अर्थव्यवस्था के बढ़ने की दर के अनुमानों पर लगता है, जैसे कोई जंग छिड़ी हुई है। उधर अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स की भारतीय सब्सिडियरी क्रिसिल ने इस साल देश के आर्थिक विकास दर का अनुमान 8 फीसदी से घटाकर 7.6 फीसदी कर दिया, इधर सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को आश्वस्त करना पड़ा कि दुनिया में आर्थिक सुस्ती के बावजूद हम इस साल करीब आठ फीसदी आर्थिक विकास दर हासिल कर लेंगे। बता दें कि अगस्त में स्टैंडर्ड एंड पुअर्स की तरफ से अमेरिका की रेटिंग घटाने के बाद से वहां के संकट पर शोर-शराबा बढ़ गया है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को राजधानी दिल्ली में सेना के संयुक्त कमांडर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “हमारी अर्थव्यवस्था का मूलाधार अब भी मजबूत है। वैश्विक सुस्ती के बावजूद हम इस साल भी आठ फीसदी के करीब की विकास दर हासिल करेंगे। हमारी अल्पकालिक चुनौती मुद्रास्फीति को नीचे लाना है, जबकि लंबे समय में हमें अपनी विकास प्रक्रिया को और अधिक समावेशी बनाते हुए कृषि विकास में तेजी के साथ शिक्षा स्वास्थ्य व अन्य सेवाओं में विस्तार, पर्यावरण की रक्षा और समूचे इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाना होगा।
बता दें कि सकल मुद्रास्फीति की दर इस साल अगस्त में 9,78 फीसदी रही है। सितंबर की मुद्रास्फीति का आंकड़ा शुक्रवार, 14 अक्टूबर को जारी किया जाएगा। कल बुधवार को औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के आंकड़े जारी किए जाएंगे, जिससे पता चलेगा कि अगस्त 2011 में आईआईपी साल भर पहले की तुलना में कितना बढ़ा है। जुलाई में आईआईपी की वृद्धि दर महज 3.3 फीसदी रही है जो करीब दो सालों का सबसे निचला स्तर है।
असल में भारत के आर्थिक विकास की रफ्तार को लेकर एक तरह की निराशा छाती जा रही है। सरकार इस निराशा को छांटने में लगी है ताकि विदेशी निवेशकों का आना रुक न जाए। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक छोटी रायशुमारी के मुताबिक आईआईपी की वृद्धि दर अगस्त में 5 फीसदी रहेगी। 25 विश्लेषकों में से 16 ने माना कि यह दर 5 फीसदी रहेगी, जबकि बाकी नौ की राय 3.6 फीसदी से लेकर 7 फीसदी तक डोलती रही।
असल में अगस्त में इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े उद्योगों का उत्पादन मात्र 3.5 फीसदी बढ़ा है, जबकि जुलाई में यह 7.5 फीसदी बढ़ा था। इसलिए पूरे आईआईपी को लेकर एक तरह की निराशा का स्वर ज्यादा हावी है। मुश्किल यह भी है कि जब तक ब्याज दरें ऊंची रहेंगी, औद्योगिक विकास दबी रहेगी। लेकिन मुद्रास्फीति को बांधना रिजर्व बैंक की मुख्य चुनौती है। मार्च 2010 से अब तक वह 12 बार ब्याज दरें बढ़ा चुका है। 25 अक्टूबर को वह दूसरी तिमाही की मौद्रिक नीति समीक्षा पेश करेगा जिसमें एक बार फिर ब्याज दरें बढ़ाए जाने के कयास लगाए जा रहे हैं।