विदेशी मुद्रा भंडार हुआ विदेशी ऋण से कम, रुपए पर रिजर्व बैंक बेबस

देश का विदेशी मुद्रा भंडार देश पर चढ़े विदेशी ऋण से कम हो गया है। इन हालात में रिजर्व बैंक चाहकर भी रुपए को गिरने से बचाने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। शुक्रवार को वित्त राज्य मंत्री नमो नारायण मीणा ने लोकसभा में बताया कि अद्यतन आंकड़ों के अनुसार भारत का विदेशी ऋण जून 2011 के अंत तक 316.9 अरब डॉलर का था। वहीं, रिजर्व बैंक की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक 25 नवंबर 2011 को हमारा विदेशी मुद्रा 304.36 अरब डॉलर पर आ गया है। यह सीधे-सीधे विदेशी ऋण से 15.5 अरब डॉलर कम है।

रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक महीने में देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 16.03 अरब डॉलर की कमी आई है। 28 अक्टूबर 2011 को यह 320.39 अरब डॉलर का था। देश के विदेशी मुद्रा भंडार अगर कम से कम विदेशी ऋण के बराबर रहता है, तभी स्थिति को संतोषजनक माना जाता है। इसका कम हो जाना देश के भुगतान संतुलन के लिए समस्या पैदा कर सकता है। वह भी तब, जब विदेशी पूंजी का आना थम रहा हो और व्यापार घाटा बढ़ रहा हो। इससे देश का चालू खाते का घाटा बढ़ जाता है जो अपने आप में चिंता का विषय है।

चिंता की बात यह भी है कि इस साल मार्च से जून के बीच देश पर चढ़ा विदेशी ऋण 11 अरब डॉलर बढ़ गया है। 31 मार्च 2011 तक यह 305.9 अरब डॉलर था, जबकि 30 जून 2011 तक 316.9 अरब डॉलर हो गया। इससे पहले 31 मार्च 2010 तक देश पर चढ़ा विदेशी ऋण 261 अरब डॉलर था। इस तरह बीते वित्त वर्ष 2010-11 में यह 17.2 फीसदी बढ़ा था।

हमारा वर्तमान विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी ऋण का 96.04 फीसदी रह गया है। ब्रोकरेज फर्म एसएमसी ग्लोबल के मुख्य रणनीतिकार व रिसर्च प्रमुख जगन्नाधम तुनगुंटला के मुताबिक, यह काफी चिंताजनक स्थिति है। वे बताते हैं कि पिछले पांच सालों में विदेशी मुद्रा भंडार और विदेशी ऋण का अनुपात पहली बार इतना नीचे आया है। 2006-07 में विदेशी मुद्रा भंडार देश के विदेशी ऋण का 115.6 फीसदी, 2007-08 में 138 फीसदी, 2008-09 में 112.2 फीसदी, 2009-10 में 106.9 फीसदी और 2010-11 में 99.5 फीसदी रहा है।

वे बताते हैं कि 2007-08 में विदेशी मुद्रा भंडार के विदेशी ऋण के 138 फीसदी होने का ही असर था कि हमारे पास डॉलर का बफर स्टॉक था। इसीलिए 2008 के भयंकर वैश्विक वित्तीय संकट के बीच भी डॉलर की विनिमय 52.17 रुपए तक ही जा पाई। लेकिन इस बार यूरोपीय संकट के जरा से झटके से यह दर 52.73 रुपए तक चली गई। हालांकि रुपया सुधरकर अब 51.38 पर आ चुका है। लेकिन अगर आगे कभी यूरोपीय संकट गहराता है तो रिजर्व बैंक के पास मूकदर्शक बने रहने के अलावा इस बार कोई चारा नहीं रहेगा।

तुनगुंटला कहते हैं कि विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप के लिए दो चीजें जरूरी हैं। एक, रिजर्व बैंक में हस्तक्षेप करने की इच्छा और दो, उसके पास हस्तक्षेप करने की क्षमता। साल 2008 की तुलना में इस बार अंतर यह है कि रिजर्व बैंक के पास क्षमता नहीं है। आज की तारीख में वह चाहे भी तो विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर बेचकर रुपए को उठा नहीं सकता। इसलिए विदेशी मुद्रा डीलरों और आयात-निर्यात के धंधे से जुड़े लोगों को बहुत सावधान रहने की जरूरत है।

हालांकि वित्त राज्य मंत्री मीणा ने लोकसभा में आश्वस्त करते हुए बताया कि, “भारत पर 316.9 अरब डॉलर के कुल विदेशी ऋण में दीर्घकालिक ऋण 248.4 अरब डॉलर और अल्पकालिक ऋण 68.5 अरब डॉलर है।” उन्होंने कहा कि भारत सरकार की विवेकपूर्ण विदेशी ऋण प्रबंधन नीति दीर्घकालिक व अल्पकालिक ऋण की निगरानी करने, लंबी अवधि वाले रियायती शर्तों वाले सरकारी ऋण जुटाने, विदेशी वाणिज्यिक उधारों को संभालने और अनिवासी भारतीय जमा पर ब्याज दरों को युक्तिसंगत बनाने पर जोर देती है।

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