कॉरपोरेट दुनिया में हालात इतनी तेजी से बदल जाते हैं कि बहुत सावधान न रहिए तो चूक हो ही जाती है। हमने 17 जून 2010 को जब बसंत कुमार बिड़ला समूह की नामी कंपनी केसोराम इंडस्ट्रीज के बारे में लिखा था, तब उसका शेयर 328.95 रुपए पर था। शेयर की बुक वैल्यू इससे ज्यादा 335.97 रुपए थी। टीटीएम ईपीएस 51.88 रुपए तो शेयर मात्र 6.3 पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा था।
लगा कि बिड़ला परिवार की 90 साल से ज्यादा पुरानी कंपनी में निवेश के लिए इससे और ज्यादा पुख्ता आधार क्या हो सकते हैं। लेकिन दस महीने दस दिन बाद यह शेयर (बीएसई – 502937, एनएसई – KESORAMIND) 233.80 रुपए पर आ चुका है। बीच में तो 10 फरवरी 2011 को यह 175 रुपए पर अब तक की तलहटी पकड़ चुका है। इस समय इसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) घटकर 3.03 रुपए पर आ चुका है और शेयर अभी ट्रेड हो रहा है 77.15 के पी/ई अनुपात पर। हालांकि बुक वैल्यू उतनी ही 335.97 रुपए है क्योंकि वह तो नेटवर्थ (इक्विटी + रिजर्व) को जारी शेयरों की संख्या से भाग देने पर निकलती है।
टीटीएम ईपीएस जब 51.88 रुपए से 3.03 रुपए पर आ जाए तो शेयर को गिरना ही था। बल्कि अभी तो कम गिरा है क्योंकि 77.15 के भारी-भरकम पी/ई अनुपात को टिका पाना बेहद मुश्किल है। दस महीनों में क्या से क्या हो गया? जिस शेयर के बारे में उम्मीद थी कि उसने 10 का भी पी/ई अनुपात पकड़ा तो 518 रुपए पर होगा, वह 77 का पी/ई पकड़ने के बावजूद उसके आधे से भी कम 233.80 रुपए पर है। जिन्होंने जून में इस शेयर में निवेश किया होगा, वे अब तक 28.92 फीसदी का नुकसान उठा चुके हैं।
फंस तो गए। अब क्या किया जाए? क्या इसे बेचकर घाटा सह लिया जाए? मेरे हिसाब से ऐसा करना गलत होगा। केसोराम जैसी कंपनी का शेयर जब तक फायदा न दे, तब तक 10 महीने तो क्या इससे 10 साल बाद भी नहीं निकलना चाहिए। शेयर गिरा इसलिए है क्योंकि बिक्री बढ़ने के बावजूद कंपनी को सितंबर और दिसंबर दोनों ही तिमाहियों में घाटा हुआ है। कंपनी के ऊपर 360 करोड़ रुपए का दीर्घकालिक ऋण है।
मुश्किल यह भी है कि टायर के धंधे से आधी से ज्यादा कमाई करनेवाली यह कंपनी वक्त के साथ बदलने के बजाय जड़ बनी रही। जब इसके खास प्रतिद्वंद्वी – एमआरएफ, अपोलो टायर्स व जेके टायर मांग बदलने के अनुरूप क्रॉस-प्लाई टायर से रेडियल टायर की तरफ मुड़ गए तब भी यह क्रॉस-प्लाई टायर से चिपकी रही है। एम्बैसडर कार की कंपनी हिंदुस्तान मोटर्स जैसे जड़त्व का शिकार बनी रही यह कंपनी।
लेकिन इधर केसोराम इंडस्ट्रीज ने अंतररराष्ट्रीय सलाहकार फर्म मैकेंजी एंड कंपनी की सेवाएं लेने का फैसला किया है ताकि लाभप्रदता बढ़ाने के तरीके अपनाए जा सकें। कंपनी टायर ही नहीं, अपनी सीमेंट व रेयॉन डिवीजन को भी दुरुस्त करना चाहती है। बीते वित्त वर्ष 2010-11 के नतीजे निराश ही करनेवाले होंगे। उसका परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 2009-10 में 14.84 फीसदी था। इस बार इसका आधा भी रहे तो गनीमत है। खैर, कल 28 अप्रैल को हकीकत सामने आ जाएगी।
जानकारों का कहना है कि कंपनी की स्थिति 2012-13 के बाद सुधरनी शुरू होगी। इसलिए जिन्होंने भी इसके शेयर ले रखे हैं, वो कम से कम दो साल का इंतजार करें। चाहें तो नतीजों के बाद और गिरने पर खरीद कर अपनी औसत लागत कम कर सकते हैं। जिन्होंने इसमें निवेश नहीं किया है, उन्हें फिलहाल इसे दूर ही रहना चाहिए।