चक्र बदलेगा, रूठे आएंगे लौटकर

क्या सितंबर में बाजार के धराशाई होने का हिन्डेनबर्ग अपशगुन सही साबित होगा या यह लेखक जो कह रहा है कि हमारा बाजार इस दौरान नई ऊंचाई पर पहुंच जाएगा? इसका फैसला तो सितंबर 2010 के अंत ही हो पाएगा। आज वो मौका नहीं है कि मैं बताऊं कि आपको क्या करना चाहिए। बस, थोड़ा इंतजार कीजिए। हकीकत आपके सामने होगी। अभी तो आप वाकई अवांछित बातों और विचारों को सुन-सुनकर डरे हुए होंगे। ऐसे में मेरा फर्ज बनता है कि आपको बताऊं कि फिलहाल वस्तुस्थिति क्या है और आगे हो क्या सकता है।

अभी तक भारतीय बाजार (बीएसई सेंसेक्स) के 8000 अंक से 18,000 अंक तक की यात्रा का मुख्य कारक सकल घरेलू उत्पाद (डीजीपी) की विकास दर, शानदार मानसून और घरेलू खपत का व्यापक आधार रहा है। अप्रैल 2009 से शुरू हुआ सुधार का सिलसिला आज की तारीख तक बदस्तूर जारी है। नोट करने की खास बात यह है कि इस दरम्यान शेयर बाजार में एफआईआई की होल्डिंग 20 फीसदी से घटकर 16 फीसदी रह गई है। यह 20 फीसदी की भारी गिरावट दर्शाता है। इस बीच रिटेल होल्डिंग भी लगभग 10 फीसदी से घटकर 8 फीसदी पर आ गई और यह कमी भी 20 फीसदी की है।

यह महत्वपूर्ण नहीं है कि इस दौरान किसने शेयर खरीदे हैं, बल्कि ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि एफआईआई की शेयरधारिता हल्की हो गई है। इस समय एफआईआई के पास जो भी स्टॉक है, उनमें से 60 फीसदी से ज्यादा की खरीद दिसंबर से पहले की है। वे इस पर पूरी तरह घाटा उठाने की स्थिति में नहीं हैं और इसलिए इन्हें होल्ड रखेंगे। इस सिलसिले में यह भी गौर करने की जरूरत है कि एफआईआई की होल्डिंग इतनी बड़ी नहीं है कि बाजार को गिराकर नीचे ले जा सके। खैर, इस बात का कोई प्रमाण देने की जरूरत नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती की डगर पर है और 3जी स्पेक्ट्रम व विनिवेश कार्यक्रम से राजकोषीय स्थिति में भारी सुधार होगा।

असली सवाल यह है कि आनेवाले दिनों में बाजार का क्या रुख हो सकता है? कल जैसे ही मुकेश अंबानी की रिलांयस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) ने कायदे से टैक्स बचाने के लिए अपनी होल्डिंग एलएलपी (लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप) में डालने की पहल की, उसके फौरन बाद प्रणब दा ने अपना मास्टर कार्ड चल दिया। यह सच है कि आरआईएल का स्टॉक पिछले 18 महीनों से अंडरपरफॉर्म कर रहा है। ऐसा नहीं कि कंपनी के साथ कुछ गड़बड़ है, बल्कि इसकी सीधी-साधी वजह यह है कि विश्व स्तर पर पेट्रोलियम तेल से जुडी आस्तियां में गिरावट आई है। आरआईएल तो 10 फीसदी ही गिरा है, जबकि बीपी का स्टॉक 40 फीसदी घट चुका है। यह स्थिति वैश्विक निवेशकों को मौका दे रही है कि वे आरआईएल के अलावा दूसरे ऑयल स्टॉक्स में पैसा लगाएं।

वित्त मंत्री प्रणब दा ने लांग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स पर जो पेशकश की है, वह दिल खुश करनेवाली है और इसने भारतीय निवेशकों के दिलोदिमाग पर छाए भारी डर को खत्म कर दिया है। अभी तक रिटेल निवेशक बेचने पर उतारू थे। अब चक्र बदलेगा और इसी के साथ रिटेल निवेशक बाजार में वापसी करेंगे। वैसे भी बगैर ज्यादा ऊपर-नीचे हुए सेंसेक्स के 18,000 अंक के ऊपर टिके रहने से रिटेल निवेशकों और एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) के बीच एक नया भरोसा पैदा हुआ है। निवेशकों के इस तबके की वापसी बाजार में अहम भूमिका निभाएगी।

अभी म्यूचुअल फंडों पर चल रहा रिडेम्प्शन या निकासी का दबाव पलटकर नए प्रवाह में बदल जाएगा। कैपिटल गेन्स टैक्स में छूट के चलते लोगों की बचत यूलिप में आएगी। साथ ही बाजार में रिटेल व एचएनआई निवेशकों की सीधी भागीदारी बढ़ेगी। सीमित शेयरधारिता की स्थिति में सकारात्मक तब्दीली होगी और इसलिए सेंसेक्स बहुत जल्द ही 21,000 के पार जाने को तैयार है। निस्संदेह रूप से आर्थिक विकास और जीडीपी के आंकड़े बाजार को आवेग देते रहेंगे। इस बीच सिस्टम में कम लिक्विडिटी के चलते सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) में वृद्धि की आशंका भी मिटती जा रही है।

कंज्यूमर ड्यूरेबल, सीमेंट, स्टील, केमिकल, फार्मा, बैंकिंग और इंफ्रास्ट्रक्टर कंपनियों के शेयर तेजी के नए दौर की अगुआई करेंगे। जबकि अच्छी वृद्धि के बावजूद कुछ ऐसी कंपनियों के शेयरों में मुनाफावसूली हो सकती है जो निचले स्तर से शुरू करके 25-27 फीसदी बढ़ चुके हैं। यह बढ़त अपने आप में सेंसेक्स से काफी ज्यादा है।

कमजोर इंसान कोई भी फैसला लेने से पहले संशय करता है, जबकि मजबूत इंसान पहले फैसला करता है और संशय बाद में।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ हैलेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

1 Comment

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