नोवार्टिस गई भी तो देकर ही जाएगी

नोवार्टिस फार्मा क्षेत्र की बहुराष्ट्रीय कंपनी है। इंसानों से लेकर जानवरों तक की दवाएं बनाती है। 1996 में सीबा-गेगी और सैंडोज के विलय के बाद वजूद में आई। इसका मुख्यालय स्विटजरलैंड के शहर बासेल में है। अभी कल ही मशहूर फॉर्च्यून पत्रिका में इसे दवा कारोबार में दुनिया की सबसे पसंदीदा कंपनियों में पहले नंबर पर रखा है। लेकिन इसकी भारतीय इकाई नोवार्टिस इंडिया के शेयरों पर खास चमक नहीं आई। कारण वाजिब भी लगता है क्योंकि दुनिया के 140 देशों में मौजूद नोवार्टिस ने भारतीय इकाई को इस काबिल भी नहीं समझा है कि उसे अपनी वेबसाइट पर अलग से जगह दे।

कंपनी ने भारत से बस कमाई करने के लिए नोवार्टिस इंडिया को बना रखा है। यह अभी केवल बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (कोड – 500672) में लिस्टेड है। पहले कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज (सीएसई) में भी लिस्टेड थी। लेकिन इसी साल 17 जनवरी 2011 से कंपनी ने खुद को वहां से डीलिस्ट करा लिया है। कंपनी के इरादे अच्छे नहीं लगते और वह कभी भी खुद को बीएसई से भी डीलिस्ट करा सकती है। कारण, कंपनी की 15.98 करोड़ रुपए की इक्विटी का 76.42 फीसदी हिस्सा मूल प्रवर्तक कंपनी नोवार्टिस एजी के पास है, जबकि पब्लिक का हिस्सा 23.58 फीसदी है। इसमें से भी डीआईआई व एफआईआई के पास 1.43 फीसदी, कॉरपोरेट निकायों के पास 2.75 फीसदी और अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) के पास 0.55 फीसदी शेयर हैं।

19 निवेशक ऐसे हैं जिनके पास कंपनी के एक लाख रुपए से अधिक के शेयर हैं। इनमें लालभाई समूह की कंपनी अतुल लिमिटेड भी शामिल हैं जिसके पास नोवार्टिस इंडिया के 1.20 फीसदी शेयर हैं। बाकी कंपनी के कुल आम निवेशकों (एक लाख रुपए से कम के शेयर रखनेवालों) की संख्या 40,749 हैं और इनके पास उसके 16.04 फीसदी शेयर हैं।

नियमतः किसी भी लिस्टेड कंपनी में पब्लिक की हिस्सेदारी कम से कम 25 फीसदी होनी चाहिए। इस शर्त को पूरा करने के लिए नोवार्टिस इंडिया को या तो एफपीओ लाकर अपनी मूल कंपनी की हिस्सेदारी 75 फीसदी से कम करनी होगी या उसकी हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ाकर 90 फीसदी पर ले जाकर कंपनी को डीलिस्ट करा देना होगा। बड़ी संभावना इस बात ही है कि वह अपने को कुछ समय बाद डीलिस्ट करा देगी। लेकिन अगर यह खुद को कभी डीलिस्ट कराती है तो इसे सभी तत्कालीन शेयरधारकों से अपने शेयर बायबैक या वापस खरीदने पड़ेंगे। और, बायबैक से पहले अमूमन शेयर के दाम बढ़ते हैं। अगर ओपन ऑफर के दाम ज्यादा हों तब तो इंतजार करना चाहिए, नहीं तो पहले ही इसे बेचकर मुनाफा कमा लेना चाहिए।

इसलिए इसमें निवेश करने में कोई हर्ज नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि नोवार्टिस इंडिया का शेयर अभी अपेक्षाकृत सस्ते भाव में मिल रहा है। कल बीएसई में इसका पांच रुपए अंकित मूल्य का शेयर 627.05 रुपए पर बंद हुआ है। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर शुद्ध लाभ) 43.93 रुपए है। इस तरह उसका शेयर मात्र 14.27 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है जो नोवार्टिस जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिए काफी कम माना जाएगा। इसका 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 735 रुपए है जो उसने 11 नवंबर 2010 को हासिल किया था। साल भर पहले 5 मार्च 2010 को उसने 520.50 रुपए का न्यूनतम स्तर पकड़ा था। कंपनी पिछले कई सालों से प्रति शेयर 10 रुपए (5 रुपए के शेयर पर 200 फीसदी) लाभांश देती रही है।

अभी नोवार्टिस इंडिया के स्टॉक में पैसा डाला जा सकता है क्योंकि यह सुरक्षित रहेगा और ठीकठाक रिटर्न देकर जाएगा। कंपनी का धंधा दुरुस्त चल रहा है। दिसंबर 2010 की तिमाही में उसकी बिक्री 14.7 फीसदी बढ़कर 184 करोड़ रुपए हो गई है, जबकि शुद्ध लाभ 74.6 फीसदी बढ़कर 40.5 करोड़ रुपए हो गया है। कंपनी ने बीते वित्त वर्ष 2000-10 में 658.23 करोड़ रुपए की आय पर 115.99 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। इसके बाद से अब तक उसके शुद्ध लाभ मार्जिन (एनपीएम) और परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) में भी बेहतरी आई है।

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