इस्पात से फौरन बेहिचक निकल लें

जेएसडब्ल्यू स्टील और इस्पात इंडस्ट्रीज की डील पर खूब बहस हो रही है। महज आठ दिनों में यह डील पूरी कर ली गई है और इन्हीं आठ दिनों में इस्पात का शेयर कुलांचे मार कर बढ़ गया। इसने हमारे बाजार के डेरिवेटिव सिस्टम की कमियां उजागर की हैं। वहां के मूल्यों की सत्यता पर सवाल उठाया है और इनसाइडर ट्रेडिंग की आशंका को बल दिया है। आज भी जिस तरह इस्पात का मूल्य 24.05 रुपए तक जाने के बाद 11.32 फीसदी की बढ़त के साथ 23.60 रुपए पर बंद हुआ है, वो भी किसी खेल की तरफ इशारा करता है।

खैर, इन सारी बातों को एक तरफ रख दें तो हमारी साफ राय है कि शेयर का मूल्य ऊंचाई पर टिकेगा नहीं और 20.54 रुपए के ओपन ऑफर मूल्य के नीचे चला जाएगा। यह बात भी नोट करने की है कि भारत में हमने कभी-कभार ही देखा है कि कोई स्टॉक ओपन ऑफर के बाद अपना टेम्पो बनाए रख सका है। बहुत सारे निवेशकों ने जेएसडब्ल्यू स्टील के नाम से जोड़कर इस्पात के शेयर खरीदे होंगे। लेकिन ध्यान देने की बात है कि इस्पात के कायाकल्प में अभी दो साल से ज्यादा लगेंगे और इस सौदे से कंपनी का इक्विटी आधार काफी फैल जाएगा। स्टील का निचला चक्र अगले 12 महीनों में इस शेयर को 15 रुपए पर लाकर पटक सकता है। इसलिए मेरा कहना है कि अब इससे बिना कोई देर किए मुक्ति पा लेनी चाहिए।

जब टाटा स्टील निचले चक्र में फंसकर 780 रुपए से 450 रुपए पर आ सकता है तो इस्पात कैसे खुद को टिकाए रख पाएगा? असल में मुझे तो लगता है कि यह कंपनी कैश के स्तर पर मजबूत जेएसडब्ल्यू स्टील के खजाने को भी खा जाएगी। इसलिए जेएसडब्ल्यू स्टील के निवेशकों को भी उससे निकलने पर विचार करना चाहिए क्योंकि उन्हें अभी अच्छा दाम मिल रहा है।

पूरे दिसंबर महीने में बाजार शॉर्ट रहा है और ट्रेडरों के जेहन में एक किस्म का डर मंडराता रहा है। डेरिवेटिव सौदों में असामान्य हरकरत देखी गई, जहां हर स्तर शॉर्ट पोजिशन बनाई गई। ऑप्शन के पुट सौदे इस बार अपनी अधिकतम सीमा के पार चले गए हैं। रोलओवर का सिलसिला कल से शुरू होगा। मुझे तो शक है कि शॉर्ट सौदों का रोलओवर कैसे होगा। बहुत ज्यादा संभावना इस बात की है कि दिसंबर में निफ्टी 6400 तक जा सकता है। इसलिए शॉर्ट सेलिंग करनेवालों को सावधान रहना चाहिए।

मेरा मानना है कि साल 2011 के केंद्र में घरेलू खपत पर आधारित कंपनियां रहेंगी। इसका संकेत दूसरी तिमाही के नतीजों व तीसरी तिमाही की अपेक्षाओं और अतिरिक्त लिक्विडिटी से मिल रहा है। सरकार की तरफ से 91,000 करोड़ रुपए के कैश बैलेंस को अगले तीन महीनों में खर्च किया जाना है। इंफ्रा और रीयल्टी सेक्टर मेरे अगले दांव होंगे। मैं तो घरेलू खपत वाली कंपनियों और इंफ्रा/रीयल्टी पर ही न्यौछावर रहूंगा। बाकी बाजार क्या कहता है, मुझे इसकी परवाह नहीं। हमने हीरो होंडा और इस्पात के मामले में साफ कर दिया है कि हम बाजार से दो कदम आगे चलते हैं। बाजार को हमारे पीछे आना हो तो आए। फिलहाल हमें बाजार के रुख की ज्यादा फिक्र नहीं है।

जहां तक ट्रेडिंग कॉल्स का मसला है तो इसमें अतिशय सावधानी बरतने की जरूरत है। इतना तय है कि औकात से ज्यादा उधार पर की गई ट्रेडिंग आपको तबाह कर देगी, चाहे वह एफ एंड ओ (डेरिवेटिव) सेगमेंट हो या कैश सेगमेंट। डर तभी आता है जब आपने ज्यादा उधार ले रखा होता है और आपके अंतहीन भ्रष्ट दिमाग में अनंत आशंका आ खड़ी होती हैं। ऐसा तब भी होता है जब आप वैश्विक कारकों और एनालिस्टों की बेकार की ए बी सी डी पर गौर करते हैं जबकि उन्हें पूंजी बाजार का ककहरा तक नहीं पता होता।

मेरा दोस्त मुझे दिखाता है कि मैं क्या कर सकता हूं और मेरा दुश्मन दिखाता है कि मुझे क्या करना चाहिए।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ हैलेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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