इनफोसिस कामधेनु है, बकरी नहीं

इनफोसिस को भाईलोग धुने पड़े हैं। मौका मिला नहीं कि पीट डाला। पिछले महीने 20 जून 2011 को 2660.55 रुपए पर इसने 52 हफ्ते की तलहटी पकड़ी थी। कल नतीजों की घोषणा के बाद इसका पांच रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 500209) में 4.27% गिरकर 2794.25 रुपए पर और एनएसई (कोड – INFY) में 4.44% गिरकर 2791.55 रुपए पर बंद हुआ है। लगता है अभी और गिरेगा।

[आगे बढ़ूं, इससे पहले एक छोटी-सी बात। आप देख रहे है! एनएसई और बीएसई में इनफोसिस के भाव में 2.70 रुपए का अंतर है। अगर कोई इनफोसिस के 10,000 शेयर एनएसई से खरीदकर बीएसई में बेच दे तो एक ही दिन में केवल भावों के अंतर से 27,000 रुपए कमा सकता है। लेकिन यह व्यवस्था शायद अभी अपने यहां ठीक से काम नहीं करती। अमेरिका वगैरह में तो बताते हैं कि एक-एक सेंट के अंतर पर कंप्यूटर सॉफ्टवेयर ही ऐसी ट्रेडिंग से जबरदस्त कमाई करवाता रहता है]

तो, इनफोसिस के नतीजे क्या इतने खराब थे कि उसे बेच लेने में ही समझदारी थी और उसे करीब 6 फीसदी गिराकर दिन में 2949.35 रुपए तक पहुंचा दिया जाए? जून 2011 की तिमाही में कंपनी की आय साल भर पहले की समान अवधि की तुलना में 20.8 फीसदी बढ़कर 7485 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 15.7 फीसदी बढ़कर 1722 करोड़ रुपए हो गया है। लेकिन बाजार को यह पसंद नहीं आया क्योंकि ब्रोकरों की आशा थी कि कंपनी 7520 करोड़ रुपए की आय पर 1729 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाएगी। आय का उम्मीद से 35 करोड़ रुपए और लाभ का उम्मीद से 9 करोड़ रुपए कम रह जाना क्या इतनी बड़ी बात थी कि कंपनी के बाजार पूंजीकरण को 7318.18 करोड़ रुपए का फटका लगा दिया जाए! इनफोसिस का शेयर कल 127.45 रुपए गिरा है। इसे कंपनी के कुल जारी शेयरों की संख्या 57.42 करोड़ से गुणा कर दें तो फटके की यही रकम निकलती है।

बाजार का जो रवैया दिख रहा है, उसमें अभी इनफोसिस को और पीटा जाएगा। हो सकता है कि इसे जल्दी ही नई तलहटी पर पहुंचा दिया जाए। लेकिन इसे लंबे समय के लिए खरीदते रहने में फायदा है। इस समय इसका टीटीएम (ठीक पिछले बारह महीनों का) ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 116.1 रुपए है। इस तरह शेयर अभी ट्रेड हो रहा है 24.06 के पी/ई अनुपात पर। यह जनवरी 2010 के बाद से उसका सबसे कम पी/ई अनुपात है। तब यह 24.41 के पी/ई पर था। साल भर बाद जनवरी 2011 में 36.18 के पी/ई तक चला गया। उसने इसी दरम्यान 7 जनवरी 2011 को 3493.95 रुपए का भाव हासिल किया था जो 52 हफ्ते का उसका उच्चतम स्तर है।

जाहिर है जब तक जिंदगी और यह दुनिया है तब तक जोखिम रहेगा। लेकिन असली बात यह है कि आपमें जोखिम को नाथने की कितनी क्षमता है, आप इसमें कितने दक्ष हैं। इनफोसिस भी जोखिम से अछूती नहीं है, न हो सकती है। आपको शायद नहीं पता होगा कि इनफोसिस का करीब 85 फीसदी धंधा अमेरिका और यूरोप से मिलता है। जून 2011 की तिमाही के सटीक आंकड़ों की बात करें तो उसकी आय का 64.2 फीसदी हिस्सा अमेरिका व 21.3 फीसदी हिस्सा यूरोप (दोनों मिलाकर कुल 85.5 फीसदी) से आया है। भारत से कंपनी की आय केवल 2.6 फीसदी और बाकी दुनिया से 11.9 फीसदी है।

सीधी-सी बात है कि अमेरिका या यूरोप की अर्थव्यवस्था का संकट इनफोसिस के लिए भारी संकट बन सकता है। लेकिन इनफोसिस ने 2008 में भी इसे झेला था और अब भी दबावों के बीच आय में 20.8 फीसदी की वृद्धि दर हासिल कर रही है तो इससे साबित होता है कि वह जोखिम से निपटना अच्छी तरह जानती है। कल तिमाही नतीजों की घोषणा के बाद इनफोसिस के सीओओ (जो जल्दी ही सीईओ बनने जा रहे हैं) एस डी शिबुलाल ने कहा, “माहौल ऐसा है कि हमें सतर्क रहने की जरूरत है। आप जो कुछ हो रहा है, उसे आसानी से देख सकते हैं। अब भी आर्थिक अस्थायित्व है। यूरोप का संकट अब भी बाहर निकलकर आ रहा है। बराबर चर्चा है कि सरकार खर्च को घटाया जा सकता है।”

सबसे बड़ी बात यह है कि कंपनी का नेतृत्व हर संकट से वाकिफ है और उससे जूझने की कला उसने सीखी है। पेट से नहीं, बल्कि तीस सालों के निरतंर संघर्ष से। आज अगर इनफोसिस 85 फीसदी कमाई बाहर से ला रही है तो उसके प्रवर्तक सिर्फ निजी फायदे के लिए इसका इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। उनकी उद्यमशीलता से आज की तारीख में 1,33,560 जोड़ी हाथों को सम्मानजनक जिंदगी जीने लायक काम मिला हुआ है। कंपनी हर तिमाही अपने ग्राहकों की संख्या बढ़ाती है तो कर्मचारियों की संख्या भी बढ़ा देती है। जैसे, जून 2011 की तिमाही में उसने 26 नए क्लाएंट जोड़े तो 9922 नए कर्मचारी भी भर्ती किए। हालांकि इस दौरान 7182 पुरानी कर्मचारी छोड़कर कहीं बेहतर पगार पर चले गए तो कर्मचारियों की संख्या में शुद्ध इजाफा 2740 का ही हुआ।

अंत में इनफोसिस जैसी कंपनियों और मिड कैप व स्मॉल कैप की तुलना करने पर मुझे सूरदास का यह पद आता है जिस पर आपका ध्यान खींचना चाहूंगा…

परमगंग को छाड़ि पियासो दुर्मति कूप खनावै॥
जिन मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खावै।
सूरदास, प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै॥

तो आप समझ ही गए होंगे कि इनफोसिस कामधेनु है, कोई छेड़ी-बकरी नहीं। इसलिए हर गिरावट पर उसे खरीदते रहना चाहिए और दस साल बाद देखिएगा कि आपका धन कहां के कहां तक पहुंच जाता है।

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