जहां तक भारतीय बाजार का ताल्लुक है तो उसको लेकर ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है। फिलहाल ट्रेडर भाई लोग सेटलमेंट की शुरूआत में यूरोप व अमेरिका के संकट और भारत सरकार की उधारी बढ़ जाने की खबर पर और ज्यादा शॉर्ट पोजिशन बनाने में जुट गए हैं। इसी वजह से बाजार में गिरावट का दौर चला है। मुझे नहीं समझ में आता है कि ऐसे में बहुत ज्यादा मंदी की धारणा पालने की कोई वजह बनती है।
एक बनावटी माहौल में आज निफ्टी 1.90 फीसदी गिरकर 4849.50 और सेंसेक्स 1.84 फीसदी गिरकर 16,151.45 पर बंद हुआ। वजह वही सब गिनाई गई। अमेरिका का संकट। यूरोप में ग्रीस के डिफॉल्ट होने का खतरा। आदि-इत्यादि। मैं मानकर चल रहा हूं कि यूरोप के संकट का कोई समाधान नहीं है। कुछ देश डिफॉल्ट कर सकते हैं। लेकिन इससे भारत पर आखिर क्या फर्क पड़ना है? हम 12 बार ब्याज दरों को बढ़ाने और रिजर्व बैंक के अपने कठोर रवैये को जारी रखने के ऐलान के बावजूद 8 फीसदी आर्थिक विकास दर पकड़े हुए हैं। दुनिया में चीन के अलावा और कौन-सा देश है जो 7 फीसदी की भी दर से विकास कर रहा है? कोई नहीं…
दूसरी तिमाही में कंपनियों के लाभार्जन के घटने का असर बाजार अपने में समेट चुका है। हो सकता है कि कंपनियों के नतीजे अपेक्षा से बेहतर रहें जो बाजार को उठाने का कारण बन सकता है। जहां तक सरकार के उधार की बात है तो इसका कोई चारा नहीं है क्योंकि विनिवेश में उसे कामयाबी मिल नहीं पा रही है। हालांकि सरकार कर रही है कि वह लघु बचत से मिली कम राशि की पूर्ति बाजार में बांड जारी करके कर रही है और यह दरअसल खाते में यहां की एंट्री निकालकर वहां करने से ज्यादा कुछ नहीं है।
आज तुर्रमखां निवेशक क्यों चिल्ला रहे हैं कि जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 4.6 फीसदी राजकोषीय घाटा अच्छा नहीं है, जबकि दूसरे देश डिफॉल्ट कर रहे हैं? क्या आप कहना चाहते हैं कि 4.6 फीसदी या 5.5 फीसदी राजकोषीय घाटे से डिफॉल्ट कर जाना बेहतर है या 7.5 फीसदी की विकास दर डिफॉल्ट कर जाने से बेहतर नहीं है?
इस वक्त हमें सच्चाई को निरपेक्ष नहीं, बल्कि सापेक्ष रूप से देखने की जरूरत है। भारत की स्थिति देखिए तो दूसरों की भी हालत पर भी गौर कर लीजिए। ऐसा नहीं है तो निवेशकों को दौड़कर खाड़ी के देशों में देशों में निवेश कर देना चाहिए क्योंकि वहां कच्चे तेल के चलते जीडीपी की विकास दर बड़ी ऊंची है। लेकिन वे खाड़ी में जाकर निवेश तो नहीं कर रहे हैं!!!
मैं फिर से जोर देकर कहना चाहता हूं कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है। समझने की कोशिश कीजिए कि हम इस वक्त फिरंगी निवेशकों के हाथ की कठपुतली बने हुए हैं। हमने यह सोचना-समझना ही छोड़ दिया है कि हमारे देश और देश के लोगों के लिए क्या बात जरूरी है। सरकार की नीतियां एफआईआई समर्थक है। उनमें भारतीय रिटेल निवेशकों को महत्व नहीं दिया गया है। इन हालात में एफआईआई बाजार में कृत्रिम माहौल पैदा कर रहे हैं जहां हम हर दिन घाटा उठा रहे हैं। डीआईआई और म्यूचुअल फंडों को हो रहे नुकसान में हमारी खून-पसीने की कमाई ही डूब रही है क्योंकि हमने उसे संभालने का जिम्मा इनको सौंप रखा है।
लेकिन मेरी बात नोट कर लें कि जोड़तोल व चालबाजी बहुत लंबे समय नहीं चलती। आखिर में हमेशा सत्य की ही जीत होती है। हम भले ही अभी कीमत चुका रहे हैं। लेकिन किसी न किसी यहां भी क्रांति जरूर आएगी। हताश होकर हथियार डालने की जरूरत नहीं है। बाजार को फिर से उठना ही है। लेकिन अगर आप दबाव में आकर बह गए तो आपको कोई नहीं बचा सकता। बेहतर कल का इंतजार करें। भरोसा रखें कि वह आएगा जरूर। ऐसा न करें कि कोई दूसरा हमें निराशा का फायदा उठाकर चंपत हो जाए।
दूसरों की पीठ पर चढ़कर सफल होने से कहीं अच्छा है जिंदगी में हार जाना।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का पेड-कॉलम है, जिसे हम यहां मुफ्त में पेश कर रहे हैं)