शॉर्ट सौदे करने लगे। फिर जापान की आपदा आ गई तो बाजार एकदम ओवरसोल्ड हो गया। फिर क्या हुआ, आप जानते ही हैं।

एफआईआई को 1991 से 1998 तक सात सालों तक निवेश करने के बाद 1998 में समझ में आया कि भारत में श्रेष्ठता के आधार पर पैसे बनाना असंभव है। कोई कुछ भी दावा करे, सच यही है कि एफआईआई भारत में अकेले अपने दम पर नोट नहीं बना सकते। यह बात हम यूनिटेक के उदाहरण से साफ समझ सकते हैं।

यूनिटेक ने साल भर पहले क्यूआईपी के जरिए एफआईआई को अपने शेयर 77 रुपए के भाव से बेचे। उसके बाद से यह स्टॉक कभी नहीं चला नहीं। इसकी सीधी-सी वजह है कि निवेशकों ने इसमें भरपूर खरीद कर रखी थी। जिन्होंने इन शेयरों को खरीदा, उन्होंने इसे डाउनग्रेड कर दिया और शेयर गिरता-गिरता 30 रुपए तक चला गया। इसकी नई पारी तब शुरू हुई जब सभी बड़े निवेशक इससे निकल चुके थे। इन फंडों ने फिर से मोर्चा संभाल लिया और यूनिटेक को अपग्रेड करने का सिलसिला चल निकला। यह है कि भारतीय बाजार के काम करने का तौर-तरीका।

खैर, निफ्टी अब 5700 तक पहुंचता दिख रहा है जिसके बारे में हमारे अलावा किसी ने भी अनुमान नहीं लगाया था। अब आगे क्या होगा? बाजार के धुरंधर कह रहे हैं कि सब 31 मार्च का प्रताप है क्योंकि म्यूचुअल फंडों को अपना एनएवी (शुद्ध आस्ति मूल्य) मैनेज करना है। जापान के हादसे के बाद बाजार में एसएमएस चलाया गया था कि निफ्टी 1000 अंक गिर जाएगा। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

अब फंडामेंटल्स पर लौटा जाए। बाजार में धुंआधार खरीद करनेवाले एक प्रमुख एफआईआई ने रिपोर्ट निकाली है कि भारत का जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वित्त वर्ष 2011-12 में घटकर 7.7 फीसदी पर आ जाएगा, जबकि हमारे वित्त मंत्री 9 फीसदी विकास दर की बात कहे जा रहे हैं। दिक्कत यह है कि हमारे यहां एक साथ डाउनग्रेड करने और खुद खरीदने भी जाने के बारे में कोई पूछताछ नहीं होती। इस बाबत कोई आचार-संहिता नहीं है, जबकि विदेश में बाजार का कोई खिलाड़ी ऐसा नहीं सकता। फिर भी हमारे निवेशक पूरी तरह सुरक्षित हैं तो इसलिए कि वे काफी शिक्षित हैं और इस तरह के डाउनग्रेड का मतलब बखूबी समझते हैं।

हम बराबर कहते रहे हैं कि वित्त मंत्री के पास ऐसी सूचनाएं हैं जिनके बारे में हम सोच भी नहीं सकते। 9 फीसदी विकास दर के दावे का ठोस आधार उनके पास है। हमें जीडीपी के दावे को ठुकराने की कोई वजह नहीं दिखती। हम पहले बता चुके हैं कि राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.6 फीसदी तक सीमित रखने का लक्ष्य कैसे हासिल किया जाएगा। अब वित्त मंत्री ने यह संकेत तक दिया है कि अगले वित्त वर्ष 2012-13 में यह 2.5 फीसदी तक आ सकता है। हम मानते हैं कि ऐसा भी होकर रहेगा। बता दें कि सरकार ने प्रतिरक्षा मंत्रालय से गुजारिश की है कि वह 85,000 करोड़ रुपए का स्पेक्ट्रम खाली कर दे। जाहिर है कि सरकार इसे बेचकर पूरी रकम जुटा सकती है।

