कारगर दिखती है एफडीसी की दवाएं

किसी भी शेयर में निवेश करते समय हम यह सोचते हैं कि इससे हम कितना कमा सकते हैं। लेकिन पहले सोचना यह चाहिए कि हम इसमें कितना गंवा सकते हैं क्योंकि निवेश के सभी माध्यमों में सबसे ज्यादा जोखिम शेयरों में ही होता है। इसलिए जोखिम की पूरी मानसिक तैयारी के बिना इसमें कूद पड़ता ‘स्वास्थ्य के लिए हानिकारक’ है। आज चर्चा इलेक्ट्राल बनानेवाली कंपनी एफडीसी की। दवा उद्योग की कंपनी है। बल्क फार्मूलेशन और एंटी ऑक्सीडेंट वगैरह बनाती है। पहले इसका नाम फेयर डील कॉरपोरेशन था। वहीं से एफडीसी निकला है।

एफडीसी का एक रुपए अंकित मूल्य का शेयर शुक्रवार को बीएसई (कोड – 531599) में 103.45 रुपए और एनएसई (कोड – FDC) में 103.40 रुपए पर बंद हुआ है। करीब दो महीने से वो 100 और 105 के बीच डोल रहा है। इसका 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 117.50 रुपए (4 नवंबर 2010) और न्यूनतम स्तर 81.50 रुपए (13 अगस्त 2010) का है। यानी, इस समय यह अपने उच्चतम स्तर के ज्यादा करीब है। फिर भी ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 8.07 रुपए होने के आधार पर उसका पी/ई अनुपात 12.82 निकलता है। वित्त वर्ष 2009-10 में कंपनी का नेटवर्थ पर रिटर्न 28 फीसदी रहा है। 2010-11 के नतीजे अभी आने हैं।

नोट करने की बात यह है कि कंपनी अपने शेयरों को वापस खरीदने का ऑफर ला चुकी है। बाय बैक का यह ऑफर 18 फरवरी 2011 से खुला है। इसमें कंपनी के कम से कम 9.26 लाख और ज्यादा से ज्यादा 37.04 लाख शेयर वापस खरीदे जाएंगे। कंपनी की मौजूदा इक्विटी 18.70 करोड़ रुपए है। ऑफर को मिले रिस्पांस के हिसाब से यह आगे घटकर 18.61 करोड़ से 18.33 करोड़ रुपए के बीच आ सकती है।

इस ऑफर में कंपनी अपने शेयर अधिकतम 135 रुपए के मूल्य पर खरीदेगी। शेयरों को वापस खरीदने का लक्ष्य बीच ही में नहीं पूरा हो गया तो यह ऑफर अगले साल 25 जनवरी 2012 तक खुला रहेगा। 11 फरवरी को बाय बैक ऑफर खुलने के बाद 31 मार्च तक कंपनी अपने 16.42 लाख शेयर वापस खरीद चुकी है। यानी, ज्यादा से ज्यादा वह अब अपने 20.62 लाख शेयर ही और खरीद सकती है।

ध्यान दें कि कंपनी ने अपने शेयर अधिकतम 135 रुपए में वापस खरीदने की पेशकश की है। यह अधिकतम मूल्य है। वास्तविक मूल्य इससे कम भी हो सकता है। लेकिन इससे इतना तो साफ है कि कंपनी और उसके मूल्यांकन करनेवालों की नजर में उसके शेयर का मूल्य मौजूदा स्तर से करीब-करीब 30 फीसदी ज्यादा है। साल भर में इतना रिटर्न मिल जाए तो काफी होता है। फिर कंपनी कोई कच्ची नहीं है। जमाजमाया धंधा है। बराबर बढ़ रही है। उसने अपनी पहली उत्पादन इकाई 1949 में चालू की थी।

अभी उसकी उत्पादन इकाइयां तीन राज्यों महाराष्ट्र (रोहा, वालुज व सिन्नार), गोवा (वेरणा) और हिमाचल प्रदेश (बड्डी) में फैली हैं। बड्डी में वह तरल व ठोस रूप में सेफालोस्पोरिन बनाती है। वेरना में उसके तीन संयंत्र हैं जहां वह टैबलेट व कैप्सूल बनाती है। रोहा में वह एपीआई (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट) बनाती है। सिन्नार में अपना इलेक्ट्राल ओआरएस (ओरल डिहाइड्रेशन सॉल्ट) बनाती है। वालुज में वह मुख्य रूप से ऑप्थैल्मिक दवाएं बनाती है। कंपनी अपना आधे से ज्यादा उत्पादन निर्यात करती है। अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका व जापान उसकी दवाओं के मुख्य ठिकाने हैं।

कंपनी की इक्विटी में प्रवर्तकों का भाग 66.35 फीसदी है, जबकि इसके 3.86 फीसदी शेयर एफआईआई और 9.38 फीसदी शेयर डीआईआई के पास हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 25,854 है। इसके बड़े शेयरधारकों में आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल (4.14 फीसदी), यूटीआई चिल्ड्रेंस करियर (1.54 फीसदी) और फिडेलिटी मैनेजमेंट एंड रिसर्च (1.06 फीसदी) शामिल हैं। प्रवर्तकों में सबसे ज्यादा 11.87 फीसदी शेयर मीरा रामदास चंद्रावरकर के पास हैं। कंपनी के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक मोहन चंद्रावरकर हैं।

बाकी की जानकारी आप निकालिए। निवेश करने से पहले सोच-समझ लीजिएगा कि इसमें कितना गवां सकते हैं। अजीब बात है कि शेयर बाजार में आम निवेशकों के लिए निराशावादी होना ज्यादा फायदेमंद होता है।

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