मार्च में देश का औद्योगिक उत्पादन उम्मीद से कहीं ज्यादा बेहतर रफ्तर से बढ़ा है। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था में आ रही किसी भी धीमेपन के डर को दरकिनार कर दिया है। इससे उन आलोचनाओं पर भी लगाम लग सकती है जिनमें कहा जा रहा है था कि रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति को थामने के उत्साह में आर्थिक विकास को दांव पर लगा दिया है।
मार्च 2011 में फैक्ट्रियों, खदानों व सेवा क्षेत्र में उत्पादन साल भर पहले की तुलना में 7.3 फीसदी बढ़ा है। एक महीने पहले फरवरी में यह वृद्धि दर 3.65 फीसदी रही है। सरकार द्वारा गुरुवार को जारी आंकड़ों के अनुसार मार्च 2011 में पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन 12.9 फीसदी बढ़ा है, जबकि फरवरी 2011 में इसमें 18 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी।
मुंबई में बैंक ऑफ बड़ौदा की अर्थशास्त्री रूपा रेगे नित्सुरे ने कहा, “आईआईपी (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक) के आंकड़े बहुत उत्साहवर्धक हैं और ये विकास के आवेग की अंतर्निहित ताकत को साबित करते हैं। इसके बाद रिजर्व बैंक ज्यादा आसानी से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने पर अपना ध्यान लगा सकता है।”
ज्यादातर अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि जून में मौद्रिक नीति की पहली त्रैमासिक समीक्षा के दौरान रिजर्व बैंक ब्याज दरों में 0.25 फीसदी का इजाफा और कर देगा। पिछले ही हफ्ते 3 मई को पेश सालाना नीति में उसने रेपो व रिवर्स दरों को 0.50 फीसदी बढ़ाया है।
नोट करने की बात यह है कि आईआईपी में करीब 80 फीसदी योगदान करनेवाले मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का उत्पादन मार्च 2011 में 7.9 फीसदी बढ़ा है, जबकि महीने भर पहले यह वृद्धि दर केवल 3.6 फीसदी थी। शेयर बाजार ने अच्छे आईआईपी आंकड़ों पर उत्साह नहीं दिखाया है। लेकिन माना जा रहा है कि कल, शुक्रवार को जरूर इसका असर दिखेगा।
असल में पिछले कुछ दिनों से कच्चे तेल के दाम और मुद्रास्फीति के चलते रिजर्व बैंक ही नहीं, वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी तक कह चुके हैं कि चालू वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान जीडीपी की विकास दर 9 फीसदी के बजाय 8 फीसदी रह सकती है। वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु भी इस तरह की बात कह चुके हैं। ऐसे में औद्योगिक उत्पादन का उम्मीद से ज्यादा बढ़ना काफी सुखद खबर है।