सुधारों की बात करें तो भ्रष्टाचार के मसले से सरकार कड़ाई से निपट रही है। सरकारी दफ्तरों और अफसरों पर छापे पड़ रहे हैं। इससे प्रशासन में ज्यादा अनुशासन आएगा और भ्रष्टाचार में कम से कम 50 फीसदी की कमी आएगी। मशीनरी में ऑटोमेशन किया जा रहा है जो हमारे आईटी सेक्टर के लिए अच्छा है क्योंकि इससे वैश्विक मांग की जगह घरेलू मांग ले लेगी। साथ ही इससे लालफीताशाही में काफी कमी आएगी।

जवाबदेही व निगरानी बढ़ने से ब्रोकरों के तमाम गलत-सलत काम रुकने लगे हैं। एक्सचेंजों को कहा गया है कि वे 1 अप्रैल 2011 से बदले गए सौदों के सभी कोड की जानकारी आयकर विभाग को दें। इससे लाभ ट्रांसफर करने का काम बेहद कठिन हो जाएगा। कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय ने भी अधिसूचना जारी कर दी है कि कंपनियों या उनके निदेशकों के अगर समान पते हों तो उन्हें एक साथ रखकर मिलाया जाए ताकि पता चल सके कि आपस में संबद्ध कंपनियां कौन-सी हैं। इस तरह अगर दस कंपनियों के समान पते हैं अथवा दो या इससे अधिक कंपनियों के दस निदेशकों के समान पते हैं तो उन्हें आसानी से पकड़ा जा सकता है। इस मुरली इंडस्ट्रीज जैसी समस्या हल की जा सकती है जिसके बारे में सेबी ने बीते शुक्रवार को ही ऑर्डर जारी किया है।

अभी 5 लाख रुपए से ज्यादा के सारे सौदों की रिपोर्ट सीधे वित्त मंत्रालय से संबंद्ध फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (एफआईयू) को भेजी जाती है। यह संस्था सारे संदिग्ध वित्तीय लेनदेन पर नजर रखती है। 30 लाख रुपए से ऊपर के प्रॉपटी खरीद-फरोख्त की जानकारी स्टैंप ड्यूटी का ऑफिस सीधे आयकर विभाग को भेजता है और जिनकी बाकायदा जांच की जाती है।

अगर सरकार कुछ और कदम उठा ले, जैसे – सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए निश्चित अंतराल पर अपनी संपत्ति की घोषणा अनिवार्य बना दी जाए, पूंजी बाजार में भरोसा खो चुके निवेशकों के लिए कुछ सेफ्टी-नेट बना दिया जाए, अंतरराष्ट्रीय अनुभवों के आधार पर छोटे निवेशकों व भारतीय अवाम की पूंजी की हिफाजत के लिए उपाय किए जाएं और घरेलू भागीदारी बढ़ाकर पूंजी बाजार पर एफआईआई का असर घटा दिया जाए तो मुझे पक्का यकीन है कि भारत दुनिया में पहले नंबर पर आ जाएगा।

थोड़े में कहूं तो हमें कोई संदेह नहीं है कि चाहे कुछ ही हो जाए, बाजार 2011 में ही नई ऊंचाई पकड़ेगा। लेकिन सवाल उठता है कि क्या इसके बावजूद निवेशक बाजार से पैसे बना पाएंगे? आईपीओ में उनका भरोसा बचा नहीं है। ए ग्रुप के शेयर भयंकर सट्टेबाजी और एफआईआई के खेल के शिकार हैं जहां कोई स्टॉक 5 के पी/ई अनुपात तक गिरकर बिना किसी वजह के एकबारगी 40 के पी/ई तक जा सकता है।

ऐसे में बाजार से पैसे बनाने का एक ही तरीका बचता है कि आप मिड कैप व स्मॉल कैप के ऐसे स्टॉक चुनें जहां कंपनी में संभावना हो, बिक्री व इक्विटी का अनुपात ए ग्रुप के शेयरों से बेहतर हो और पी/ई अनुपात किसी भी ए ग्रुप के शेयर से आधा हो। ऐसे स्टॉक में अभी या पहले कभी तरलता रही हो या न रही हो, इससे फर्क नहीं पड़ता। तरलता या खरीद-फरोख्त का नखलिस्तान तो तेजी का दौर शुरू होने पर अपने आप ही बन जाता है।

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