क्रॉम्प्टन ग्रीव्स: पकड़ें किसकी ग्रीवा!

प्रकाश की गति से भी तेज कोई गति निकल आए तो शायद भविष्य को पहले से देख लेना संभव हो जाए। लेकिन अभी तो भविष्य को लेकर सारी ‘वाणियां’ मूलतः कयासबाजी हैं। फिर भी शेयर बाजार भविष्य को समेटकर चलता है तो बड़ी उहापोह है कि यहां किसकी ‘वाणी’ को सही माना जाए? साल भर पहले प्रमुख ब्रोकरेज फर्म एसएमसी ग्लोबल ने 2011 के टॉप 11 पिक्स में क्रॉम्प्टन ग्रीव्स को शुमार किया था। उसका कहना था कि यह शेयर साल के अंत तक 360 रुपए तक जा सकता है। हमने भी उसे सही मानकर 5 जनवरी 2011 को यहां लिख डाला। तब वो शेयर 310 रुपए पर था।

वही दो रुपए अंकित मूल्य का शेयर अब आधा भी नहीं रह गया है। कल, 17 जनवरी 2012 वो बीएसई (कोड – 500093) में 143.05 रुपए और एनएसई (कोड – CROMPGREAV) में 142.45 रुपए पर बंद हुआ है। यह शेयर पिछले महीने 22 दिसंबर 2011 को 107.15 रुपए पर 52 हफ्ते का बॉटम तक पकड़ चुका है। इस दौरान बोनस जैसा भी कुछ नहीं हुआ जिसके आधार पर शेयर के इस तरह 64 फीसदी गिर जाने को जायज ठहराया जा सके। बस, दो रुपए के शेयर पर 80 पैसे यानी 40 फीसदी लाभांश भर दिया गया है।

नहीं पता कि एसएमसी ग्लोबल ने इसका कोई स्पष्टीकरण जारी किया है या नहीं। लेकिन उसके अनुमान झूठे साबित हुए हैं। उसने कहा था कि 2011-12 में कंपनी अपना धंधा 15 फीसदी बढ़ा लेगी और करीब 17 फीसदी का मौजूदा परिचालन लाभ मार्जिन बरकरार रहेगा। हकीकत यह है कि इस साल जून तिमाही में उसकी बिक्री 9.38 फीसदी बढ़कर 1468.83 करोड़ रुपए हुई तो शुद्ध लाभ 9.25 फीसदी घटकर 129.02 करोड़ और परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 13.77 फीसदी पर आ गया। सितंबर तिमाही में स्थिति और बिगड़ गई। उसकी बिक्री महज 0.46 फीसदी बढ़कर 1451.47 करोड़ पर पहुंची और शुद्ध लाभ 29.13 फीसदी घटकर 112.32 करोड़ रुपए पर आ गया, जबकि ओपीएम 12.28 फीसदी रह गया। समझ में नहीं आता कि कंपनी के इतने खराब प्रदर्शन पर किसकी ग्रीवा (गरदन) पकड़ी जाए? आखिर एसएमसी ग्लोबल की विशेषज्ञता और रिसर्च तंत्र कहां तेल लेने चला गया!!!

खैर, जो हुआ सो हुआ। वो तो बीत गया। अभी स्थिति यह है कि क्रॉम्प्टन ग्रीव्स को सरकारी कंपनी पावर ग्रिड कॉरपोरेशन से कुछ बड़े ऑर्डर मिले हैं, जिसने तीन तिमाहियों से उसकी ऑर्डर बुक के ठहराव को तोड़ दिया है। बारक्लेज कैपिटल की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते वित्त वर्ष 2010-11 में पावर ग्रिड के ऑर्डरों में कंपनी का हिस्सा 0.7 फीसदी था, जबकि चालू वित्त वर्ष 2011-12 में अब तक वो 6.7 फीसदी हो चुका है। हालांकि कंपनी की तरफ से इन ऑर्डरों की कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई है।

लेकिन लाभ मार्जिन का इस कदर घट जाना कंपनी के प्रति कोई आशा नहीं जगाता। वैसे भी बिजली के उपकरणों की कीमत घरेलू बाजार में साल भर के दौरान 15 से 20 फीसदी नीचे आ चुकी है। इसलिए बढ़े ऑर्डर का असर घट जाएगा। चूंकि कंपनी का मैन्यूफैक्चरिंग आधार भारत ही नहीं, बेल्जियम, कनाडा, हंगरी, इंडोनेशिया, आयरलैंड, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका व चीन तक फैला है। इसलिए वह कच्चे माल वगैरह जुटाने की तंत्र दुरुस्त कर रही है। लेकिन लाभप्रदता पर इस पुनर्गठन का असर दिखने में कई तिमाहियां लग सकती हैं।

दिसंबर तिमाही यकीकन कंपनी के लिए थोड़ी बेहतर रह सकती है क्योंकि उसका आधे से ज्यादा धंधा विदेश से आता है और वह इस समय शुद्ध निर्यातक है। इसलिए रुपए की कमजोरी का फायदा उसे मिल जाएगा। लेकिन इससे भी उसका संकट कम नहीं होनेवाला। विश्लेषकों ने इस साल और अगले साल में उसके लाभार्जन का अनुमान पहले से 30-40 फीसदी घटा दिया है। यूं तो कंपनी पर ऋण का बोझ ज्यादा नहीं है। लेकिन प्रवर्तकों ने कंपनी की इक्विटी में अपने हिस्से का 5.5 फीसदी भाग (कंपनी की कुल इक्विटी का 2.10 फीसदी) गिरवी रखा हुआ है।

पिछले साल भर के दौरान कंपनी में प्रवर्तकों ने अपना हिस्सा बढ़ाया है, जबकि एफआईआई ने घटाया और डीआईआई ने थोड़ा-सा बढ़ाया है। साल भर पहले कंपनी की 128.30 करोड़ रुपए की इक्विटी में प्रवर्तकों का हिस्सा 40.92 फीसदी, एफआईआई का 20.36 फीसदी और डीआईआई का 22.22 फीसदी था। अभी प्रवर्तकों का हिस्सा 41.69 फीसदी, एफआईआई का 15.72 फीसदी और डीआईआई का 22.34 फीसदी है। अभी कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 9.90 रुपए है और उसका शेयर 14.45 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। इन थोड़ी-सी सूचनाओं में बहुत सारी सूचनाएं जोड़कर आप निवेश का फैसला कर सकते हैं। लेकिन मुझे कोई कहे तो मैं फिलहाल थापर समूह की इस कंपनी पर दांव नहीं लगाऊंगा।

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