यहां ललचाई नजरें खाती हैं धोखा

सारे साधन-संसाधन मौजूद हैं। श्रम का साथ मिल जाता है तो वे बदलकर मूल्यवान बन जाते हैं। खेत में एक बीज डालें, सौ बीज निकलते हैं। वो बीज जो पहले धरती पर नहीं थे। इसी तरह कंपनियां वो दौलत पैदा करती हैं जो पहले इस दुनिया में थी ही नहीं। पूंजी और श्रम के मेल से पैदा होती है यह दौलत। पूंजी भी श्रम का ही संघनित रूप है। मारुति सुजुकी को श्रमिकों की तीन चरणों में चली हड़ताल से करीब 2000 करोड़ रुपए की पूंजी गंवानी पड़ी। मजदूर श्रम से दूर रहे तो सारी मशीनों व संयंत्रों के बावजूद पूंजी नहीं बनी।

शेयर बाजार में लंबा निवेश पूंजी व श्रम के मेल से बन रही इस नई दौलत में हिस्सेदारी का तरीका है। ट्रेडिंग तो बस इस जेब का पैसा निकालकर उस जेब में डालने जैसा है। हालांकि बाजार में तरलता या लिक्विडिटी पैदा करने के लिए ट्रेडिंग जरूरी है। इसके बिना आपका निवेश जड़ हो जाएगा, बढ़ नहीं सकता। लेकिन अलग से देखने पर ट्रेडिंग भावनाओं को फायदा उठाकर किसी को लूटने जैसा अनैतिक कृत्य लगता है। उसी तरह जैसे लॉटरी या कौन बनेगा करोड़पति जैसे शो अनैतिक हैं। लाखों लोगों से जुटाया गया धन उन्हीं के बीच के दस-बीस लोगों को दे दिया जाता है। जिनको मिला वो खुश, जिनको नहीं मिला, उनको लगता है कि 10-20 या 100 रुपए ही तो गए हैं। इस बार नहीं तो हो सकता है कि अगली बार अपनी किस्मत चटक जाए।

खैर, ज्यादा नहीं। गुरु नानक जयंती की छुट्टी का दिन है तो आपके सोचने के लिए इतना मसला फेंक दिया। बाकी छुट्टी मनाइए। सोचिए-विचारिए। शेयर बाजार को ललचाई नजरों से नहीं, देश के आर्थिक विकास का फल पाने के साधन के रूप में देखिए। औरों की नहीं, अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना सीखिए। समझदारी से निवेश कीजिए। पिछले हफ्ते इसी कॉलम में लिखे कुछ और सूत्रों पर भी गौर कीजिए…

  • पहले घर एक-मंजिला हुआ करते थे। अब बहु-मंजिला होते हैं। पहले धन-दौलत सोने-चांदी के सिक्कों या बर्तनों के रूप में जमीन या दीवार में गाड़कर बचाई जाती है। अब लोग अपनी बचत बैंक एफडी, म्यूचुअल फंड या शेयरों जैसे अनाकार माध्यमों में लगाते हैं। पहले मुद्रास्फीति नहीं थी तो बचत जितना रखो, उतनी ही रहती थी। अब खोखली होती जाती है। इसलिए आप कमाकर बचाते हैं, यह पर्याप्त नहीं। आपकी बचत को भी कमा पड़ेगा। कम या ज्यादा, यह आपकी निवेश अक्ल व कौशल से तय होगा। बचत जब आपके लिए कमाती है, तब संपदा (वेल्थ) बनाती है। हम संपदा बनाने के इसी प्रयास में आपकी मदद के लिए हैं। एक पूरा चक्र है जिसे आपके साथ पकड़ने-समझने की कोशिश चल रही है।
  • अक्सर मुझे लगता है कि किसी खास शेयर को खरीदने या बेचने की सलाह महज एक उकसावा भर होती है ताकि लोगों की दिलचस्पी बनी रहे और बाजार की खटर-पटर चलती रही। अनुमानों के पीछे कितना भी गणित गिनाया जाए, कुछ न कुछ पहलू छूट ही जाते हैं जिससे तीर निशाने पर नहीं लगता।
  • मुंबई की लोकल ट्रेनों में गैंग बनाकर चलनेवाले यात्री जब करताल बजाकर गाना शुरू करते हैं तो समूचा कोच सिर पर उठा लेते हैं। पूरा माहौल विचित्र तरंग व उल्लास से भर जाता है। इतना ज्यादा कि कभी-कभी डर लगने लगता है। कुछ ऐसा ही हाल हमारे शेयर बाजार के डे-ट्रेडरों का है। इशारा मिला नहीं कि करताल बजाकर किसी शेयर को आकाश से पाताल या पाताल से आकाश तक पहुंचा देते हैं। हल्ला मचाते हैं क्विंटल भर का, लेकिन सत्व होता है तोला भर का।

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