न लाल फतवा और न ही सफेद साड़ी

तेल कीमतों पर नियंत्रण हटाने के सरकारी फैसले के बावजूद बाजार गिर कर बंद हुआ। हालांकि सभी तेल कंपनियों के शेयर 10-15 फीसदी बढ़ गए। मीडिया में आई खबर के मुताबिक खुफिया विभाग (आईबी) ने इसी हफ्ते ऑयल स्टॉक्स पर बिग बुल्स की गिरफ्त की सूचना प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को भेजी थी। फिर भी इसी हफ्ते में तेल मूल्यों से नियंत्रण हटाने का फैसला हो गया। इसका मतलब यह हुआ कि सरकार ने बिना इसका इंतजार किए कि कौन क्या कर रहा है, जल्द से जल्द कदम उठाने का फैसला किया है। दिल खुश करनेवाली बात यह है कि सरकार ने इसकी भी परवाह नही की कि सफेद साड़ी व लाल फतवा गरीबों के नाम पर क्या हल्ला मचाता है और उसने गरीबो के लिए आवश्यक माने जानेवाले केरोसिन के दाम भी बढ़ा दिए।

निश्चित रूप से इसका दबाव अगले हफ्ते मुद्रास्फीति पर पड़ेगा। इसी के मद्देनजर बाजार ने इस मसले पर नकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई है। मुद्रास्फीति से लड़ने के लिए रिजर्व बैंक जल्दी से जल्दी आज शाम या कल तक ब्याज दरें बढ़ा सकता है। मैंने साफ संकेत दे दिया है कि हम निफ्टी में फिर से उतरने से पहले सोमवार तक या निफ्टी के 5140 तक जाने का इंतजार करेंगे। इस बीच स्टॉक्स में हमारी पोजिशन लांग या खरीद की है और हमें किसी करेक्शन को लेकर कोई चिंता नहीं है।

दूसरी तरफ, इधर काफी सारी अच्छी चीजें हुई हैं। मैं तो राजकोषीय घाटे को लेकर वाकई अब बड़े सुकून की स्थिति में हूं। मुझे एकदम यकीन हो चला है कि अगले 12 महीनों में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3 फीसदी पर आ जाएगा। पहले तो भारत सरकार ने 3 जी व ब्रॉडबैंड की नीलामी से 1.10 लाख करोड़ जुटा लिए। 40,000 करोड़ रुपए सरकारी कंपनियों के विनिवेश से आ जाएंगे। उर्वरक और तेल मूल्यों पर नियंत्रण हटने से सरकार के ऊपर से सब्सिडी का भारी बोझ हट जाएगा। इस तरह की सब्सिडी बजट का बड़ा हिस्सा निगल जाती है जिससे राजकोषीय घाटा बढ़ जाता है।

मैंने कल ही पढ़ा कि 8 लाख करोड़ रुपए के भारी पूंजी खर्च के कारण सड़क बनाने की योजना 20 किलोमीटर प्रतिदिन से घटाकर 10 किलोमीटर प्रतिदिन करनी पड़ी है। जबकि इस तरह के उपायों से ही भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर का वास्तविक और सार्थक विकास होगा। सड़क, बंदरगाह, रेल और एयरलाइंस हमारे इंफ्रास्ट्रक्चर के मुख्य अंग हैं। जहां तक एयरलाइंस और बंदरगाहों का सवाल है जो इनमें निजीकरण हुआ है। लेकिन रेल और सड़क अभी भारत सरकार के ही नियंत्रण में रहेंगी। इसलिए सरकार को इन्हें दुरुस्त करने की रफ्तार बढ़ानी पड़ेगी।

विदेशी निवेशक भारत की जिस बात से परेशान होते हैं, वह है राजकोषीय घाटा। भारत राजकोषीय घाटे को कम करने और बढ़ते विकास की शर्त पूरी कर रहा है, इसलिए विदेशी पूंजी का यहां आना रोका नहीं जा सकता। यही वो आधार है कि मैं साफ-साफ निफ्टी के लिए 6000 अंक का लक्ष्य देखता हूं। मैं एकदम स्पष्ट हूं कि अब अगर बाजार में कोई गिरावट होती है तो वह आखिरी गिरावट होगी। इसके बाद हम निफ्टी को पलटकर 5400 तक पहुंचते देखेंगे। उसके बाद तो बुरे सपने में ही 5000 के दर्शन होंगे। मुझे पक्का यकीन है कि निफ्टी को 7000 तक जाना है। लेकिन इसके लिए पहले 6000 तक तो पहुंचना होगा।

साल 2012 में बाजार में आपके पास बेचने को कुछ नहीं रहेगा। मेरी यह बात आप मान लो। इस समय जो लोग हड़बड़ी में बेच रहे हैं, वे हमेशा के लिए पछताते रह जाएंगे। 2014 के बाद खर्च कटौती के उपायों के चलते जो गंभीर और संगीन हालात बननेवाले हैं, उससे बचाने में आपका प्यारा चक्री कोई मदद नहीं कर पाएगा। मैंने केवल 2015 तक के लिए तेजी की धारणा बना रखी है और इसलिए आप मुझे बराबर तेजड़िया कह सकते हैं। लेकिन 2015 के बाद मैं हमेशा के लिए मंदी की सोच में चला जाऊंगा। मैं इससे पहले 2000 से 2003 तक मंदड़िया रह चुका हूं।

अगर मैं सतर्क नहीं हूं तो मुझे नहीं लगता कि मैं जिंदा हूं और मैं तब तक खुद को सतर्क नहीं महूसस कर सकता जब तक मैं उस मुकाम पर नहीं पहुंच जाता जहां से सब कुछ मेरे वश में आ जाए।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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