डाउनग्रेड, खलबली और छोटे ट्रेडर

किसी भी विदेशी ब्रोकिंग हाउस का नाम ले लो, उसे भारत को डाउनग्रेड करने में कोई हिचक नहीं होती। वे खटाखट आर्थिक विकास की संभावनाओं से लेकर बाजार तक को नीचे से नीचे गिराते जा रहे हैं। ताजा उदाहरण सीएलएएसए का है। इन ब्रोकिंग हाउसों ने भारत में निवेश को, यहां की आस्तियों को रिस्की ठहरा दिया है। वजह गिनाई है मुद्रा प्रबंधन की अक्षमता, नीतिगत फैसलों में ठहराव, राजकोषीय घाटे को संभालने में नाकामी और मुद्रास्फीति को थामने में विफलता। ऊपर से वे यह भी कह रहे हैं कि भारतीय बाजार इस समय बाहर के निवेशकों को कुछ भी नहीं दे सकता।

लेकिन उनकी कथनी एक तरफ और कथनी दूसरी तरफ है। साल 2008 में लेहमान संकट के दौरान विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारत से 16 अरब डॉलर निकाले थे, जबकि इस साल 2011 में उन्होंने 3 अरब डॉलर ही निकाले हैं। इसलिए उनमें भागमभाग मचने की बात सही नहीं है। इस बार एफआईआई कोई आक्रामक बिकवाली नहीं कर रहे। फिर भी अगर उन्हें नुकसान हो रहा है, तो उसी वजह से जिसके दम पर वे पहले नोट बनाते रहे हैं। परदे के पीछे उन्होंने ऑपरेटरों के साथ हाथ मिला रखा है। इस बार वे इसका खामियाजा भुगत रहे हैं। इसलिए अगर उन्हें हताशा में बेचना और नुकसान उठाना पड़ रहा है तो इसके लिए हम में से किसी को भी अफसोस करने की जरूरत है।

सवाल यह भी उठता है कि जब भारत में सब कुछ बुरा है और उन्हें यहा नुकसान हो रहा है तो वे यहां से पूरी तरह निकल क्यो नहीं रहे? सच यह है कि दुनिया में कोई भी दूसरा देश नहीं है जो एफआईआई को इस तरह शेयर बाजार में जुआ खेलने की आजादी देता है। वे यहां से बिना कोई टैक्स दिए अपने रिटर्न पर 100 फीसदी रिटर्न लेकर जा रहे हैं। ज्यादातर एफआईआई मॉरीशस जैसे उन देशों से काम कर रहे हैं जहां होने के नाते उन्हें भारत में कोई टैक्स नहीं देना पड़ता। हां, वे दावा जरूर करते हैं कि अगर वे इतना ज्यादा रिटर्न पा रहे हैं तो इसलिए क्योंकि उन्होंने भारत के जबरदस्त जोखिम भरे बाजार में निवेश किया है।

भारत बदल रहा है और जिस तरह लोग सड़कों पर उतर रहे हैं, आंदोलन कर रहे हैं, उससे यह निश्चित रूप से बदलेगा। इसलिए हमारा पूंजी बाजार भी बदलेगा। किसी दिन यह इतना परिपक्व बन जाएगा कि यहां रिटेल निवेशकों को पूरी सुरक्षा होगी, जोड़तोड़ व धांधली खत्म होगी और घोटाले का अंत हो जाएगा। इसके बाद अभी जिन आस्तियों को जोखिमभरा बताया जा रहा है, वे श्रेष्ठ आस्तियों में बदल जाएंगी।

फिलहाल, आंकड़े बताते हैं कि बाजार ने तभी तलहटी पकड़ ली थी, जब निफ्टी 4500 पर पहुंचा था। यह यहां से ऊपर उठेगा और निफ्टी 5400 तक पहुंच जाएगा। इस बार निफ्टी बड़े आराम से पहले 200 दिनों के मूविंग औसत (डीएमए) 5298.67 के स्तर को पार करेगा। अब इस महीने के डेरिवेटिव सौदों की एक्सपायरी को केवल चार दिन बचे हैं। गुरुवार 29 दिसंबर को रोलओवर का आखिरी दिन होगा। बढ़ने की दिशा में 4850 पर भारी प्रतिरोध आएगा। वेसे, बाजार फिलहाल ओवरसोल्ड अवस्था में नजर आ रहा है। इसलिए 4850 का स्तर टूट भी सकता है। हफ्ते की शुरुआती दिनों में ऐसा हो गया तो बाजार सेटलमेंट के दिन गुरुवार को खुद-ब-खुद 5080 पर पहुंच जाएगा।

दूसरी तरफ निफ्टी में अधिकांश पुट ऑप्शंस (बेचने के करार) 4000, 4200 व 4300 पर हुए पड़े हैं। लेकिन ऐसा होने की सूरत नजर नहीं आ रही। फिर भी आप भयंकर खलबली या वोलैटिलिटी और कैश सेटलमेंट के इस दौर में किसी भी हादसे से इनकार नहीं कर सकते। यह स्थिति बाजार के छोटे ट्रेडरों के लिए बेहद खतरनाक है। लेकिन किसे परवाह है छोटे ट्रेडरों और छोटे निवेशकों की?

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