हिंदीवालों को दोयम समझनेवाले खुद निपटे, इकनॉमिक टाइम्स हिंदी बंद

इकनॉनिक टाइम्स एकमात्र दिल्ली से छपनेवाला अपना हिंदी संस्करण बंद करने जा रहा है। आज, गुरुवार को उसकी टीम आखिरी बार अखबार का काम करेगी और कल शुक्रवार को उसका आखिरी अंक आएगा। फिर पटाक्षेप। तीन साल दस महीने दस दिन पहले 19 फरवरी 2008 को जब यह अखबार शुरू हुआ था तो प्रबंधन की तरफ से बड़े-बड़े वादे किए गए थे। हिंदी समाज को भी इससे बड़ी अपेक्षाएं थीं। लेकिन कम से कम लागत में ज्यादा से ज्यादा धंधा बटोरने के मकसद से शुरू हुआ यह ‘उद्यम’ बंद ही होना था।

इस अखबार में कुछ भी मौलिक नहीं था। सारा कुछ अंग्रेजी संस्करण का अनुवाद। वह भी इतना घटिया कि असली बात को समझने के लिए मूल अंग्रेजी संस्करण पढ़ना पड़ता था। जहां अमूमन किसी भी सामान्य दैनिक हिंदी अखबार में कम से कम 50-60 लोगों को संपादकीय विभाग होता है, वहीं आर्थिक व वित्तीय मसलों पर केंद्रित यह अखबार मात्र 20-22 लोगों से चलाया जा रहा है। वह भी उद्योग के औसत से कम वेतन देकर। हिंदी इकनॉमिक टाइम्स का कोई अलग संपादक नहीं था। सारे के सारे अनुवादक।

जाहिर है, समीर जैन के नेतृत्व वाली बेनेट कोलमैन एंड कंपनी ने हिंदी समाज व पाठकों को बस नोट खींचने का जरिया समझा था। उनकी प्रबंधन टीम की आंतरिक सोच-समझ थी कि इन ‘घटिया’ लोगों को कुछ भी फेंक दो, चलेगा। कोई जवाबदेही नहीं, बस नोट कमाने की फितरत। अब डंका बजाया जाएगा कि हिंदीभाषी समाज में तो निवेशक ही नहीं हैं। वहां आर्थिक व वित्तीय मसलों को जानने की कोई इच्छा नहीं नहीं है।

यह देश के करीब 55 करोड़ के हिंदी भाषी समाज का अपमान है। लेकिन एक सकारात्मक बात भी इस घटना में छिपी है कि जमीन से जुड़े इस समाज को चरका पढ़ाना इतना आसान नहीं है। इसके सामने कुछ ही फेंककर नहीं चला जा सकता। यहां उसकी जरूरत व समझ को समझकर ही उस तक कोई उत्पाद या सेवा पहुंचाई जा सकती है। यहां मौलिकता ही चलेगी, फेंकी गई जूठन नहीं।

हालांकि इकनॉमिक टाइम्स की शुरुआत करते हुए बड़े मौलिक दावे किए गए थे। उन्हीं के शब्दों में, “इकनॉमिक टाइम्स अब डेली अखबार पेश कर रहा है, जो न सिर्फ बिज़नस की खबरें देगा, बल्कि आपके हिसाब से उसकी अनैलसिस भी करेगा। मुकेश अंबानी अपने रिटेल वेंचर में आगे क्या करने जा रहे हैं, यह जानकारी आपको दी जाती है। लेकिन अगर आपको यह नहीं बताया जाए कि मुकेश अंबानी के इस कदम से हमारे उन रीडर्स पर क्या असर पड़ेगा, जो बिज़नस से जुड़े हैं तो ऐसी सूचना का महत्व कम हो जाएगा। अगर वित्त मंत्री किसी प्रॉडक्ट पर इनडायरेक्ट टैक्स बढ़ा दें या किसी चीज में सेस (अधिभार) जोड़ दें तो इस खबर के साथ यह भी बताना होगा कि टैक्स चुकाने वाले कंस्यूमर पर इसका क्या असर पड़ेगा।”

आप इकनॉमिक टाइम्स के उक्त दावे को पढ़कर समझ सकते हैं कि पहले ही दिन से इसका बंद होना क्यों तय था। जो अखबार हिंदी पाठकों को पहले दिन से ‘रीडर्स’ कह रहा हो, उसकी जुबान एक न एक दिन कटनी ही थी। लेकिन दिक्कत यह है कि समीर जैन एंड कंपनी ने हिंदी में आर्थिक अखबार चलाने की हिम्मत करनेवालों की नाक एक बार फिर काट दी है। इससे भी ज्यादा दुःखद यह है कि इसने उन दो लाख हिंदी पाठकों की भावनाओं पर कुठाराघात किया है जिसने शुरुआत में इस अखबार को हाथोंहाथ लिया था। इन्हीं में एक पाठक की शुरुआती प्रतिक्रिया पर गौर फरमाइए…

“इकनॉमिक टाइम्स का हिंदी में छपना केवल एक नए अखबार का लॉन्च नहीं है, यह देश के बदलते आर्थिक परिदृश्य और हिंदी को अर्थ और बाजार में मिलते महत्व को भी दर्शाता है। देशी-विदेशी कॉरपोरेट जगत के समाचारों को हिंदी में पढ़ने का अलग ही मजा है। उम्मीद है कि शेयर बाजार जैसे विषय अब केवल अंग्रेजी जानने वालों के लिए ही नहीं होंगे और अंग्रेजी न जानने वाले भी अब शेयर बाजार में अधिक मात्रा में अपने हाथ आजमाएंगे। अब हिंदी पढ़ने वाले इस अखबार से समृद्ध हों या नहीं इतना तय है कि इस संस्करण से हिंदी कुछ और समृद्ध हुई है।”

2 Comments

  1. sirji, me aaj bahot khus hu, kyuki aap jo kaam karna chate the wo kaam s.p.tulsiyan or cnbc awaz ne kar dikhaya, mkt me naye naye ipo ye saal aye the usme se 7 ipo ko sebi ne baan kiya he or unke upper 100page ke notice jari kiye he or unke saabi shr mkt se dilist kiya gaya he, aap essi tarah yaha likte rahe taki aap ki coloum se future me fatka chal raha he wo bhi khatam ho jaye, or aap chuti mana rahe he, acha he. mkt jan me bahot jore se jump mare ga,

  2. Anil Ji,
    Asha karta hoon ki ek din mere haath main arthakaam ki Patrika aur Samachaar patra honge.Jaanta hoon iske liye artha sahayta ki bharpoor jaroorat hogi ,main kama raha hoon keval isiliye ki parivaar chaalane ke saath saath aap jaise desh bhakto ki madad bhi kar sakoon .Yah madad kamobase her maheene jaari rahegi.

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