कैश है काफी तो मत चूको चौहान

बाजार की हालत दुरुस्त हो चली है और एफआईआई ने अच्छे शेयरों को बटोरना शुरू कर दिया है। मीडिया की सुर्खियां भी दिखाती हैं कि हाउसिंग लोन घोटाले या रिश्वतखोरी का मामला अब धीरे-धीरे सम हो रहा है। हालांकि बाजार के लोगों को अब भी समझ में नहीं आया है कि यह गिरावट एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) निवेशकों और ऑपरेटरों को ठिकाने लगाने के लिए थी क्योंकि रिटेल ने कोई खास खरीद कर नहीं रखी थी।

खरीद या लांग के करीब 50 फीसदी सौदे समेट लिए गए हैं और संभव है इस हफ्ते थोड़ी और तकलीफ हो। इसलिए मेरा आकलन है कि अभी बाजार में उथल-पुथल रहेगी, लेकिन बाद में हो सकता है कि यहां खरीद का कोई मौका ही न मिले। इसलिए अगर जिन निवेशकों के पास काफी कैश है, वे अभी ही बाजार में घुसने की कोशिश कर सकते हैं, बशर्ते उनके मेरे आकलन पर भरोसा हो। नहीं तो हम लोग निफ्टी के 7000 पहुंचने पर चकहते हुए बोलेंगे ही कि चक्री ने एकदम सही कहा था।

एलआईसी हाउसिंग इस रिश्वतखोरी के कांड के केंद्र में था। लेकिन इसी दौरान समीर अरोड़ा ने इसमें अपनी हिस्सेदारी आधा फीसदी बढ़ाकर 3 फीसदी कर ली है और सीएलएसए ने शुक्रवार को इसके 41 लाख शेयर खरीदे हैं। इनकी खरीद साफ करती है कि अगर किसी स्टॉक में दम है तो अच्छे निवेशक इधर-उधर की बातों की परवाह नहीं करते। आज भी, मीडिया में एचसीसी की तरफ से भारी गड़बड़ियों की खबर आने के बावजूद सीएलएसए ने एचसीसी में खरीद की है।

इकनोमिक टाइम्स ने 27 नवंबर को लिखा था कि इंडसइंड बैंक ने लवासा को 500 करोड़ रुपए का ऋण दे रखा है, जबकि असल कर्ज 50 करोड़ रुपए का है और वो भी लवासा को नहीं, बल्कि एचसीसी को दिया गया है। इसलिए एचसीसी के स्टॉक का अंतर्निहित मूल्य नहीं बदल सकता, भले ही उसने बैंक से कर्ज ले रखे हों। स्टॉक का मूल्यांकन एनालिस्टों पर छोड़ देना चाहिए। जैसे, गोल्डमैन सैक्श ने ताजा संकट के बाद भी आज एचडीआईएल के शेयर का मूल्यांकन 360 रुपए किया है। एनम भी पहले इसकी कीमत 400 रुपए के आसपास लगा चुकी है।

मुझे नहीं लगता कि रीयल एस्टेट की कीमतें घटेंगी। रीयल एस्टेट की कीमतें 20-30 फीसदी घटने की बात सरकार की तरफ से मीडिया में उछलवाई गई है ताकि महंगाई के मुद्दे पर विपक्ष के तीखे तेवरों को ठंडा किया जा सके। 2008 में जब हम वैश्विक वित्तीय संकट के चलते रिवर्स गियर में जा रहे थे और कोटक सिक्यूरिटीज ने कहा था कि जीडीपी की विकास दर 5 फीसदी के नीचे और शंकर शर्मा ने कहा था कि यह दर 3 फीसदी तक चली जाएगी, तब भी मुंबई में कोई अपना मनपसंद घर नहीं खरीद पाया था। कीमतें कागज पर घटी थीं, हकीकत में नहीं।

विले पारले में रीयल्टी के दाम 15,000 रुपए से टूटकर 11,000 रुपए प्रति वर्गफुट पर आ गए थे। लेकिन उस दर पर कोई बड़े सौदे नहीं हुए और दाम फिर से छलांग लगाकर 22,000 रुपए प्रति वर्गफुट पर आ गए। इसलिए इस बार भी कागज पर भाव घटकर 18,000 रुपए पर आ जाएंगे, लेकिन साल भर बाद निश्चित रूप से 25,000 से 28,000 रुपए प्रति वर्गफुट पर चले जाएंगे। फिर भी जो लोग खामख्याली में जीना चाहते हैं, उन्हें ऐसा करने से भला कौन रोक सकता है!!

रीयल्टी ही दरअसल इकलौता ऐसा क्षेत्र में जो इस समय अच्छा-रिटर्न दे सकता है। इसमें ओबेरॉय या लोढ़ा जैसे नई पीढ़ी के स्टॉक चमकदार दिखते हैं लेकिन उन पर देनदारियों और कर्ज के चक्र का खतरा आ सकता है। लेकिन एचडीआईएल, एचसीसी, सेंचुरी, बॉम्बे डाईंग, मफतलाल, प्रीमियर, आईएचपी, गल्फ ऑयल, आरडीबी और रेमंड्स जैसे स्टॉक्स में यकीनन कोई खतरा नहीं है। चुनाव करना आपके हाथ में है। मुझसे पूछें तो मैं सेंचुरी और बॉम्बे डाईंग पर दांव लगाऊंगा क्योंकि वे अपना एफएसआई (फ्लोर स्पेस इंडेक्स) 20,000 रुपए की दर पर बेचें जो नई पीढ़ी के बिल्डरों की खरीद लागत से कम है, तब भी उन्हें 15,000 रुपए प्रति वर्गफुट का फायदा होगा क्योंकि आप ताज महल भी बनाएं तो प्रति वर्गफुट 5000 रुपए से ज्यादा नहीं लगेंगे और यह रकम भी ग्राहकों से हर चरण में मिलती जाएगी और आपको ऋण लेने की कोई जरूरत नहीं होगी।

दूसरे एकदम सुरक्षित स्टॉक हैं – आईएफसीआई, आईडीबीआई बैंक, जिंदल सॉ, एस्सार ऑयल, आरआईएल और जिंदल एसडब्ल्यू। भारत में कोई ऐसा तरीका नहीं है कि फ्रंट-रनिंग या बेनामी खेल रोका जा सके। भारत में ऐसा कोई तरीका नहीं है कि शेयरों में जोड़तोड़ थामी जा सके। एक तबका है जो हमेशा मुनाफा कमाता है और यह तबका ही बाजार का बीमा है। मेरी मत सुनें। अपना दिमाग लगाएं। आपको लगता है कि खरीदना चाहिए तो खरीदें, नहीं तो शॉर्ट होने से बचे रहें। अगर आप को लगता है कि शॉर्ट सेलिंग करनी है तो शॉर्ट करें, लेकिन नुकसान होने पर अपनी किस्मत को दोषी न ठहराएं।

किसी बुद्धिमान-समझदार इंसान से मेज पर आमने-सामने बैठकर की गई एक घंटे की बातचीत भी महीने भर की गई किताबों की घोखाई के बराबर है।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ हैलेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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