बदस्तूर चालू है चालबाजों की धांधली

अण्णा ने लाखों लोगों के सक्रिय समर्थन से जंग जीत ली है। ऐसा सिर्फ इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि मुद्रास्फीति के बोझ तले दबा आम आदमी भ्रष्टाचार से भयंकर रूप से त्रस्त है। लगता है जैसे, आम आदमी को भ्रष्टाचार के तंदूर में डालकर नेता व अफसर अपनी रोटियां सेंक रहे हों। दरअसल, भ्रष्टाचार मुद्रास्फीति की जड़ है। जितना ज्यादा भ्रष्टाचार, उतना ज्यादा काला धन, उतनी ही ज्यादा सरकारी अफसर की कमाई और इसके चलते आम आदमी पर मुद्रास्फीति की उतनी ही ज्यादा मार।

मध्य-वर्ग का आदमी रेस्टोरेंट में हर दिन खाना गवारा नहीं कर सकता, जबकि सरकारी कर्मचारी बार बालाओं पर नोट उड़ाते देखे जा सकते हैं। हाल ही में मुंबई में विले पारले की एक सोसायटी ने बीएमसी के एक अफसर के घर हुई लूट को सुलझाने के लिए एक पुलिस इंस्पेक्टर को सम्मानित किया। आपको यकीन नहीं आएगा कि बीएमसी के इस अफसर ने पुलिस को पांच लाख रुपए की घूस महज इसलिए खिलाई ताकि उसकी फोटो किसी तरह मीडिया में न आ पाए।

लोकपाल विधेयक के कानून बन जाने के बाद मुझे यकीन है कि हर तरफ छाए भ्रष्टाचार में कमी आएगी। इससे हर अधिकारी की जवाबदेही तय हो जाएगी जिससे इस देश के लोगों को 75 फीसदी राहत तो मिल ही जाएगी।

लेकिन शेयर बाजार का क्या होगा? हर दिन नुकसान झेल रहे रिटेल निवेशक को कौन बचाएगा? 1600 कंपनियां किसी न किसी वजह से शेयर बाजार से सस्पेंड या डी-लिस्ट हो चुकी हैं। इनमें निवेशकों के 60,000 करोड़ डूबे हैं। अगर तहकीकात की जाए तो यह मामला घोटालों का बाप साबित हो सकता है। इन 1600 कंपनियों के प्रवर्तकों ने पहले अपने शेयर धड़ाधड़ बेच डाले। उनकी शेयरधारिता घटकर 1 फीसदी से भी नीचे आ गई। तब इन्हें डी-लिस्ट किया गया। रिटेल निवेशकों को निकलने का कोई मौका दिए बगैर, जबकि इनवेस्टर प्रोटेक्शन फंड का विशाल खजाना यूं ही प़ड़ा है।

इसके अलावा दर्जनों नुक्ते हैं जिनके दम पर चालबाज खिलाड़ी किसी स्टॉक को मनचाहे तरीके के नचाते हैं। ऐसा करनेवालों में दिग्गज ऑपरेटर और एफआईआई तक शामिल हैं। लेकिन रिटेल निवेशकों व ट्रेडरों के पास बचाव का कोई जरिया नहीं है। ये ऐसे मसले हैं जिन पर वित्त मंत्रालय को बेहद संजीदगी से गौर करना होगा क्योंकि इनको सुलझाने से ही आम आदमी और अमीर भारतीय अपनी रकम भरोसे के साथ शेयर बाजार में लगाएंगे।

आजकल ज्यादातर आईपीओ इश्यू से पहले बेच डाले जाते हैं। लिस्टिंग पर इन्हें जमकर चढ़ाया जाता है और फिर शेयर धड़ाम होकर आईपीओ के मूल्य से 20 फीसदी नीचे चला जाता है। निवेशक ऐसी कंपनियों के शेयर अपनी डीमैट खाते में रखे पड़े हैं और इंतजार में लगे हैं कि कब उन्हें औसत फायदा उठाकर बेचने का मौका मिलेगा। उनके पास सीमित धन होता है जिसमें वे आईपीओ में डाल चुके हैं। अब उनके पास धन ही नहीं बचा कि वे सेंकेंडरी बाजार या सीधे शेयर बाजार में निवेश कर सकें।

खुद सरकार भी सार्वजनिक क्षेत्र की अपनी कंपनियों के आईपीओ को बेचने में बड़ी मुश्किल का सामना कर रही है। उसे जबरदस्त डिस्काउंट पर इन कंपनियों के शेयर बेचने पड़ रहे हैं। सरकार को डीआईआई और एफआईआई से इनके आईपीओ में निवेश करने को कहना पड़ता है। कोल इंडिया समेत बहुत सारे मामलों में इन कंपनियों के कर्मचारियों से डीमैट एकाउंट खोलने को कहा गया। लेकिन सरकारी कर्मचारी भी शेयर बाजार में निवेश करने में हिचकिचाते हैं। आखिर किसी को तो इन हालात को बदलना होगा! हमें उस दिन का इंतजार है जब इस तरह की पहल की जाएगी।

मैंने पिछले हफ्ते बाजार (निफ्टी) को 5975 से गिरकर 5800 तक आते देखा। आज यह करीब एक फीसदी की गिरावट के साथ 5785 पर पहुंच गया। मुझे नहीं लगता कि इसमें अब ज्यादा कुछ करेक्शन की गुंजाइश है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक, मुद्रास्फीति, कच्चे तेल के दाम, लीबिया की उथल-पुथल और ब्याज दरों के बढ़ने की चिंता जैसे सभी नकारात्मक कारकों को बाजार पचा चुका है। ट्रेडर शॉर्ट हुए पड़े हैं। इसलिए निफ्टी को पलटकर वापस उठना ही है।

आज के हालात मे अपनी निष्क्रियता को लेकर आप शर्मिंदा नहीं हैं तो आप ईमानदार नहीं हैं।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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