आने दें नीचे श्रीराम सिटी यूनियन को

बहुत सारी कंपनियां बहुत सारी वजहों से इल्लिक्विड हो जाती हैं। लेकिन बी ग्रुप की किसी अच्छी-खासी कंपनी में अगर बिना किसी वजह के दिन भर में केवल एक शेयर की खरीद-फरोख्त हो तो हमारे पूंजी बाजार नियामक, सेबी को जरूर सोचना चाहिए कि बाजार में ऐसा सन्नाटा क्यों है भाई? यहां बुरे का बोलबाला, अच्छे का मुंह काला क्यों है? दक्षिण भारत की कंपनी श्रीराम सिटी यूनियन फाइनेंस के साथ बीते हफ्ते यही हुआ। शुक्रवार, 2 दिसंबर को बीएसई में उसके केवल एक शेयर में ट्रेडिंग हुई।

यही नहीं, पिछले एक पखवाड़े से उसका यही हाल है। 16 नवंबर को उसके 12 शेयरों में ट्रेडिंग हुई जिसमें से 11 डिलीवरी के लिए थे। 21 नवंबर को दो शेयरों की ट्रेडिंग हुई जिसमें से एक डिलीवरी के लिए था। 23 नवंबर को ट्रेड हुए 3 शेयरों में 2 डिलीवरी के लिए थे। 30 नवंबर को 17 शेयरों की खरीद-फरोख्त हुई जिसमें से 14 डिलीवरी के लिए थे। शुक्र की बात यह है कि एनएसई में अपेक्षाकृत स्थिति बेहतर रही है। 2 दिसंबर को वहां 2256 शेयरों में से 76.10 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। पिछले महीने में वहां इसमें सबसे कम ट्रेडिंग 25 नवंबर को हुई थी, जब कुल ट्रेड हुए 353 शेयरों में से 349 डिलीवरी के लिए थे।

इससे दो बातें साफ हैं। पहली यह है कि शेयर बाजार में प्रतिस्पर्धा का होना निवेशकों के लिए अच्छा है। इसलिए सेबी को नए एक्सचेंज खोलने में रुकावट नहीं डालनी चाहिए। दूसरी यह कि निवेश करने से पहले देख लेना जरूरी है कि जो शेयर हम खरीदने जा रहे हैं, उसमें लिक्विडिटी कितनी है। ऐसा तो नहीं है कि हम उसमें ऐसे फंस जाएंगे कि कभी निकल ही नहीं पाएंगे। हालांकि श्रीराम सिटी यूनियन फाइनेंस का ठंडापन जरूर चौंकानेवाला है।

ऐसा भी नहीं कि उसका शेयर उड़ीसा मिनरल डेलवपमेंट कंपनी की तरह 38,255 रुपए पर चल रहा हो कि उसका एक शेयर ही खरीदना काफी है। श्रीराम सिटी यूनियन फाइनेंस का दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर शुक्रवार को बीएसई (कोड – 532498) में 515 रुपए और एनएसई (कोड – SHRIRAMCIT) में 505 रुपए पर बंद हुआ है। साल भर पहले 3 दिसंबर 2010 को यह 690 के शिखर पर था, जबकि 9 फरवरी 2011 को इसने 490 रुपए पर 52 हफ्तों का तलहटी बनाई थी। पिछले महीने 18 नवंबर 2011 को भी यह इंट्रा-डे में 490.10 रुपए तक चला गया था। जानकार बताते हैं कि अगर यह गिरकर 450 रुपए तक चला जाए तभी इसमें निवेश करना सुरक्षित व लाभप्रद रहेगा। तब तक इसमें नजर रखी जा सकती है।

असल में यह कंपनी ठीकठाक है। रिजर्व बैंक की निगाह इस पर बराबर रहती है क्योंकि यह उसके पास पंजीकृत डिपॉजिट लेनेवाली एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी) है। बैंकों जैसा धंधा है। लोगों से धन से लेकर दूसरे लोगों को उधार देना। 1986 में बनी 25 साल पुरानी कंपनी है। उसके 90 लाख जमाकर्ता हैं, जबकि 62.5 लाख लोगों को वह ऋण बांट चुकी है। कंपनी का फोकस एकदम साफ है। वह लघु व मध्यम उद्यमियों (एमएसएनई – माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइसेज) को धंधे के लिए कर्ज देती है।

कंपनी का मुख्यालय तो चेन्नई में है, लेकिन पूरे देश भर में उसकी 1000 शाखाएं हैं। इसमें से 350 शाखाएं केवल सोने के एवज में ऋण देने का काम करती हैं। उसकी 80 फीसदी शाखाएं ग्रामीण व अर्ध-शहरी इलाकों में हैं। उसके 10,000 से थोड़े ज्यादा कर्मचारी हैं। फील्ड स्टाफ के वेतन का 50 फीसदी हिस्सा इससे तय होता है कि वे धंधा कितने का लाते हैं। कंपनी धन जुटाने के लिए एनबीएफसी होने के नाते बैंकों व सिडबी जैसी वित्तीय संस्थाओं पर भी निर्भर है। लेकिन उसने ऐसा क्रम बना बना रखा है कि 28 फीसदी धन वह आम लोगों से डिपॉजिट के रूप में लेती है और बाकी 72 फीसदी वित्तीय संस्थाओं से।

कंपनी का धंधा चौचक चल रहा है। बीते वित्त वर्ष 2010-11 में उसने 1318 करोड़ रुपए की आय पर 240.59 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। इस साल सितंबर 2011 की तिमाही में उसकी आय 61.28 फीसदी बढ़कर 476.40 रुपए और शुद्ध लाभ 45.82 फीसदी बढ़कर 81.06 फीसदी करोड़ रुपए हो गया है। उसका परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 75.93 फीसदी और शुद्ध लाभ मार्जिन (एनपीएम) 17.02 फीसदी है। पिछले तीन सालों में उसकी आय 29.04 फीसदी और शुद्ध लाभ 40.03 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ा है। कंपनी का इक्विटी/नेटवर्थ पर रिटर्न 21.75 फीसदी के अच्छे स्तर पर है। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 59.72 रुपए है। इस तरह उसका शेयर फिलहाल 8.62 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। यह जनवरी 2009 में 24.10 तक के पी/ई पर ट्रेड हो चुका है।

श्रीराम ट्रांसपोर्ट से वास्ता रखनेवाले समूह की कंपनी है। इसकी 49.76 करोड़ रुपए की इक्विटी में से प्रवर्तकों ने 53.21 फीसदी हिस्सा अपने पास रखा है, जबकि एफआईआई के पास इसके 15.32 फीसदी और डीआईआई के पास 0.23 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या मात्र 5171 है। इसमें से 4974 या 96.19 फीसदी छोटे निवेशक हैं जिनके पास उसके केवल 2.41 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के बड़े शेयरधारकों में वैन गोघ लिमिटेड (13.31 फीसदी), नॉर्थवेस्ट वेंचर पार्टनर्स मॉरीशस (8.73 फीसदी), अकेसिया पार्टनर्स (3.13 फीसदी) और आईडीबीआई ट्रस्टीशिप सर्विसेज (7.44 फीसदी) शामिल हैं। कंपनी बराबर लाभांश देती रही हैं। इस साल के लिए भी वह 2.50 रुपए का अंतरिम लाभांश घोषित कर चुकी है। पिछले साल उसने दस रुपए के शेयर पर कुल 6 रुपए (60 फीसदी) लाभांश दिया था।

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