संधि टैक्स हटाने की तो लगाएंगे कैसे

अगर बजट में घोषित आयकर कानून का प्रस्तावित संशोधन लागू कर दिया गया तो अब तक हुई सारी दोहरा कराधान बचाव संधियां (डीटीएए) निरस्त हो जाएंगी क्योंकि इन संधियों का मकसद ही खास परिस्थितियों में खास किस्म की आय को टैक्स की कम या शून्य दरों का फायदा देना है। भारत सरकार ने 82 देशों के साथ ऐसी संधियों पर दस्तखत कर रखे हैं। इनमें मॉरीशस ही नहीं, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, रूस, चीन, ब्रिटेन, बांग्लादेश और नेपाल तक शामिल हैं। सारे डीटीएए महत्वहीन हो गए तो ये 82 देश भी अपने यहां कार्यरत भारतीय इकाइयों पर टैक्स लगाएंगे। यह भारत सरकार के मकसद के खिलाफ जाता है।

असल में पी-नोट के मसले को जरूरत से ज्यादा ही फैला दिया गया है। हालांकि इस तरह अनावश्यक रायता फैलाना अपने यहां बहुत आम हो गया है। पिछले कई सालों से यही सब चल रहा है। जीएएआर (जनरल एंटी-एवॉयडेंस रूल्स) आयकर विभाग को निश्चित अधिकार देता है। लेकिन जहां तक टैक्स के स्वर्ग या पनाहगार माने जानेवाले देशों की बात है तो वे भारत में निवेश करनेवाली संस्थाओं को मूलतः अपने यहां का होने का प्रमाणपत्र जारी करते हैं जिसमें साफतौर पर लिखा होता है कि उनमें किसी भी भारतीय का मालिकाना 60 फीसदी से ज्यादा नहीं है। इन हालात में टैक्स अधिकारियों के लिए उनकी कमाई पर 15 फीसदी की दर से कर लगाना बहुत कठिन होगा।

वोडाफोन और पी-नोट के मामले में अंतर बस इतना है कि वोडाफोन जैसा विषय डीटीएए में परिभाषित नहीं है। इसलिए उसकी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट कर सकता था। वहीं, शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स को डीटीएए के अंतर्गत बिजनेस आय, स्वतंत्र कार्मिक सेवाओं, रॉयल्टी, टेक्निकल फीस वगैरह की तरह विशेष खंड में रखा गया है। इसलिए उसकी परिभाषा के लिए संशोधित आयकर कानून की धारा 90 का सहारा लेने की कोई जरूरत नहीं है। आयकर कानून की धारा 9, 90 और 90 ए में प्रस्तावित संशोधन भारत केंद्रित ईटीएएफ, एडीआर व जीडीआर को भी भारत में कर की जद में ले आएगा क्योंकि ये सभी आस्तियां मूलतः भारतीय आस्तियां हैं।

वैसे, भारतीय आयकर अधिकारियों एडीआर व जीडीआर सौदों को पकड़ पाना तक बेहद मुश्किल होगा क्योंकि कानूनन एडीआर व जीडीआर की ट्रेडिंग को भारत में पंजीकृत कराने की कोई जरूरत नहीं है। इस बात से कोई इनकार नहीं कि पी-नोट्स की तर्ज पर भारतीय कंपनियों के एडीआर/जीडीआर जिन शेयरों पर टिके हैं, वे भारत की आस्तियां हैं। वोडाफोन का मामला ऐसा ही था, जिसमें भारतीय आस्ति को बेचने का सौदा बाहर किया गया। लेकिन अब इस पर अगर भारत में टैक्स लगाने का प्रावधान किया जा रहा है तो कानूनन एडीआर और जीडीआर भी कर के दायरे में आ जाएंगे।

एडीआर और जीडीआर पर टैक्स लगाने की जटिलता निश्चित रूप से वित्त मंत्रालय को पी-नोट्स के साथ ही प्रस्तावित संशोधन की खामियों पर विचार करने को बाध्य कर देगी। दरअसल, वित्त मंत्री आधिकारिक रूप से कह चुके हैं कि संशोधन को लिखते वक्त पी-नोट का मसला कहीं दिमाग में था ही नहीं। इसलिए बहुत मुमकिन है कि प्रस्तावित संशोधन को केवल एफडीआई संबंधित सौदों तक सीमित कर दिया जाए और डीटीएए के विशिष्ट प्रावधानों के तहत आनेवाले निवेश को इससे बाहर कर दिया जाए।

बाजार गिरता जा रहा है। कैश सेटलमेंट की पीड़ा साफ नज़र आ रही है। हालांकि आज एक बजे के बाद बाजार सुधरने लग गया तो निफ्टी की गिरावट महज 15.90 अंकों तक सिमट गई। निफ्टी फ्यूचर्स का आखिरी भाव 5180 रहा है। इस उथलपुथल और तकलीफ का तब तक कोई अंत नहीं है जब तक एनएसई लाखों ट्रेडरों को बचाने के लिए आगे नहीं आता। लेकिन ऐसा होने की कोई सूरत भी नहीं दिख रही। मेरा मानना है कि निफ्टी यहां से पलटकर उठेगा क्योंकि कल से नई पोजिशन बननी शुरू हो जाएंगी।

अगर सारी संभावित दिक्कतों को पहले सुलझाने लेने की शर्त लगा दी जाए तो इस दुनिया में कभी कोई कोशिश ही नहीं होगी और कोई चल ही नहीं पाएगा, कुछ भी नहीं हो पाएगा।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं पड़ना चाहता। इसलिए अनाम है। वह अंदर की बातें आपके सामने रखता है। लेकिन उसमें बड़बोलापन हो सकता है। आपके निवेश फैसलों के लिए अर्थकाम किसी भी हाल में जिम्मेदार नहीं होगा। यह मूलतः सीएनआई रिसर्च का कॉलम है, जिसे हम यहां आपकी शिक्षा के लिए पेश कर रहे हैं)

1 Comment

  1. bhaut bardea sir.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *