विजयन का पत्ता काटने के लिए हुई एलआईसी की थुक्का-फजीहत

पिछले कुछ दिनों से देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के खिलाफ आ रही खबरों पर शुक्रवार को तब विराम लग गया जब बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) के चेयरमैन जे हरिनारायण ने उसे क्लीनचिट दे दी। कह दिया कि एलआईसी ने किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया है और पहले 14,000 करोड़ रुपए की कमी की जो बात कही गई थी, वह असल में मौजूदा बीमांकन अनुमान की तुलना में बताई गई एक सांकेतिक राशि थी, वास्तविक नहीं। इरडा चेयरमैन ने हैदराबाद में यह बयान दिया।

असल में मंगलवार 16 नवंबर से ही दो प्रमुख अंग्रेजी बिजनेस अखबारों ने एलआईसी के खिलाफ नकारात्मक खबरें छापने का एक अभियान चला रखा था। लेकिन बीमा उद्योग के एक उच्चपदस्थ सूत्र के मुताबिक इन खबरें खुद ही अपना खंडन करती हैं और पूरी तरह निराधार हैं। दरअसल, इन्हें सायास प्लांट कराया जा रहा है ताकि एलआईसी के मौजूदा चेयरमैन टी एस विजयन का कार्यकाल न बढ़ाया जा सके। विजयन 3 मई 2006 को इस पद पर नियुक्त हुए थे और उनका कार्यकाल पांच साल का है। वे एलआईसी के इतिहास में अब तक के सबसे कम उम्र के चेयरमैन हैं।

मई 2011 में इस कार्यकाल की समाप्ति पर भी विजयन की उम्र 58 साल ही रहेगी। इसलिए नियमतः उनको एक और एक्सटेंशन मिल सकता है क्योंकि एलआईसी चेयरमैन के लिए रिटायरमेंट उम्र 65 साल है। विजयन का रिकॉर्ड काफी अच्छा रहा है, चेयरमैन के पद पर भी और इससे पहले प्रबंध निदेशक के पद पर भी। जैसे-जैसे उनका मौजूदा कार्यकाल समाप्ति के नजदीक आता जा रहा है, उन्हें हटानेवाली लॉबी सक्रिय हो गई है। इसमें एलआईसी के भीतर के अलावा वित्त मंत्रालय के कुछ बड़े अधिकारी भी शामिल हैं। यहां तक कि इरडा के चेयरमैन जे हरिनारायण भी इस लॉबी में शामिल बताए जाते हैं। इसी लॉबी ने विजयन के खिलाफ खबरें प्लांट कराने का सिलसिला चला रखा है। लेकिन इसमें इतनी ऊल-जलूल बातें की जा रही हैं कि किसी आम पाठक को भी इनकी सच्चाई पर संदेह हो सकता है।

सबसे पहले मिंट ने 16 नवंबर को अनाम सूत्रों के हवाले बड़ी प्रमुखता से खबर छापी कि एलआईसी को 1980 व 1990 के दशक में जारी गारंटीड रिटर्न की तीन एन्यूटी पॉलिसियों – जीवन धारा, जीवन सुरक्षा और जीवन अक्षय के मूल्यांकन में 14,000 करोड़ रुपए का घाटा हो रहा है। दूसरे, एलआईसी म्यूचुअल फंड को लिक्विड व मनी मार्केट स्कीमों के चलते 120 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। तीसरे, वित्त मंत्रालय द्वारा गठित एक तीन सदस्यीय दल साल 2008 और 2009 में एलआईसी द्वारा किए गए निवेश की जांच कर रहा है। लेकिन इसी खबर में कहा गया कि यह रूटीन जांच है और पुरानी पॉलिसियों का निवेश हेल्ड टू मैच्योरिटी (एचटीएम) किस्म का है, जिसमें नुकसान की बात महज मार्क टू मार्केट पर आधारित है।

इसके बाद 17 नवंबर को इरडा के चेयरमैन हरिनारायण के नाम से इकनॉमिक टाइम्स ने पहले पेज पर खबर छापी कि बीमा नियामक एलआईसी द्वारा एक खाते से दूसरे खाते में डाली गई 14,000 करोड़ रुपए की रकम की जांच कर रहा है, जिसकी उल्टी बात शुक्रवार को खुद हरिनारायण ने कर दी। मजे की बात है कि इकनॉमिक टाइम्स ने 19 नवंबर को खबर छापी कि इरडा ने कॉरपोरेट गवर्नेंस के पालन के लिए एलआईसी में चेयरमैन के नीचे तीन अलग-अलग कामों के तीन प्रबंध निदेशक नियुक्त करने को कहा है। हकीकत यह है कि एलआईसी में पिछले कई साल से तीन प्रबंध निदेशक हैं जिनका काम साफ-साफ बंटा हुआ है।

एलआईसी के मौजूदा तीन प्रबंध निदेशक हैं – डी के मेहरोत्रा, थॉमस मैथ्यू और ए के दासगुप्ता। इनमें से डी के मेहरोत्रा 2006 में भी चेयरमैन पद की दौड़ में शामिल थे और इस बार भी वे इस पद के प्रमुख दावेदार हैं। लेकिन जानकारों के मुताबिक टी एस विजयन का एक्सटेंशन रोकने की मुहिम में उनकी कोई भूमिका नहीं है। यह सारा खेल दिल्ली से संचालित हो रहा है। वैसे, इस मामले से और कुछ उजागर हुआ हो या नहीं, लेकिन इतना साफ हो गया है कि कॉरपोरेट क्षेत्र, खासकर बड़े सरकारी संस्थानों की अंदरूनी राजनीति में मीडिया के दिग्गजों का कितना शानदार और बेशर्म इस्तेमाल किया जाता है।

एलआईसी के खिलाफ खबर आने पर शेयर बाजार में चिंता छा गई थी क्योंकि वो बाजार के सबसे निवेशकों में शुमार है। इस साल उनका निवेश लक्ष्य 2 लाख करोड़ रुपए का है। पिछले साल उसने 1.92 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया था। जून 2010 की तिमाही में एलआईसी ने 39,000 करोड़ रुपए का निवेश किया है जिसमें से 10,000 करोड़ रुपए शेयरों में लगाए गए हैं।

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