विनिवेश नहीं, टैक्स-फ्री बांड ही सही

रिजर्व बैंक ने न केवल ब्याज दरें एक बार फिर बढ़ा दीं, बल्कि अब भी इसी रुख पर कायम है कि मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए वह आगे भी ऐसा कर सकता है। व्यावहारिक रूप से देखें तो ब्याज दरें बढ़ाकर मुद्रास्फीति को रोकने की सीमा और समय, दोनों ही अब समाप्त हो चुका है। वैसे भी बेहद कम गुंजाइश है कि दिसंबर में ब्याज दरें बढ़ाई जाएंगी क्योंकि तब तक अच्छे मानसून का असर सामने आ चुका होगा।

विदेशी मोर्चे की बात करें तो यूरो की हालत में कोई सुधार नहीं आया है। लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि विदेशी निवेशकों की अति-प्रतिक्रिया के चलते दुनिया के शेयर बाजार इस समय ओवरसोल्ड अवस्था में पहुंच चुके हैं। सच कहें तो निवेशकों का यह समुदाय बहुत पिनकी किस्म का है और इधर या उधर, दोनों ही सूरत में प्रतिक्रिया की हद कर देता है। इसलिए दूसरी तरफ की मामूली-सी घटना भी बाजार की दिशा उलट देती है। घनघोर निराशा अचानक उल्लास में बदल जाती है। यह अलग बात है कि यह उन्माद पलक झपकते ही उतर भी जाता है।

भारतीय बाजार में फिलहाल चिंता की बात यह है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के शेयरों की बिक्री या विनिवेश पर डांवाडोल हो रही है। पहले हमें लगा था कि सरकार ओनजीसी के एफपीओ (फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर) को वास्तविक सब्सक्रिप्शन तक ही सींमित रखेगी। लेकिन अब विनिवेश विभाग ने बिना कोई कारण बताए इस इश्यू को दो से चार हफ्ते टाल दिया है। मीडिया में इस तरह का तर्क आया है कि वे 5 फीसदी के डिस्काउंट के बाद ओएनजीसी का प्रति शेयर मूल्य 260 रुपए के बजाय 280 रुपए रखना चाहते थे।

इस बीच ओएनजीसी का काउंटर शॉर्ट हो गया क्योंकि सभी एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) और ग्रे मार्केट (अनधिकृत बाजार) के ऑपरेटर डिस्काउंट पर एलॉटमेंट पाने के चक्कर में काफी शॉर्ट सेलिंग कर चुके थे। ओएनजीसी के डेरिवेटिव सौदों में ओपन इंटरेस्ट और कॉल व पुट ऑप्शंस का अनुपात साफ-साफ यह बात दिखाता है। इसलिए सरकार द्वारा एफपीओ को टालने की घोषणा के बाद उन्हें खटाखट मौजूदा सीरीज में अपनी शॉर्ट पोजिशन समेटनी पड़ी। इस तरह हुई शॉर्ट कवरिंग के चक्कर में ओएनजीसी शुक्रवार को 5.61 फीसदी बढ़कर 274.70 रुपए पर पहुंच गया।

अभी जिस तरह का घटनाक्रम चला है – रुपए के मूल्य में काफी कमी, विदेश से कालाधन लाने पर क्षमादान की चर्चा, बाजार में थोड़ा सुधार और माहौल दुरुस्त होने तक ओएनजीसी के इश्यू को टाल देना – यह सब दिखाता है कि बाजार जल्दी ही उठनेवाला है। यहां तक कि निफ्टी को 4900 से नीचे ले जाने की तीन-चार कोशिशों के नाकामयाब हो जाने के बाद मंदड़ियों ने भी कम से कम तात्कालिक तौर पर अपना रवैया बदल लिया है। साथ ही पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन ने 6900 करोड़ रुपए के टैक्स-फ्री बांड जारी करने की घोषणा की है। रुपए में आई कमजोरी को देखते हुए इसके आसानी से सब्सक्राइब हो जाने की उम्मीद है।

क्या यह विदेशी निवेशकों को सरकार की तरफ से किया गया इशारा है कि अगर मूल्य सही नहीं मिले तो वह मजबूरी में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का विनिवेश नहीं करेगी? वह टैक्स-फ्री बांड ला सकती है जिसको अच्छा प्रतिसाद मिलेगा और सरकारी कंपनियों को 40,000 करोड़ रुपए के विनिवेश लक्ष्य से भी ज्यादा रकम बाजार से मिल जाएगी।

अभी यूरोप में स्थिति यह है कि वहां के बांड बाजार में ऋणात्मक रिटर्न मिल रहा है। इसके विपरीत अगर भारत सरकार की कंपनियां 6 फीसदी टैक्स-फ्री रिटर्न दे सकती हैं तो विदेशी निवेशक इसे हाथों-हाथ लेंगे। ऊपर से इन निवेशकों को अगर यकीन हो गया कि रुपया मजबूत होकर साल भर में डॉलर के सापेक्ष वापस 43 रुपए की विनिमय दर पर पहुंच जाएगा, तब तो उनका रिटर्न 10 फीसदी और बढ़ जाएगा। मुझे नहीं लगता कि विदेशी निवेशक ऐसे मौके को हाथ से जाने देंगे। रुपए का अवमूल्यन इकलौता वह कारण हो सकता है जिसके चलते एफआईआई व दूसरे विदेशी निवेशक बांड के साथ-साथ इक्विटी शेयरों में भारी धन लगाएंगे। विदेश में कालाधन रखनेवालों के लिए भी माहौल खुशी का है क्योंकि घोषित आस्तियों व आय पर जो टैक्स लगेगा, वह प्रति डॉलर ज्यादा रुपए मिलने से बराबर हो जाएगा।

देश में कई सालों से विनिवेश कार्यक्रम को जिस तरह का ठंडा रिस्पांस मिला है, वह अब सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के टैक्स-फ्री बांडों के आने से थोड़ा कामयाब हो सकता है। हम बार-बार इस तथ्य को रेखांकित करते रहे हैं कि जिस तरह से एफआईआई हमारे शेयर बाजार में अपनी होल्डिंग के दम पर स्टॉक्स के भावों को दबाते हैं, खासकर एफपीओ आने से ठीक पहले, उससे असली नुकसान भारत सरकार को हो रहा है। इसलिए अगर उतने ही शेयर जारी किए जाएं जितना सही निवेशक सोख सकें तो मूल्य भी सही रहेगा और एफआईआई का खेल भी हमेशा के लिए नाकाम हो जाएगा।

रिटेल व एचएनआई निवेशकों की स्थिति अब भी नहीं बदली है। उनको लगता है कि बाजार किसी नए धरातल पर पहुंच जाएगा, तभी वे उसका रुख करेंगे। लेकिन यह सोच सही नहीं है। बाजार में धीरे-धीरे तेजी के रुझान का आगाज हो चुका है। सारे नकारात्मक कारकों को बाजार ने जज्ब कर लिया है। अगले तीन महीने बाजार के लिए काफी तूफान-मस्ती से भरे होने जा रहे हैं। मुझे इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं दिखती।

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