कोमा में जाने या मरने पर हम विचार-शून्य, भाव-शून्य, शब्द-शून्य हो जाते हैं। लेकिन क्या जीते-जी ऐसा संभव है जब हमें सिर्फ नाद सुनाई दे, जब हम सारे शब्दों-विकारों से मुक्त होकर दुनिया को देख सकें?
2010-11-27
कोमा में जाने या मरने पर हम विचार-शून्य, भाव-शून्य, शब्द-शून्य हो जाते हैं। लेकिन क्या जीते-जी ऐसा संभव है जब हमें सिर्फ नाद सुनाई दे, जब हम सारे शब्दों-विकारों से मुक्त होकर दुनिया को देख सकें?
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कई बार ध्यान पता नहीं कहाँ गायब हो जाता है।