रिजर्व बैंक ने इस साल की मौद्रिक नीति में कहा था कि दूसरी छमाही यानी सितंबर 2011 के बाद से मुद्रास्फीति में कमी आनी शुरू हो जाएगी। लेकिन अब वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी कह रहे हैं कि यह दिसंबर के अंत तक ऊंची ही बनी रहेगी। वित्त मंत्री ने चुनिंदा अखबारों के संवाददाताओं को भेजे गए बयान में कहा है कि मुद्रास्फीति के ज्यादा रहने से निजी निवेश पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
उनका कहना है, “थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुख्य मुद्रास्फीति के अगस्त-दिसंबर 2011 तक अपेक्षाकृत ज्यादा ही रहने की उम्मीद है। उसके बाद ही इसमें गिरावट आएगी।” बता दें कि जून 2011 में मुद्रास्फीति की दर 9.44 फीसदी रही है। अगले हफ्ते 26 जुलाई को रिजर्व बैंक मौद्रिक की पहली त्रैमासिक समीक्षा पेश करनेवाला है। उम्मीद है कि वह ब्याज दरों में कम से कम 0.25 फीसदी की वृद्धि करेगा। रिजर्व बैंक मार्च 2010 के बाद से ब्याज दरों में अब तक दस बार वृद्धि कर चुका है।
वित्त मंत्री ने कहा कि हमें उम्मीद है कि मुद्रास्फीति की दर मार्च 2012 तक 6 से 7 फीसदी तक आ जानी चाहिए। असल में हो यह रहा है कि मुद्रास्फीति को संभालने की कोशिश में रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहा है, जिससे उद्योग के लिए ऋण महंगा हो जा रहा है। नतीजतन इसका असर औद्योगिक विकास की दर पर पड़ रहा है।
साथ ही अधिक मुद्रास्फीति से कंपनियों के लिए कच्चे माल और श्रम की लागत भी बढ़ रही है। अनुमान है कि कॉरपोरेट क्षेत्र को साल 2011 में कर्मचारियों को 13 फीसदी ज्यादा वेतन देना पड़ेगा। वित्त मंत्री ने कहा कि कॉरपोरेट निवेश धीमा पड़ रहा है। लागत बढ़ने से उनका लाभ प्रभावित हो रहा है जिससे उनका पूंजी खर्च घट रहा है। वैसे, उनका कहना है कि इधर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में वृद्धि होने से निवेश व जीडीपी का अनुपात 2009-10 के बराबर या उससे ज्यादा रहेगा।