भविष्य को न देख सिर्फ वर्तमान को देखो तो चूक हो जाती है। खासकर शेयर बाजार में तो ऐसा ही होता है। मुझे 25 मार्च को ही डेवलमेंट क्रेडिट बैंक (डीसीबी) के बारे में लिखना था। इसका आगा-पीछा पता लगा लिया था। तब इसका 10 रुपए अंकित मूल्य का शेयर 44 रुपए पर चल रहा था। लेकिन लगा कि जो बैंक लगातार दो साल से घाटे में हो, जिसका इक्विटी पर रिटर्न ऋणात्मक हो, उसके बारे में क्यों लिखा जाए। नहीं दिखा कि बैंक करवट बदल रहा है। वित्त वर्ष 2010-11 में दिसंबर तक के नौ महीनों में वह 10.2 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमा चुका है, जबकि साल भर पहले इसी अवधि में उसे 70.4 करोड़ का घाटा हुआ था।
अब निजी क्षेत्र के इस बैंक ने पूरे वित्त वर्ष 2010-11 के घोषित नतीजों से सबको चौंका दिया है। उसने इस बार 21.43 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है, जबकि साल भर पहले उसे 78.45 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था। केवल जनवरी-मार्च 2011 की तिमाही की बात करें तो उसका शुद्ध लाभ 11.35 करोड़ रुपए रहा है, जबकि पिछले साल की इसी तिमाही में उसे 8.16 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा था।
बुधवार, 13 अप्रैल को इन नतीजों की घोषणा के बाद डीसीबी का शेयर (बीएसई – 532772, एनएसई – DCB) एकबारगी 15.5 फीसदी उछलकर 57 रुपए पर पहुंच गया है। सोचता हूं, 44 रुपए पर आपके सामने पेश कर दिया होता तो शायद आप में से कुछ लोग 29.5 फीसदी का रिटर्न पा चुके होते। लेकिन जो हुआ, सो हुआ। सवाल उठता है कि क्या अब भी डीसीबी में लाभकारी निवेश की गुंजाइश बाकी है? 2010-11 में इसका ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 1.07 रुपए है। यानी, शेयर अभी 53.27 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। जाहिर है यह बहुत महंगा है। लेकिन शेयर की बुक वैल्यू 28.1 रुपए है। इस लिहाज से यह बहुत महंगा नहीं लगता।
फिर क्या किया जाए? अभी कितने रिटर्न की उम्मीद इससे की जा सकती है? यह शेयर पिछले 52 हफ्तों के दौरान ऊपर में 76.70 रुपए (28 अक्टूबर 2010) तक जा चुका है। इसलिए पुराने क्लेश पूरी तरह कट जाने के बाद यह इतनी ऊंचाई तक तो जा ही सकता है। मतलब, अभी के स्तर से 34.5 फीसदी रिटर्न की गुंजाइश! लेकिन अगर इससे जुड़ी उम्मीद का गुब्बारा फूट गया और शेयर कर्नाटक बैंक जितने पी/ई अनुपात, 11.6 पर ट्रेड होने लगा तो यह 20 रुपए से भी नीचे जा सकता है।
इसलिए मेरा मानना है कि अचानक आई चमक के बावजूद हमारे-आप जैसे निवेशकों को फिलहाल इससे दूर रहना चाहिए। उन्माद के ठंडा होने का इंतजार करना चाहिए। जब कामकाज पटरी पर आ जाए, तब इस पर गौर करना चाहिए। हालांकि बैंक की भावी संभावनाएं बेहतर नजर आ रही है। वह अपने कर्ज की क्वालिटी सुधार रहा है। एनपीए को व्यवस्थित कर रहा है। धंधे का दायरा बढ़ा रहा है। इसलिए बैंक की प्रगति पर बराबर नजर रखी जानी चाहिए।
एचडीएफसी सिक्यूरिटीज की हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार, डीसीबी ने अपना कासा (चालू व बचत खाता) जमा अच्छे स्तर पर बनाए रखने का पूरी कोशिश की है। छोटा बैंक होने के बावजूद पिछले कई सालों में कुल जमा में कासा का हिस्सा औसतन 30 फीसदी रहा है। अभी प्रति ब्रांच कासा में जमा 22.20 करोड़ रुपए आती है। बैंक इसे 2013 तक बढ़ाकर 35 करोड़ रुपए कर देना चाहता है।
बैंक का धंधा ही जमा लेकर कर्ज देना और कमाई करना होता है। कर्ज के मामले में डीसीबी का फोकस लघु, मध्यम और अति लघु औद्योगिक इकाइयां (एसएमई व एमएसएमई) पर है। नए वित्त वर्ष 2011-12 में उसने ऋण प्रवाह में 20-22 फीसदी वृद्धि का लक्ष्य रखा है, जबकि अगले वित्त वर्ष 2012-13 में इसे 25-30 फीसदी पर ले जाना चाहता है। इसका 40 फीसदी हिस्सा लघु इकाइयों से आएगा। बता दें कि लघु इकाइयों में भले ही जोखिम दिखता हो, लेकिन वहां से डिफॉल्ट की दर कम ही रहती है।
एक सकारात्मक बात यह भी है कि डीसीबी ने नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक) के रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (आरआईडीएफ) के बांडों में निवेश कर रखा है। इसमें से उसे अगले वित्त वर्ष 2012-13 से 390 करोड़ रुपए का विमोचन होने लगेगा। इससे बैंक के शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में इजाफा हो जाएगा। बैंक के इतिहास-भूगोल की जानकारी आप उसकी वेबसाइट से हासिल कर सकते हैं। कुल मिलाकर डीसीबी में संभावनाएं तो दिखती हैं। लेकिन शेयर अब भी औकात से ज्यादा चढ़ा हुआ है।