वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और बीमा कंपनियों को हिदायत दी है कि वे उन तमाम कंपनियों से जुड़े लेन-देन की कायदे से जांच करें जिनके नाम सीबीआई ने हाउसिंग लोन घोटाले के सिलसिले में अदालत में दाखिल अर्जी में लिखे हैं। उन्होंने इन सभी संस्थाओं से कहा कि वे नामजद कंपनियों को दिए गए ऋणों का स्वतंत्र आकलन करें और देखें कि इनमें निर्धारित मानकों का पालन कहां तक हुआ है।
वित्त मंत्री ने स्थिति की समीक्षा के लिए गुरुवार को वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) के अधिकारियों के साथ एक बैठक की। इसकी जरूरत इसलिए पड़ गई क्योंकि इस घोटाले में एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी के साथ तीन सरकारी बैकों के भी नाम आए हैं। बैठक में विभाग की तरफ से कहा गया कि शुरुआती आकलन से लगता है कि ये सभी गैरकानूनी तरीके से लाभ लेने के अलग-थलग मामले हैं। इनमें दिए गए ऋणों की गुणवत्ता एकदम दुरुस्त है और उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा है।
वित्त मंत्री ने आदेश दिया कि सीबीआई अपने हिसाब से इस मामले में आवश्यक कार्रवाई करेगी, लेकिन बैंकों व वित्तीय संस्थाओं को भी घोटाले के आरोपी अधिकारियों के खिलाफ उचित कदम उठाने होंगे। साथ ही बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के निदेशक बोर्ड को गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) या खराब ऋणों का नए सिरे से आकलन करना चाहिए। उन्हें अपने एनपीए की निगरानी बढ़ानी होगी ताकि किसी ऋण के डूबने से पहले ही उसकी शिनाख्त कर ली जाए।
उन्होंने कहा कि बैंकों व वित्तीय संस्थाओं को सुनिश्चित करना पड़ेगा कि ऋणों को मंजूर करने से पहले सभी निर्धारित मानकों का पालन किया गया है। वित्त मंत्री ने इसके साथ ही वित्तीय सेवा विभाग और अन्य नियामक संस्थाओं को निर्देश दिया कि वे सारे हालात की समीक्षा कर तत्काल जरूरी कदम उठाएं। वित्त मंत्री के इस रुख से यही लगता है कि उन्होंने हाउसिंग लोन घोटाले के सिलसिले में सरकारी संस्थाओं के कुछ अधिकारियों की गिरफ्तारी को काफी संजीदगी से लिया है।