बिजली नहीं बीमा है गुजरात इंडस्ट्रीज

गुजरात इंडस्ट्रीज पावर कंपनी लिमिटेड गुजरात सरकार की कंपनी है जिसने इसमें अपनी चार कंपनियों गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स, गुजरात एल्कलीज एंड केमिकल्स, गुजरात ऊर्जा विकास निगम और पेट्रोफिल्स को-ऑपरेटिव के जरिए इसकी 58.21 फीसदी इक्विटी ले रखी है। वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी की बिक्री 14.78 फीसदी बढ़कर 1077.95 करोड़ और शुद्ध लाभ 52.60 फीसदी बढ़कर 162.95 करोड़ रुपए हो गया। कंपनी ने दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर 2.50 रुपए (25 फीसदी) लाभांश भी घोषित किया है।

फिर भी 24 मई को इन नतीजों की घोषणा के एक महीने बाद शुक्रवार, 24 जून को उसका शेयर (बीएसई – 517300, एनएसई – GIPCL) 73.65 रुपए तक गिर गया जो 52 हफ्ते का उसका न्यूनतम स्तर है। हालांकि वह बंद हुआ है बीएसई में 73.85 रुपए और एनएसई में 73.80 रुपए पर। बीएसई के बी ग्रुप में है। बीएसई-500 सूचकांक में शामिल है। शेयर में तरलता ठीकठाक है। बाजार पूंजीकरण 1116 करोड़ रुपए है। सो, इसे मिडकैप की श्रेणी में रखा जा सकता है।

सालाना नतीजों के अनुसार उसका सालाना ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 10.77 रुपए है। यानी, 73.80 रुपए के बाजार भाव पर उसका शेयर 6.85 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। कंपनी की शेयर पूंजी 151.25 करोड़ रुपए है, जबकि उसके पास 1213.82 करोड़ रुपए के रिजर्व हैं। इस तरह उसकी नेटवर्थ हुई 1365.13 करोड़ रुपए। इसे कुल जारी शेयरों की संख्या (15.125 करोड़) से भाग देने पर कंपनी की प्रति शेयर बुक वैल्यू निकलती है 90.25 रुपए यानी शेयर के बाजार भाव की 1.22 गुना। मुझे नहीं लगता कि इस स्टॉक की वित्तीय मजबूती के लिए और किसी आंकड़े की जरूरत है। यहीं पर एक बात और नोट कर लेनी चाहिए कि कंपनी बराबर लाभांश देती रही है और उसका लाभांश यील्ड 3.385 फीसदी है।

सवाल फिर वही उठता है कि अगर सब कुछ इतना ही अच्छा है तो कंपनी का शेयर इतना ज्यादा नीचे क्यों पहुंच गया? बता दें कि सरकारी क्षेत्र की बिजली कंपनियों में एनटीपीसी इस समय 15.5, एनएचपीसी 12.0, पावर ग्रिड कॉरपोरेशन 17.7 और नैवेली लिग्नाइट 12.4 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहे है। निजी बिजली कंपनियों में रिलायंस पावर का पी/ई अनुपात 41.5, टाटा पावर का 14.7, टोरेंट पावर का 10.5 और अडानी पावर का 47.1 चल रहा है। यानी, 6.85 के पी/ई अनुपात पर यह बिजली क्षेत्र का सबसे सस्ता स्टॉक है।

खुद से ही तुलना करें तब भी गुजरात इंडस्ट्रीज पावर कंपनी का शेयर फिलहाल दो साल के सबसे कम मूल्यांकन या पी/ई पर चल रहा है। जून 2009 में इसका पी/ई अनुपात 14.03 था, जबकि जनवरी 2010 में 24.06 तक गया था। अभी पिछले माह मई 2011 तक में यह 12.68 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हुआ है। इसका 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 126.90 रुपए का है जो इसमें 9 जुलाई 2010 को हासिल किया था। इसलिए लगता है कि कंपनी में लंबे समय के लिए निवेश फायदे का सौदा है। हां, इतना जरूर है कि इसमें बीएसई-एनएसई को मिलाकर रोज का औसत वोल्यूम 25-30 हजार शेयरों का रहता है। किसी भी म्यूचुअल फंड को इसमें निवेश करने पर तरलता की मुश्किल होती है क्योंकि वे लाखों शेयरों की खरीद-फरोख्त करते हैं। लेकिन आम निवेशक, जिसको 500-1000 शेयर खरीदने बेचने हैं, उसे इसमें लिक्विडिटी की कोई दिक्कत नहीं आएगी।

