सांसद मस्त हैं और आयुध कारखानों में जारी है जनधन की लूट

जुमे का दिन है, शुक्रवार है। लोकसभा ने सांसदों के वेतन को तीन गुना बढ़ाने और प्रमुख भत्तों को दोगुना करने का विधेयक पास कर दिया। सांसद गदगद हैं, मस्त हैं। लेकिन पिछले शुक्रवार को जब उन्होंने इसके लिए संसद में गदर मचा रखी थी, उसी दिन भारत के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (सीएजी, कैग) ने उनके ध्यानार्थ एक रिपोर्ट पेश की थी कि कैसे देश की ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों में शीर्ष अधिकारियों की मिलीभगत से जनधन की लूट जारी है और कैसे इसमें टाटा व हिंदुजा समूह से लेकर बाबुओं के रिश्तेदारों की कागजी कंपनियां मलाई काट रही हैं। इस रिपोर्ट को आए हफ्ता भर हो चुका है। सीएजी ने भी इस पर कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं की। सो, लगता यही है कि देश के सबसे बड़े ऑडिटर जरनल की रक्षा जैसे संवेदनशील मामले से जुड़ी रिपोर्ट की धुकधुकी एक दिन बिना कोई शोर किए चुपचाप बंद हो जाएगी।

लेकिन अच्छी बात यह है कि यह पूरी रिपोर्ट सीएजी ने अपनी वेबसाइट पर डाल दी है, जहां से कोई इस प्रकरण की ब्योरेवार जानकारी हासिल कर सकता है। वेबसाइट पर लेटेस्ट ऑडिट रिपोर्ट्स में परफॉरमेंस ऑडिट और उसमें डिफेंस सर्विसेज में रिपोर्ट नंबर-15 में आयुध कारखानों में व्याप्त सारे भ्रष्टाचार का कच्चा-चिट्ठा खोला गया है। हुआ यह था कि सीबीआई ने ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) के पूर्व महानिदेशक सुदीप्तो घोष पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की जांच के दौरान रक्षा मंत्रालय से अनुरोध किया कि घोष के कार्यकाल में हुई अनिमितता और खरीद की जांच दक्ष लोगों से करवाई जाए। इसे मानते हुए रक्षा मंत्रालय ने जून 2009 में सीएजी से गुजारिश की कि वे इसकी जांच इंडियन ऑडिट एंड एकाउंट्स डिपार्टमेंट के काबिल अफसरों के कराएं।

सीएजी ने इसके बाद 19 अफसरों की एक टीम बनाई जिसने सितंबर 2009 से फरवरी 2010 के बीच रक्षा उत्पादन विभाग, ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी), ऑर्डनेंस इक्विपमेंट ग्रुप (कानपुर), आर्मर्ड वेहिकल ग्रुप (अवाडी) और 18 ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों का ऑडिट किया। इसमें मोटे तौर पर 2006-07 से 2008-09 के दौरान की गई खरीद की जांच की गई। लेकिन पुराने फैसलों के आधार पर इसके बाद की गई खरीद को भी परखा गया। सीएजी की टीम ने ओएफबी के साथ-साथ रक्षा मंत्रालय की फाइलों व दस्तावेजों की भी पड़ताल की। उसने 4434 करोड़ रुपए के कुल 1291 सप्लाई ऑर्डरों की जांच के आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार की है।

रिपोर्ट में सिलसिलेवार तरीके से बताया गया है कि सुदीप्तो घोष ने कैसे दो विदेशी कंपनियों – इस्राइली मिलिटरी इंडस्ट्री (आईएमआई) और सिंगापुर टेक्नोलॉजी कायनेटिक्स (एसटीके) को फायदा पहुंचाने के लिए रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय लेकर कैबिनेट तक को झांसा दिया। आईएमआई का मामला नालंदा में बाई मोडुलर चार्ज सिस्टम (बीएमसीएस) बनाने की फैक्टरी से है। पहले इसकी टेक्नोलॉजी दक्षिण अफ्रीका की फर्म डेनेल ले ली जानी थी। लेकिन 2005 में भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण डेनेल इससे बाहर हो गई तो इस्राइली कंपनी आईएमआई की एंट्री हुई। उसने मुख्य संयंत्र की सप्लाई के लिए अक्टूबर 2004 में 571.71 करोड़ रुपए की बोली पेश की।

परियोजना पर काम अगस्त 2006 तक टल गया तो आईएमआई ने कहा कि वह इस संयंत्र के अब 654.79 करोड़ रुपए लेगी। लेकिन सुदीप्तो घोष के नेतृत्व में ओएफबी ने फैसला किया कि इसके लिए नए ग्लोबल टेंडर मंगवाए जाएंगे। फरवरी 2007 में टेंडर आमंत्रित किए गए, जनवरी में बोलियों को खोला गया तो सबसे सस्ती बोली आईएमआई इस्राइल की 1090.83 करोड़ रुपए की थी। सीएजी का कहना है कि पहले जहां आईएमआई ने दो सालों के अंतर पर 15 फीसदी ज्यादा मूल्य मांगा था, वहीं एक साल में ही उसने 67 फीसदी दाम बढ़ा दिए और ओएफबी इसे देने को राजी हो गया। जाहिर है कि इसमें अच्छा-खासा लेन-देन हुआ होगा।

मजे की बात यह है कि रक्षा मंत्रालय और सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति में झूठ बोलकर मार्च 2009 को बीएमसीएस संयंत्र के लिए आईएमआई को 1175 करोड़ रुपए देने का फैसला करवा लिया गया। इसमें से 174 करोड़ रुपए का एडवांस आईएमआई को दिया जा चुका है। नालंदा परियोजना अटकी पड़ी है। 2001 में इसकी अनुमानित लागत 941.13 करोड़ रुपए थी, अब बढ़कर 2160.51 करोड़ रुपए हो गई है। आईएमआई चुपचाप बिना किसी जवाबदेही के अपने खाते में 174 करोड़ रुपए डलवा चुकी है।

सिंगापुर की एसटीके का मामला यह था कि उससे गृह मंत्रालय के लिए 5.5 एमएम की क्लोज क्वार्टर बैटल (सीक्यूबी) कार्बाइन खरीदी जानी थी। लेकिन शर्त यह थी कि पहले ओएफबी एसटीके के साथ ऑफसेट एग्रीमेट करे कि वह भारतीय कंपोनेंट का इस्तेमाल करते हुए कार्बाइन बनाएगी ताकि बाद में उसका देशीकरण किया जा सके। ओएफबी ने ऐसे किसी करार के बगैर ही मंत्रालय को बोल दिया कि शर्त पूरी हो चुकी है। मीटिंगों के कई दौर चले। कंपनी ने सिंगापुर से पांच कार्बाइन आयात करके पेश की हैं। कानपुर की स्पेशल आर्म्स फैक्टरी में उन्हें एकदम घटिया पाया गया तो एनएसजी (राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड) मानेसर ने उन्हें एकदम दुरुस्त बता दिया।

(बाकी है बाबुओं की फर्जी कंपनियों की दास्तान और टाटा व हिंदुजा समूह की ट्रकों का झोल)

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