निर्लिप्त भाव से

कभी किसी से इतना प्यार न करो कि उसके बिना ज़िंदगी सूनी हो जाए। कभी किसी पर इस कदर भरोसा न करो कि उसके टूटने पर किसी और पर भरोसा ही न जमे। जीने के लिए ऐसा निर्लिप्त भाव जरूरी है।

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