यहां कुछ भी अकारण नहीं होता। जो कुछ भी होता है, उसके पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है। यह हमारी ही सीमा है कि हम उस कारण को देख नहीं पाते। सुज़लॉन एनर्जी का शेयर बीते साल अप्रैल में 58.45 रुपए पर जाने के बाद गिरना शुरू हुआ तो गिरता ही चला गया। नए साल के पहले कारोबारी दिन 2 जनवरी को यह मुंह के बल 17.25 रुपए तक गिर गया। करीब नौ महीने में 70.5 फीसदी की गिरावट! यह गिरावट अकारण नहीं है। न ही इसके पीछे किसी ऑपरेटर का खेल है। यह कंपनी की अपनी करनी का नतीजा है जो सामने आ रहा है।
हालांकि कल, 11 जनवरी को सुज़लॉन एनर्जी का दो रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 532667) और एनएसई (कोड – SUZLON) दोनों में ही 4.33 फीसदी बढ़कर 20.50 रुपए पर बंद हुआ है। बीएसई-100 में शामिल ए ग्रुप की इस कंपनी में डेरिवेटिव सौदे भी होते हैं। कल इसका 25 जनवरी का फ्यूचर्स भी 4.05 फीसदी बढ़कर 20.55 रुपए पर पहुंच गया। लेकिन जिस किसी ने भी सुजलॉन के नाम व तंत्र से अभिभूत होकर तुलसी आर तांती की इस कंपनी में अप्रैल-मई के दौरान निवेश किया होगा, वह अपनी पूंजी के घटकर आधी से भी कम रह जाने पर रो रहा होगा।
इन रोनेवालों में आप और मैं कोई भी हो सकते हैं। लेकिन इसमें गलती हमारी भी है जो हमने कंपनी का बाहर का तंत्र तो देखा, लेकिन अंदर के तंत्र की तहकीकात नहीं कीं। हमने देखा कि कंपनी विंड पावर या पवन ऊर्जा में भारत में सबसे आगे है, सुज़लॉन पूरी दुनिया में विंड पावर टरबाइन बनानेवाला पांचवां सबसे बड़ा समूह है, छह महाद्वीपों के 32 देशों में उसकी उपस्थिति है। लेकिन यह नहीं देखा कि कंपनी कर्ज के भारी बोझ के नीचे दबी है। मार्च 2011 के अंत तक उसके ऊपर 12,263 रुपए का कर्ज था और उसका ऋण/इक्विटी अनुपात 1.81 था।
चालू वित्त वर्ष 2011-12 में सितंबर 2011 तक उस पर चढ़ा कर्ज 13,357 करोड़ रुपए का हो चुका है। इस पर उसने सितंबर तिमाही में 207.81 करोड़ रुपए का ब्याज चुकाया है और उसे 19.39 करोड़ रुपए का शुद्ध घाटा हुआ है। उसे जून 2011 की तिमाही में 110.07 करोड़ रुपए और मार्च 2011 की तिमाही में 309.82 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ हुआ था। लेकिन इस दौरान भी उसे क्रमशः 157.23 करोड़ और 148.34 करोड़ का ब्याज चुकाना पड़ा था।
यही नहीं, कंपनी ने 56.9 करोड़ डॉलर के विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांड (एफसीसीबी) जारी कर रखे हैं। एक तो रुपए के कमजोर से यह रकम बढ़कर 2950 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है। दूसरे फिलहाल चल रहे 19-20 रुपए के भाव पर इन्हें शेयरों में बदलना कंपनी और प्रवर्तकों के लिए बड़ा भारी पड़ेगा। इन बांडों की अदायगी भी दूर नहीं है। चार महीने बाद जून में ही ये बांड परिपक्व हो रहे हैं। 50 रुपए के आसपास शेयरों में बदल दिया जाता है तो कंपनी के लिए आसान पड़ता। लेकिन इसकी कोई सूरत नहीं दिखती। नतीजतन, कंपनी को विदेशी बांडधारकों को उनकी रकम ब्याज समेत लौटानी पड़ेगी।
फिर, सुज़लॉन एनर्जी का कार्यशील पूंजी का चक्र इधर थोड़ा लंबा खिंच गया है। पिछले वित्त वर्ष मे यह 77 दिन का था। इस साल 87 दिन का हो गया है। कर्ज का बोझ बढ़ते जाना और कर्ज की जरूरत भी बढ़ते जाना। पूरे एक दुष्चक्र में फंसी है कंपनी। कंपनी को निश्चित से ऑर्डर पर ऑर्डर मिलते जा रहे हैं। नए साल में उसे तीन बड़े ऑर्डर मिल चुके हैं। 3 जनवरी को अमेरिका से 120 मेगावॉट, 6 जनवरी को पुतर्गाल से 22 मेगावॉट और कल 11 जनवरी को ब्राजील से 24 मेगावॉट का विंड पावर प्रोजेक्ट लगाने का ऑर्डर। उसे इन परियोजनाओं को टरबाइन सप्लाई करने से लेकर अंत तक पूरा करना है। लेकिन सुज़लॉन के पास जितने भी ऑर्डर हैं, उसने उसका 18-20 महीनों का धंधा मजे में चल सकता है। वहीं इसकी समकक्ष कंपनियों – बीएचईएल और लार्सन एंड टुब्रो के पास 30-45 महीनों के धंधे को पूरा करने के ऑर्डर हैं।
कोई कह सकता है कि सुज़लॉन का शेयर 20.50 रुपए पर चल रहा है, जबकि उसकी प्रति शेयर बुक वैल्यू इसकी लगभग दोगुनी 38.11 रुपए है। स्टैंड-एलोन आधार पर उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 2.26 रुपए है। इस तरह उसका शेयर मात्र 9.07 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। लेकिन इतने देशों में फैली कंपनी का समेकित आंकड़ा ही लेना ठीक होगा। उसका समेकित या कंसोलिडेटेड ईपीएस 75 पैसे है और इस आधार पर 20.55 पर होने के बावजूद उसका शेयर 27.46 के पी/ई पर ट्रेड हो रहा है। इसलिए ऑर्डरों की चमक भले ही सुज़लॉन को तात्कालिक तौर पर सुफलाम बनाती रहे। लेकिन आगे इसकी मिट्टी और पलीद होनी है। इसलिए इससे दूर रहना ही बेहतर है। अंत में इतनी जानकारी और कि कंपनी की 355.47 करोड़ रुपए की इक्विटी में प्रवर्तकों का हिस्सा 54.84 फीसदी है जिसका 69.41 फीसदी हिस्सा (कंपनी की कुल इक्विटी का 38.06 फीसदी) उन्होंने गिरवी रखा हुआ है।