कंपनी मूलभूत रूप से काफी मजबूत और संभावनामय है। 1992 में उसने वडोदरा में 145 मेगावॉट का पहला गैस आधारित बिजली संयंत्र चालू किया तो सारी की सारी बिजली अपनी प्रवर्तक कंपनियों को बेचती थी। उसके बाद उसने 1997 में वडोदरा में ही नैप्था व गैस आधारित 165 मेगावॉट का संयंत्र लगाया। 1999 में उसने सूरत जिले के नानी नरोली गांव में में 250 मेगावॉट का लिग्नाइट आधारित बिजली संयंत्र लगाया। सूरत में उसके पास अपनी लिग्नाइट खदानें भी हैं। अभी साल भर पहले अप्रैल 2010 में उसने नानी नरोली में ही 250 मेगावॉट (125 मेगावॉट की दो इकाइयां) की नई क्षमता लगाई है। इस तरह उसके पास अभी 810 मेगावॉट बनाने की क्षमता है। 500 मेगावॉट के नए संयंत्र लगाने के लिए उसे सारी आवश्यक मंजूरियां मिल चुकी हैं। इस क्षमता विस्तार पर तेजी से काम चल रहा है। कंपनी ने अपनी सारी बिजली के लिए गुजरात ऊर्जा विकास निगम के साथ पीपीए (पावर परचेज एग्रीमेंट) कर रखा है। वैसे भी, बिजली जैसी कम उपलब्धता वाली चीज और गुजरात जैसे तेजी से और ज्यादा औद्योगिक होते जा रहे राज्य में कंपनी को अपने धंधे में ठंडक शायद ही कभी झेलनी पड़े। हां, बिजली के लिए गैस वगैरह की दिक्कत कभी-कभी आ सकती है। लेकिन बिजली जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर को अहमियत देना किसी भी सरकार की मजबूरी है।

अभी बिजली उत्पादन में केंद्र सरकार की कंपनियों – एनटीपीसी, एनएचपीसी और नैवेली लिग्नाइट वगैरह का ही बोलबाला है। लेकिन उन्हें अपनी बिजली राज्य विद्युत बोर्डों के जरिए ही बेचनी पड़ती है। ऐसे में राज्य की ही कोई बिजली कंपनी बेहतर स्थिति में आ जाती है। इधर दो साल पहले केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) ने बिजली दरों के ऐसे मानक तय कर दिए हैं कि 2009-10 से मौजूदा बिजली संयंत्रों का इक्विटी पर रिटर्न 14 फीसदी से बढ़कर 15.5 फीसदी हो गया है। मुनाफे के लिहाज से कंपनी के लिए 2008-09 का साल ठीक नहीं रहा था। लेकिन उसके बाद से वो लगातार प्रगति कर रही है। उसका परिचालन लाभ मार्जिन 2010-11 में 29.05 फीसदी रहा है। इसमें भी मार्च 2011 की तिमाही में तो यह 51.60 फीसदी की जबरदस्त ऊंचाई पर रहा है। मुझे इस शेयर के यूं तलहटी पर पहुंच जाने का कोई तुक नहीं दिखता। इसलिए इसमें ‘बॉटम फिशिंग’ करने में कोई हर्ज नहीं है।

कंपनी की इक्विटी में पब्लिक की हिस्सेदारी 41.79 फीसदी है। इसमें से घरेलू निवेशक संस्थाओं (डीआईआई) के पास 27 फीसदी और एफआईआई के पास 2.02 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 70,806 है। प्रवर्तकों से अलग उसके बड़े शेयरधारकों में आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस (5.11 फीसदी), एलआईसी (3.48 फीसदी) और बजाज एलियांज लाइफ (2.44 फीसदी) शामिल हैं। इस तरह बीमा कंपनियों का कंपनी में निवेश करना दिखाता है कि वे इसे लंबे समय के लिए लाभप्रद मान रही हैं।

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