उम्मीद नहीं, भ्रम था तो टूट गया!

हर कोई कहे जा रहा था कि रिजर्व बैंक ब्याज दरें 0.25 फीसदी बढ़ा देगा। फिर भी देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के चेयरमैन ओ पी भट्ट की तरह बाजार को भी लग रहा था कि शायद ऐसा न हो। इसी उम्मीद में बाजार थोड़ा गिरकर तो खुला, लेकिन फिर पूरी तरह सुधर गया, जबकि दुनिया के बाजार गिरे हुए थे। लेकिन 11 बजे के बाद बजार में हवा-सी चल गई कि ब्याज दरें बढ़नी ही हैं। इससे बचा नहीं जा सकता। 12 बजे उम्मीद के टूटते ही बाजार गिरावट के आगोश में आ गया। वैसे. बाजार बंद होते-होते निफ्टी व सेंसेक्स की गिरावट एक फीसदी तक सिमट गई।

लेकिन आज की पूरी हलचल से साफ है कि भारतीय बाजार अपनी स्वतंत्र गति व लचीलापन दिखा रहा है। दुनिया की बात करें तो अमेरिकी बाजार गिर रहा है क्योंकि वहां विकास को टिकाए रखना मुश्किल पड़ रहा है। ब्रिटेन के विकास की संभावनाओं को डाउनग्रेड किया जा चुका है। ऐसे में जिन नामी-गिरामी विदेशी फंडों ने पूंजी को निकालकर पहले विकसित देशों में ले जाने का एलान किया था, उनको अब पता ही नहीं कि वे कहां निवेश करें। हां, अब वे रूस की बात कर रहे हैं। लेकिन अगर परमाणु संकट की स्थिति रूस में भी आ गई तो वे कहां जाएंगे?

भारत पर जापान के संकट का खास असर नहीं पड़ा है। थोड़ा इधर-उधर होने के बाद वह वापस अपनी डगर पकड़ चुका है। भारत का आर्थिक विकास सबको साफ दिख रहा है। अब तो एफआईआई ब्रोकिंग हाउसों ने भी एक के बाद एक स्टॉक्स को अपग्रेड करना शुरू कर दिया है। पहले उन्होंने रिलायंस कैपिटल, एस्कोर्ट्स व रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) को अपग्रेड किया। अब आइडिया जैसे स्टॉक्स को उठा रहे हैं। इस तरह लगता है कि उनके पास भारत के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।

ब्याज दरें बढ़ने की उम्मीद में ऋण प्रवाह पर आधारित रीयल्टी और ऑटो सेक्टर के ज्यादातर स्टॉक्स गिरे हैं। धंधे पर असर की आशंका में भी एचडीएफसी बैंक व पीएनबी जैसे चंद बैंकों को छोड़कर बाकी सभी के शेयर गिरे हैं। वैसे, यह सब तात्कालिक असर है। यह हफ्ता करीब-करीब निकल चुका है। नए वित्त वर्ष की शुरू होने में अब केवल 7 या 8 कारोबारी सत्र बचे हैं। मेरा मानना है कि नए वित्त वर्ष की शुरुआत से रैली का नया रेला आ सकता है।

बड़े दिमाग के लोग विचारों पर चर्चा करते हैं; औसत दिमाग के लोग घटनाओं पर चर्चा करते हैं; छोटे दिमाग के लोग लोगों पर चर्चा करते हैं।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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