सरकार ने सुबह से शाम तक बाजार को बचाने की हरचंद कोशिश कर डाली। यही वजह है कि बीएसई सेंसेक्स की गिरावट 1.82 फीसदी तक सिमट गई। सेंसेक्स अभी 16,990.18 अंकों पर चौदह माह के न्यूनतम स्तर पर है। लेकिन आगे इसमें ज्यादा सेंध लगने की उम्मीद कम है। वित्त मंत्रालय के सलाहकार, योजना आयोग व उद्योग संगठनों से लेकर खुद वित्त मंत्री ने आश्वस्त किया है कि भारत की विकासगाथा अक्षुण्ण है और हमारी अर्थव्यवस्था के मूलाधार काफी मजूबत हैं।
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सोमवार को संसद के बाहर मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि अमेरिका व यूरो ज़ोन के देशों के हाल के घटनाक्रम ने वैश्विक बाजारो में कुछ अनिश्चितता घोल दी है। इससे हमारी अर्थव्यवस्था पर भी थोड़ा असर पड़ेगा। लेकिन हम इस चुनौती का सामना करने के लिए दुनिया के तमाम देशों से बेहतर स्थिति में हैं। हम घरेलू उपयोग को प्रोत्साहित करने और घरेलू विकास के तत्वों को गतिशील बनाने पर ध्यान देंगे। उधर योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने कहा कि भारत या अन्य एशियाई देशों के शेयर बाजार में दो फीसदी की गिरावट कोई मायने नहीं रखती। उनका कहना था कि भारतीय बाजार नकारात्मक असर से उबर कर एक-दो दिन में संभल जाएंगे।
सोमवार को सुबह शेयर बाजार खुलने से पहले रिजर्व बैंक ने किसी भी आस्मिकता से निपटने की तैयारी का संकेत देते हुए कहा था – हम रुपए से लेकर विदेशी मुद्रा की तरलता पर पड़नेवाले हर असर पर गहराई से नजर रखे हुए हैं और हालात के अनुरूप फौरन कदम उठाने की स्थिति में हैं। इस बयान से बाजार के कारोबारियों में एक निश्चिंतता का अहसास भर गया कि पीठ के ऊपर से कोई देख रहा है। इसके फौरन बाद बाजार खुलने से पहले ही वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु का बयान आ गया कि दुनिया भर में चल रही बिकवाली चिंता का विषय है। लेकिन इस पर बहुत ज्यादा चौंकने की जरूरत नहीं है और भारत की दीर्घकालिक विकासगाथा पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था बद से बदतर हालात में भी 6.8 फीसदी की गति से बढ़ी है जो इसकी अंतर्निहित शक्ति का परिचायक है।
देश के प्रमुख उद्योग संगठन फिक्की ने भी एक बयान में कहा कि अमेरिका के संप्रभु ऋण संकट से भारत पर अल्पकालिक असर तो पड़ेगा। लेकिन इस आर्थिक उथल-पुथल से हमें लाभ भी मिलेगा क्योंकि कच्चे तेल के दाम नीचे आ जाएंगे, जिससे मुद्रास्फीति में कमी आएगी और रिजर्व बैंक ब्याज दरों को बढ़ाने का सिलसिला रोक सकता है। फिक्की के मुताबिक इससे भारत के प्रति निवेशकों का मनोबल बढ़ेगा।
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी इस बीच किसी भी नकारात्मक भाव को दूर करने के लिए सेनापति की भूमिका में डटे रहे। उन्होंने भी माना कि अमेरिका व यूरोप के संकट से जिंसों, खासकर कच्चे तेल के दामों में नरमी आएगी जिससे भारत को मुद्रास्फीति के दबावों से निपटने और राजकोषीय घाटे को संभालने में मदद मिलेगी। उन्होंने आश्वस्त किया कि हम बचे हुए आर्थिक सुधारों पर द्रुत गति से अमल करेंगे और घरेलू खपत को बढ़ाने के हर प्रयास को प्राथमिकता देंगे। उनका कहना था कि अमेरिका व यूरो ज़ोन की स्थिति से भारत के व्यापार व यहां आनेवाली पूंजी के प्रवाह पर थोड़ा असर पड़ सकता है। लेकिन चूंकि हमारी अर्थव्यवस्था मूलभूत रूप से मजबूत है। इसलिए एफआईआई (विदेशी निवेशक संस्थाएं) इसे आकर्षण निवेश ठिकाने के रूप में देखते हैं। हो सकता है कि तात्कालिक रूप से वे यहां से थोड़ी पूंजी निकाल लें। लेकिन लंबे समय में वे ऐसा नहीं कर सकते।
वित्त मंत्री ने कहा है कि आज वैश्विक निवेशकों को भारत से ऊंचा रिटर्न मिल सकता है। इसलिए 2008 के विपरीत हम इस बार एफआईआई के निवेश का द्रुत व ज्यादा प्रवाह देख सकते हैं। गौरतलब है कि वित्त मंत्री 2008 के लेहमान संकट का जिक्र कर रहे थे, जब विदेशी निवेशकों ने मूल देशों में अपनी देनदारियों को पूरा करने के लिए भारी मात्रा में भारत से अपना निवेश निकाल लिया था। चलते-चलते सोमवार को वित्त मंत्री ने मीडिया को भरोसा भी दिलाया कि हमारी संस्थाएं भी मजबूत हैं और मौजूदा स्थिति से उपजनेवाले किसी भी संकट का सामना करने को तैयार हैं।