44.64 लाख करोड़ रुपए से अधिक की हुई अर्थव्यवस्था, 8.5% बढ़ेगी इस साल

कोई आपसे पूछे कि भारतीय अर्थव्यवस्था कितनी बड़ी है तो आप बेझिझक बता सकते हैं कि यह अभी 44,64,081 करोड़ रुपए की है, वह भी तब जब इसमें से 2004-05 के बाद की मुद्रास्फीति या महंगाई के असर को निकाल दिया गया है। अगर सारा कुछ आज की कीमत के हिसाब से बोलें तो हमारी अर्थव्यवस्था का आकार 58,68,331 करोड़ रुपए का है। लेकिन हम महंगाई के असर को जोड़कर नहीं, हटाकर ही बात करते हैं क्योंकि झूठमूठ की लमतड़ानी के क्या फायदा?

केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन (सीएएसओ) की तरफ से सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2009-10 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2004-05 की स्थिर कीमतों पर 44,64,081 करोड़ रुपए रहा है, जो वित्त वर्ष 2008-09 के इसी जीडीपी 41,54,973 करोड़ रुपए की तुलना में 7.4 फीसदी ज्यादा है। हालांकि अगर हम 2004-05 के मूल्यों के बजाय बाजार के मौजूदा मूल्यों को आधार बनाएं तो जहां 2008-09 में हमारा जीडीपी 52,28,650 करोड़ रुपए था, वहीं 2009-10 में यह 12.2 फीसदी बढ़कर 58,68,331 करोड़ रुपए हो गया है। लेकिन सरकार या कोई भी नीति-नियामक हमेशा मुद्रास्फीति के असर को निकालकर बात करते हैं क्योंकि नीतियां हवाबाजी पर नहीं, ठोस हकीकत के आधार पर बनाई जाती हैं।

सरकार इस बात से खुश है कि जहां सीएसओ ने इसी साल 8 फरवरी को अर्थव्यस्था य जीडीपी में 7.2 फीसदी विकास का अग्रिम अनुमान व्यक्त किया था, वहीं असल विकास की दर 7.4 फीसदी निकली है। सोमवार को सुबह इन आंकड़ों के जारी होने के बाद वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने भरोसा जताया कि चालू वित्त वर्ष 2010-11 में आर्थिक विकास की दर 8.5 फीसदी से ज्यादा रहेगी। उन्होंने राजधानी दिल्ली में संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि विकास दर का कुल मिलाकर 7.2 फीसदी से ऊपर जाना सुखद है। मैं पहले ही इस साल के लिए 8.5 फीसदी प्लस की बात कर चुका हूं।

बता दें कि जीडीपी का यह आंकड़ा ‘फैक्टर कॉस्ट’ पर है। इसका मतलब यह हुआ कि इसमें देश के सारे उत्पादन व सेवाओं के मूल्य को जोड़कर उसमें से पहले अप्रत्यक्ष कर (एक्साइज ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी व सर्विस टैक्स वगैरह) से प्राप्त रकम को घटाया गया है। फिर इस तरह मिले आंकड़े में सरकार द्वारा दी गई हर सब्सिडी की राशि जोड़ दी गई है। जीडीपी में विदेशों से हासिल आय भी नहीं जोड़ी जाती। अगर इसे जोड़ तो यह जीएनपी (सकल राष्ट्रीय आय) बन जाता है। 2009-10 हमारा जीएनपी 44,39,072 करोड़ रुपए है जो 44,64,081 करोड़ रुपए के जीडीपी से कम है क्योंकि इस दौरान हमें विदेश से आय नहीं, नुकसान उठाना पड़ा है।

दिलचस्प बात यह भी रही कि 2009-10 की चौथी तिमाही में जीडीपी की विकास दर 8.6 फीसदी रही है, जबकि फरवरी में सीएसओ का अनुमान 7.9 फीसदी का था। इसकी वजह कृषि, खनन व मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में अपेक्षा से बेहतर विकास है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का कहना था कि अगर ऐसा पहले हो गया होता तो शायद हम जीडीपी में और भी अच्छी विकास दर हासिल कर लेते।

1 Comment

  1. पढ़ लिया जी| पूरा पढ़ लिया|

    पर मन की बात कहने वाला अनिल अब जाने क्यों पुराना हिन्दी ब्लॉग नहीं लिखता? आप उस अनिल से मिले तो कहिएगा कि दोस्त उसे बुला रहे हैं|

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