छह लाख से ज्यादा आय तो रसोई गैस महंगी!

सालाना छह लाख रुपए से अधिक की आय वाले लोगों के लिए रसोई गैस सिलेंडर पर सब्सिडी खत्म कर दी जानी चाहिए। यह सुझाव है कि पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस पर संसद की स्थायी समिति का। समिति ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा कि एलपीजी सिलेंडरों पर भारी सब्सिडी को बचाने के लिए सरकार को अमीर लोगों को इससे बाहर कर देना चाहिए।

बता दें कि दिल्ली में इस समय 14.2 किलो के आम घरेलू एलपीजी सिलेंडर की कीमत 395.35 रुपए है जो इसके बाजार मूल्य से 247 रुपए कम है। अगर समिति की सिफारिश स्वीकार कर ली जाती है तो सालाना छह लाख रुपये से अधिक की आय वाले परिवार को प्रति सिलेंडर 642.35 रुपए का भुगतान करना पड़ेगा। संसद की स्थायी समिति ने अपनी नवीनतम रपट में कहा कि एलपीजी सब्सिडी से बाहर रखे जानेवालो में संवैधानिक पदों पर आसीन लोग और संसद, विधानसभा व विधान परिषद के सदस्यों जैसे जनप्रतिनिधियों को शामिल किया जा सकता है।

बुधवार को संसद में पेश इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘समिति का विचार है कि सरकार की ओर से इस तरह की पहल किए जाने से सब्सिडीयुक्त सस्ती एलपीजी उन ग्रामीण लोगों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी जिन्हें इसकी अधिक जरूरत है।’’

मालूम हो कि सरकार सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की आपूर्ति सालाना प्रति परिवार चार सिलेंडरों तक सीमित करने के एक प्रस्ताव पर विचार कर रही है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों का अधिकार-प्राप्त समूह इस प्रस्ताव पर विचार करने के लिए 12 जुलाई को बैठक करने वाला था, लेकिन यह बैठक टाल दी गई।

प्रस्ताव के मुताबिक जिन लोगों के पास कार अथवा दोपहिया वाहन अथवा अपना घर हो या फिर उनका नाम आयकरदाताओं की सूची में शामिल है, ऐसे लोगों को सस्ती रसोई गैस की आपूर्ति सीमित की जानी चाहिए। समिति का मानना है कि पेट्रोलियम पदार्थों पर सब्सिडी में कटौती के लिए यह काफी प्रभावी तरीका होगा कि धनी लोगों को सस्ता गैस सिलेंडर मिलना पूरी तरह बंद कर दिया जाए।

पेट्रोलियम मंत्रालय से जुडी इस समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि मंत्रालय को गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले पात्र बीपीएल परिवारों को निःशुल्क एलपीजी कनेक्शन देने की योजना को जल्द मंजूरी देनी चाहिए। गौरतलब है कि सरकार को वास्तविक लागत से कम दाम पर डीजल, रसोई गैस व मिट्टी तेल की बिक्री से काफी सब्सिडी बोझ उठाना पड़ता है। इसका कपंनियों के कारोबार पर तो असर पड़ता ही है, सरकारी खजाने पर भी बोझ बढ़ता है।

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