एजेंटों के साथ बीमा कंपनियों का खेल, नए को लो, पुराने को निकालो

करीब 30 लाख लोगों को बतौर एजेंट रोजगार देनेवाली जीवन बीमा कंपनियां इस समय अपना कमीशन बचाने और एजेंटों को ग्रेच्युटी व नवीनीकरण प्रीमियम से वंचित करने के लिए नया दांव खेल रही हैं। वे हर साल जितने नए एजेंटों की भरती करती हैं, उससे ज्यादा एजेंटों को निकाल देती हैं। बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) की 2009-10 की सालाना रिपोर्ट से यह बात सामने आई है।

रिपोर्ट के मुताबिक देश में वित्त वर्ष 2009-10 में कुल व्यक्तिगत बीमा एजेंटों की संख्या 29.78 लाख रही है जो इससे पहले के वित्त वर्ष में 29.37 लाख थी। इस तरह से एजेंटों की संख्या 41 हजार बढ़ गई है। इसमें अकेले एलआईसी के एजेंटों की संख्या 13.44 लाख से बढक़र 14.02 लाख हो गई है यानी यह वृद्धि 57 हजार से ऊपर हुई है। लेकिन इसी अवधि में 8.97 लाख एजेंटों को निकाल दिया गया है और 9.37 लाख नए एजेंटों की भरती की गई है।

इसमें निजी जीवन बीमा कंपनियों का आंकड़ा देखें तो बजाज आलियांज के अप्रैल 2009 में कुल 2,04,941 एजेंट थे और उसने मार्च 2010 तक 61,824 एजेंट जोड़े। लेकिन इसी अवधि में उसने 99,024 एजेटों को निकाल दिया। इस कारण उसके कुल एजेंटों की संख्या 2.04 लाख से घटकर 1.67 लाख हो गई। इसी तरह एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ इंश्योरेंस के उपरोक्त अवधि में कुल 2.07 लाख एजेंट थे और उसने 41,506 एजेंट जोड़े। लेकिन इसी बीच उसने 50,253 एजेंटों को उसने निकाल दिया। इस तरह उसकी संख्या 2.07 लाख से घटकर 1.98 लाख रह गई।

इसी तरह आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल के एजेंटों की संख्या 2.99 लाख थी और उसमें 87,774 एजेंट नए जोड़े गए। लेकिन इसी बीच उसने अपने पुराने 1.45 लाख एजेंटों को बाहर का दरवाजा दिखा दिया, जिससे उसके एजेंटों की संख्या घटकर 2.41 लाख हो गई। आईएनजी वैश्य के कुल 76,058 एजेंट थे और उसने 25,138 एजेंट जोड़े लेकिन 47,923 एजेंटों को निकाल दिया जिससे उसके एजेंटों की संख्या घटकर 53,273 हो गई। कोटक महिंद्रा के 42,083 एजेंट थे और उसने 17,610 एजेंट जोड़े लेकिन 23,796 एजेंटों को बाहर कर दिया। इससे उसके एजेंट घटकर 35,897 रह गए।

मैक्स न्यूयार्क लाईफ के कुल 84,657 एजेंट थे और उसने 46,192 एजेंट जोड़े लेकिन इसी दौरान 58,015 एजेंटों को उसने बाहर कर दिया जिससे उनके एजेंटों की संख्या घटकर 72,828 रह गई। एसबीआई लाइफ के कुल 68,993 एजेंट थे और उसने 29,514 एजेंट जोड़े लेकिन 32,975 एजेंटों को बाहर करने पर उसके एजेंटों की संख्या 65,532 रह गई। हालांकि इसी बीच रिलायंस लाइफ ने 1,05,566 एजेंट जोड़े, पर उससे निकलने वाले एजेंटों की संख्या 59,614 रही तो बिड़ला सन लाइफ इंश्योरेंस ने 53,043 एजेंट जोडक़र 49,282 एजेंटों को निकाल दिया। इस तरह निजी कंपनियों ने 6.25 लाख एजेंट जोडक़र 6.42 लाख एजॆटों को निकाल दिया।

इस बारे में बीमा के जानकारों का कहना है कि अगर किसी कंपनी में कोई एजेंट 5 साल तक रह जाता है तो वह नवीनीकरण वाली पॉलिसियों के कमीशन का पात्र हो जाता है जबकि अगर वह 10 साल रहता है तो उसके न रहने पर उसके परिवार को कमीशन मिलता है। अगर वह 15 साल तक एजेंट रहता है तो उसे पेंशन भी मिलती है। यही कारण है कि बीमा कंपनियां पुराने एजेंटों को निकाल कर नए एजेंटों को रखने पर जोर देती हैं। हालांकि इससे ग्राहक को नुकसान होता है क्योंकि उसे फिर अपना प्रीमियम भरने के लिए कंपनियों के चक्कर काटने पड़ते हैं जबकि जिस एजेंट ने ग्राहक बनाए हैं, उसके न रहने पर कंपनी प्रत्यक्ष रूप से ग्राहक से संपर्क करती है और इस कारण एजेंट के कमीशन की सीधी बचत कंपनियों को लाभ में मिल जाती है। यही कारण है कि हर साल निजी कंपनियां इस खेल को बहुत ही अच्छी तरह से खेलती रहती हैं।

2 Comments

  1. सत्य वचन ,
    कड़वा सत्य

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