ये बातें झूठी बातें हैं, लोगों ने फैलाई हैं

शेयरों में निवेश कोई घाटा खाने या कंपनियों से रिश्तेदारी निभाने के लिए नहीं करता। अभी हर तरफ गिरावट का आलम है, अच्छे खासे सितारे टूट-टूटकर गिर रहे हैं तो ऐसे में क्या करना चाहिए? जो वाकई लंबे समय के निवेशक हैं, रिटायरमेंट की सोचकर रखे हुए हैं, उनकी बात अलग है। लेकिन अनिश्चितता से भरे इस दौर में शेयर बाजार में लांग टर्म निवेश का क्या सचमुच कोई मतलब है? लोगबाग दुनिया के मशहूर निवेशक वॉरेन बफेट का वाक्य उद्धृत करते हैं: किसी स्टॉक को बेचने का मुकर्रर वक्त है – कभी नहीं।

लेकिन यह पूरी तरह बकवास है। झूठी बात है जो बफेट के दूरगामी निवेश के मिथ को जमाने के लिए फैलाई गई है। हकीकत यह है कि बफेट ने न केवल अपने पसंदीदा स्टॉक्स को बार-बार खरीदा बेचा है, बल्कि वे सक्रिय ट्रेडर भी रहे हैं। मौका देखकर बेचना और खरीदना ही लाभ कमाने की सही रणनीति हो सकती है। एक उदाहरण देता हूं। मेरे एक अभिन्न मित्र हैं। पुराने लघु निवेशक हैं। 9 दिसंबर 2010 को उन्होंने मेरे कहने पर केएस ऑयल के 200 शेयर 30.55 रुपए के भाव पर खरीदे।

नए साल के पहले ही दिन 3 जनवरी 2011 को यह शेयर 48.65 रुपए तक पहुंच गया। महीने भर में 58.9 फीसदी की बढ़त। 6110 रुपए लगाए थे। अब 9710 रुपए हो गए। मैंने उनसे कहा – बेचकर निकलें। बोले – नहीं, मैंने तो लांग टर्म के लिए लगाया है। मैंने कहा – चलिए 100 शेयर ही बेच लीजिए। 4865 रुपए मिल जाएंगे। बाकी बचे शेयरों की लागत आपके लिए 12.45 रुपए प्रति शेयर ही रह जाएगी। बोले- देखिए मेरी रणनीति है कि मैं 200 शेयर खरीदकर कम से कम तब तक उन्हें रखता हूं, जब तक 100 की पूरी लागत नहीं निकल जाती है। इससे बाकी 100 शेयर मेरे मुफ्त के पड़ जाते हैं और मैं सालों-साल के लिए उन्हें भूल जाता हूं।

उन्होंने कहा कि मैं केएस ऑयल के 100 शेयर तब बेचूंगा जब यह 60 रुपए के ऊपर चला जाएगा। वैसे भी 12 नवंबर को यह 63.10 रुपए तक जा चुका है। मेरे मित्र के दुर्भाग्य से अपेक्षाकृत मजबूत कंपनी का यह शेयर इस साल बराबर गिरता ही जा रहा है। वे शेयरों को अपने समीकरण और लांग टर्म की सोच के साथ पकड़कर बैठे रहे। लेकिन कल 5 अगस्त 2011 को यह 12.75 रुपए की तलहटी तक चला गया। बंद हुआ है 14.70 रुपए पर। मित्रवर इस निवेश पर करीब 52 फीसदी का सांकेतिक नुकसान झेल चुके हैं।

केएस ऑयल ठीकठाक कंपनी है। उसका शेयर मात्र 3.32 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। क्या करना चाहिए? क्या इसे और ज्यादा खरीद कर अपनी औसत लागत कम कर लेनी चाहिए या अब घाटा खाकर भी इससे निकल लेना लेना चाहिए? यूं तो यह फैसला हर आदमी के जोखिम उठाने की क्षमता पर निर्भर करता है। इस पर भी निर्भर करता है कि कितना वक्त इसके लिए आपने मुकर्रर कर रखा है। मुझे तय करना हो और मेरे पास रकम हो तो मैं तो यही करूंगा कि इस भाव पर केएस ऑयल के लाख-दो लाख शेयर लेकर बैठ जाऊंगा। लेकिन जानकारों की राय ऐसी नहीं है।

जानकारों का कहना है कि जैसे ही लगे कि आपका स्टॉक अपेक्षित स्तर से नीचे जा रहा है, आप उसे फौरन निकल लें। शेयर बाजार में संशय नहीं चलता। जब भी संशय हो, बेचकर बाहर निकलें। मान लीजिए कि आपका स्टॉक 50 फीसदी गिर चुका है तो उसे पुराने स्तर पर आने के लिए 100 फीसदी बढ़ना होगा। इसके लिए कोई कितना इंतजार करेगा? कुछ महीनों या दो-चार साल के निवेशकों के लिए यहीं पर काम आती है स्टॉप लॉस की रणनीति।

मान लीजिए कि आपने कोई शेयर 500 रुपए के भाव पर खरीदा। वह धीरे-धीरे बढ़ता हुआ 800 रुपए तक चला गया। फिर गिरने लगा। हां, ध्यान रखें। बीच-बीच में झांकते रहना चाहिए कि आपके निवेश का क्या हाल है। वह गिरते-गिरते आपके मूलधन तक पहुंच जाए, इससे पहले ही उससे निकल लेना चाहिए। इस मामले में वह अगर 800 से 20 फीसदी गिरकर 600 रुपए तक आ गया तो फौरन बिना किसी अफसोस व लालच के आपको उससे निकल लेना चाहिए। वैसे भी 500 के शेयर को 600 रुपए में बेचने पर आपको 20 फीसदी फायदा तो मिल ही जाएगा न!!!

मोटे तौर पर फॉर्मूला वही है कि शेयरों में निवेश से अधिकतम 20 फीसदी पाने की धारणा रखिए। इससे ऊपर दूसरे लोगों को कमाने दीजिए। दोगुना होने का लालच करेंगे तो मेरे लघु निवेशक मित्र की तरह पछताएंगे जिन्होंने डेढ़ गुनी पूंजी नहीं पकड़ी तो वो घटकर आधी हो गई। हां, वॉरेन बफेट या राकेश झुनझुनवाला विशुद्ध रूप से धंधेबाज हैं। हाथी के दांत दिखाने के और, खाने के और हैं। ये खुद अपने बारे में झूठी बातें फैलाते और दूसरों से फैलवाते हैं। अंत में इसी बात पर इब्ने इंशा की यह मशहूर गज़ल पेश है आबिदा परवीन की आवाज़ में…

1 Comment

  1. हकीकत तो यह है कि बाजार के आपरेटर कभी भी सच बात नहीं कहते। वह हमेशा बनावटी बयान देते हैं। कहते है खरीदारी के लिए अमूमन उस समय वह स्टाक निकाल रहे होते हैं। मैं एक बड़े आपरेटर को जानता हूं, जो दिन भर चैनलों में छाए रहते हैं। वह पहले बेचने की बीड लगा देते हैं, उसके बाद चैनलों में उस शेयर खरीदने की तमाम दलीलें देने लगते हैं। आम आदमी चूंकि बाजार के हकीकत और आकंडों की सच्चाई से वाकिफ नहीं होता इसलिए वह फंस जाता है। आप खुद गंभीरता से सोचिए कोई क्यों आपको पैसा कमाने का तरीका बताएगा।

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