कैश बाजार में घटते वोल्यूम की मार, ब्रोकरों के शटर गिरने का खतरा बढ़ा

शेयर बाजार में कैश सेगमेंट में कारोबार घटता जा रहा है और इसी के साथ ब्रोकरों के वजूद पर लटकी तलवार नीचे आती जा रही है। शुक्रवार को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में कुल वोल्यूम 2644.44 करोड़ रुपए का रहा, जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में 12,042.85 करोड़ रुपए का। इस तरह दोनों एक्सचेंजों को मिलाकर कुल वोल्यूम 14,687.29 करोड़ रुपए का रहा है। यह हाल अभी का नहीं है, बल्कि पिछले पांच महीनों से शेयर बाजार का कारोबार 15,000 करोड़ रुपए से नीचे डोल रहा है।

कैश सेगमेंट में कम होते इस वोल्यूम ने ब्रोकरों की हालत खराब कर दी है। जानकारों का कहना है कि आज के हालात में वही ब्रोकरेज हाउस बच पाएंगे जो काफी बड़े और मजबूत हैं। यूरोप व अमेरिका के असर से अगर शेयर बाजार इसी तरह पिटता रहा तो बहुत से ब्रोकरों के शटर जल्दी ही डाउन हो जाएंगे। गौरतलब है कि हाल ही में अल्केमी शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स और मंगल केशव सिक्यूरिटीज को अपना इंस्टीट्यूशनल या संस्थागत ग्राहकों का ब्रोकिंग बिजनेस बंद करना पड़ा है।

यह सच है कि स्टॉक एक्सचेंजों के डेरिवेटिव सेगमेंट (एफ एंड ओ) में वोल्यूम बढ़ता जा रहा है। जैसे, शुक्रवार को ही एनएसई में एफ एंड ओ का कारोबार 1,99,951.94 करोड़ रुपए रहा है। मार्च 2009 के बाद से एफ एंड ओ का कारोबार 177 फीसदी बढ़ चुका है। लेकिन ब्रोकरों, खासकर संस्थागत ग्राहकों पर निर्भर ब्रोकरेज फर्मों की ज्यादा कमाई कैश सेगमेंट से होती है। इसलिए कैश बाजार में वोल्यूम का घटना उनके लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है। दिक्कत यह भी है कि होड़ बढ़ने से कमीशन घट गया है। ऊपर से रिटेल निवेशक एकदम ठंडे पड़े हुए हैं।

बीएसई व एनएसई के आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2008 में हमारे शेयर बाजार में कैश सेगमेंट का औसत वोल्यूम 24,414.39 करोड़ रुपए हुआ करता था। साल 2009 के शुरू में यह थोड़ा नीचे आया था। लेकिन अप्रैल 2009 से नवंबर 2010 के दौरान इसका रोजाना का औसत 21,000 करोड़ रुपए से ऊपर रहा। मगर, अब पिछले कई महीनों से ऐसा दबा है कि 15,000 करोड़ रुपए के ऊपर जाने का नाम नहीं ले रहा।

बाजार में निराशा के बढ़ते माहौल ने मामले को और संगीन कर दिया है। वैसे, मार्च 2009 की तुलना में बाजार अब भी करीब 100 फीसदी ऊपर है। मार्च 2009 में बीएसई सेंसेक्स 8500 के आसपास था। अभी 16,500 के आसपास है। लेकिन बाजार सूचकांकों के बढ़ने के बालजूद कैश सेगमेंट में कारोबार घटने से ब्रोकरों की हालत बिगड़ती जा रही है।

इसका असर इंडिया इनफोलाइन, मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल और एडेलवाइस फाइनेंशियल जैसी लिस्टेड कंपनियों के शेयरों के भावों में देखा जा सकता है। जहां पिछले एक साल में निफ्टी में 18.75 फीसदी की गिरावट आई है, वहीं इस दौरान इंडिया इनफोलाइन 110.60 रुपए से 35.94 फीसदी टूटकर 70.85 रुपए, मोतीलाल फाइनेंशियल 169.35 रुपए से 52.67 फीसदी गिरकर 80.15 रुपए और एडेलवाइस कैपिटल 53.40 रुपए से 48.13 फीसदी घटकर 27.70 रुपए पर आ चुका है।

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