एफआईआई बैठे हैं नोटों के जखीरे पर

कोई चीज बहुत जल्दी, बहुत आसानी से हो जाए तो बहुतों के लिए उसे पचा पाना बहुत मुश्किल होता है। शेयर बाजार जिस तरह से सुधरा है, निफ्टी 5180 और सेंसेक्स 17,770 से जिस तेजी से उठा है, उससे कभी-कभी डर भी लगता है कि कहीं सब फिर से पटरा न हो जाए। वैसे, आपको याद होगा कि बाजार के इन स्तरों पर पहुंचने पर हमने साफ कहा था कि वह अब तलहटी पकड़ चुका है और उसे यहां से उठना ही है। हमने निफ्टी में 5735 का लक्ष्य तय किया है और शुक्रवार वो 5705.80 तक जाने के बाद ही नीचे आया है। यह भले ही 0.36 फीसदी की गिरावट के साथ 5627.20 पर बंद हुआ हो, लेकिन इसकी चाल दिखाती है कि हमारा लक्ष्य अब ज्यादा दूर नहीं है।

अब भी निफ्टी में ज्यादा वजन रखनेवाले स्टॉक्स ने मार्केदार तेजी नहीं दिखाई है। अभी की तेजी तो सस्ते में मिल रहे शेयरों की खरीद और शॉर्ट कवरिंग के चलते आई है। सेटलमेंट की समाप्ति के साथ अब नई बाजी बिछ गई है। सेटलमेंट के पहले ही दिन करीब 400 करोड़ रुपए के पेट्रोलियम घोटाले में पूर्व महानिदेशक, हाइड्रोकार्बन (डीजीएस) वी के सिब्बल को सीबीआई ने धर दबोचा तो बिकवाली हुई और बाजार गिर गया। वैसे, यह मसला सामने न भी आया होता तो मुनाफावसूली के चलते बाजार को गिरना ही था।

वर्तमान सूरतेहाल यह है कि कच्चे तेल के दाम थमने लगे हैं, ग्रीस के ऋण संकट का समाधान हो रहा है, मॉरीशस पर सरकार की तरफ से स्पष्टता आ चुकी है और मुद्रास्फीति घटने लगी है। यह सारा कुछ शेयर बाजार के लिए सकारात्मक हैं। फिर भी बहुतेरे विशेषज्ञ-गण कहे जा रहे हैं कि बाजार गिरेगा क्योंकि इस तेजी का आधार बहुत सीमित और संकुचित है। उनका मानना है कि सुधार इतना तेजी से आया है कि गहरी गिरावट से बच पाना मुश्किल है। वैसे, यह सोच उनकी खीझ और कुंठा का नतीजा भी हो सकती है।

अमेरिका में दूसरी क्वांटिटेटिव ईजिंग (क्यूई-2) या आसान शब्दों में नोट छापकर मांग बढ़ाने के दूसरे प्रयास का खत्म होना भारत जैसे उभरते बाजारों के लिए अच्छा है। कच्चे तेल और मुद्रास्फीति में और कमी का आना तय है। ऐसे में बाजार में अगर कोई भी करेक्शन आता है, गिरावट होती है तो अभी तक किनारे बैठे विदेशी फंड जबरदस्त तरीके से एंट्री मारेंगे। इसका संकेत हम पिछले दो हफ्तों में पी-नोट की बढ़ी हिस्सेदारी के रूप में देख चुके हैं।

तेजी का एक अन्य बेहतर संकेत है ऑपरेटरों की वापसी जो सौदों की स्थिति में झलकती है। इधर ऑपरेटरों से जुड़े स्टॉक्स में वोल्यूम बढ़ गया है। इसके भी ऊपर बात यह है कि घूस और घोटाले के बीच सरकार ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कुछ साहसी पहल की है। डीजल मूल्यों का बढ़ाना जाना, वेदांता-केयर्न सौदे को मजूरी और मल्टी-ब्रांड रिटेल में एफडीआई की तैयारी बाजार में नई जान डालने के लिए काफी हैं।

एफआईआई इस समय कैश का जखीरा लिए बैठे हैं। उनके पास इसे लगाने का कोई विकल्प नहीं है। वे नहीं जानते कि सरकार अगला सुधार कब लाएगी। ऐसे में वे बेचकर निकलने के बजाय जमकर निवेश करेंगे और बाजार जिस तरह गिर चुका है, उसमें उन्हें निवेश के शानदार मौके सस्ते भाव पर मिल रहे हैं। वे इन मौकों को यकीनन गंवाना नहीं चाहेंगे।

अब हम बाजार के बहुत तेजी से बढ़ने/सुधरने के संवेदनशील मसले पर दोबारा लौटते हैं। पिछले साल भर में सारी बुरी खबरों के बावजूद बाजार ने मजबूती से खुद को 5500 के इर्दगिर्द टिकाए रखा है। निफ्टी जब भी 5500 के नीचे गया, वो फौरन पलटकर उठा है। ऐसा इसलिए क्योंकि चालू वित्त वर्ष 2011-12 के अनुमानित लाभ के आधार पर सेंसेक्स का 22,000 पर पहुंच जाना बहुत वाजिब है। दो दिन पहले ही इकनॉमिक टाइम्स ने शोध, सर्वे व अध्ययन के आधार पर रिपोर्ट छापी है कि इस साल की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2011) में सूचकांक में शामिल कंपनियों की बिक्री 26 फीसदी और शुद्ध लाभ 19 फीसदी बढ़ेगा। हमने तो लाभ में 18 फीसदी वृद्धि का ही अनुमान लगाया था। इसलिए सेंसेक्स के 22,000 पर पहुंचने की बात भी थोड़ी कंजूसी जैसी लगती है।

बाजार में ये जो तेज सुधार या है, वह तेजी से गिरावट के बाद पलटकर उठने का नतीजा है। इसका आकार अंग्रेजी के अक्षर U जैसा रहा है। लेकिन हमारे विशेषज्ञों के भेजे में इतनी सीधी-सी बात भी नहीं घुस रही है। इतना कुछ कहने के बाद आखिर में एक बात और। अमेरिकी बाजार को जनवरी 2012 तक अगले राष्ट्रपति के चुनावों तक कोई खतरा नहीं है और इस दौरान भारत सरकार को भी कोई खतरा नहीं है। इसलिए बाजार का बढ़ना तय है।

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