कंपनियों के नाम से खुद टेंडर भरते हैं ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों के बाबू

देश की तमाम ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों में सालाना खरीद के टेंडरों में भयंकर पक्षपात व धांधली होती है। यहां तक कि अफसरों व बाबुओ ने तमाम फर्जी कंपनियां बना रखी हैं जिनके नाम ही ज्यादातर टेंडर जारी किए जाते हैं। इन अफसरान की मेज के दराज में ही कंपनियों के लेटरहेड पड़े रहते हैं और वे बिना किसी शर्म के एक ही अंदाज में कई कंपनियों की तरफ से टेंडर भर देते हैं। यह बात ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों में टेंडरों की प्रक्रिया की जांच पर सीएजी की ताजा रिपोर्ट से उजागर होती है। रिपोर्ट के एनेक्सचर में ऐसे कई टेडरों का नमूना पेश किया गया है।

भारत के नियंत्रण व महालेखा निरीक्षक (सीएजी) की इस रिपोर्ट में ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार और अनियमितता का खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक जांच की गई 18 ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों में से केवल सात के पास पिछले तीन सालों में की गई खरीद के रिकॉर्ड हैं। बाकी 11 फैक्ट्रियों ने सीएजी की टीम को कोई हिसाब-किताब नहीं उपलब्ध कराया। सात फैक्ट्रियों के खातों से पता चलता है कि उन्होंने ओपन टेंडर इनक्वायरी (ओटीई) के जरिए मात्र 0.07 फीसदी से लेकर 1.91 फीसदी खरीद की है, जबकि मैटीरियल मैनेजमेंट एंड प्रोक्योरमेंट मैनुअल (एमएमपीएम) के मुताबिक 20 फीसदी खरीद ओटीई के जरिए और 80 फीसदी खरीद लिमिटेड टेंडर इनक्वायरी (एलटीई) के जरिए होनी चाहिए।

बता दें कि ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों में पूरी खरीद मोटे तौर पर तीन तरीकों से होती है। एक, लिमिटेड टेंडर इनक्वायरी (एलटीई) जो संबंधित फैक्ट्री के साथ पंजीकृत स्थापित व पुराने सप्लायरों को जारी की जाती है। दो, ओपन टेंडर इनक्वायरी (ओटीई) जिसमें पुराना-नया कोई भी सप्लायर भाग ले सकता है। यह असल में नए सप्लायरों को प्रोत्साहित करने के लिए है ताकि ऑर्डनेंस फैक्ट्री के पास खरीद के विकल्प बढ़ सकें। तीन, सिंगल टेंडर इनक्वायरी जो ऐसे विशेष सामानों के लिए जारी की जाती है जो बाजार में सहजता से उपलब्ध नहीं हैं।

लेकिन सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि ऑर्डनेंस फैक्ट्रियां पुराने सप्लायरों से ही एलटीई के जरिए 98.19 फीसदी से लेकर 99.93 फीसदी तक माल खरीद रही हैं और नए सप्लायरों को कोई तवज्जो नहीं दे रही हैं। मसलन, कानपुर की ऑर्डनेंस पैराशूट फैक्ट्री ने 2006 से अब तक 21 नए सप्लायरों को पंजीकृत किया है। लेकिन सब कुछ जांच-परख लेने के बावजूद इनको अभी तक एक भी टेंडर जारी नहीं किया गया है।

और भी क्या-क्या खेल चलते हैं इनकी एक बानगी पेश करती है खमरिया की ऑर्डनेंस फैक्ट्री। इसने जनवरी 2007 में टाइम एंड इम्पैक्ट फ्यूज के 8777 सेट खरीदने के लिए ओपन टेंडर इनक्वायरी (ओटीई) निकाली। इस सामान की पिछली खरीद 4401.90 रुपए प्रति सेट की दर से हुई थी। लेकिन इस बार हैदराबाद की दो कंपनियों – प्रेसिजन कंपनी और मेक कंपोनेंट्स ने 7 पैसे का रेट लगाया, जबकि अधिकतम बोली 3700 रुपए प्रति सेट की थी। हैदराबाद की दोनों कंपनियां फैक्ट्री की पुरानी सप्लायर हैं, लेकिन मजे की बात यह है कि दोनों का फैक्स नंबर एक ही है। फैक्ट्री ने न्यूनतम बोली के आधार पर सितंबर 2008 में इन्हें 4289 और 4288 सेटों की खरीद के ऑर्डर दे दिए। बाद में पता चला कि टेंडर में यह बोली तो किसी दूसरे को घुसने से रोकने के लिए लगाई गई थी। जैसा कि होना ही था कि इन कंपनियों ने माल की कोई सप्लाई नहीं की। रक्षा मंत्रालय ने सौदे में शामिल अफसरों व कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई का भरोसा दिलाया है।

कानपुर की ऑर्डनेंस फैक्टरी को 51 एमएम बम की प्रूफ मशीन्ड बॉडी खरीदनी थी। उसने इन्हें मई 2004 से अगस्त 2008 के बीच आरके मशीन टूल्स और मुकेश इंडस्ट्रीज के जरिए लिमिटेड टेंडर इनक्वायरी (एलटीई) के जरिए 165 व 188 रुपए की दर से खरीदा, जबकि ओपन टेंडर (ओटीई) में लकी इंजीनियरिंग नाम की कंपनी इन्हें यही माल 77 व 124 रुपए की दर से दे रही थी। लेकिन माल पुरानी कंपनियों से खरीदकर फैक्ट्री को 6.17 करोड़ रुपए का चूना लगाया गया। सीएजी की ताजा ऑडिट रिपोर्ट के परफॉर्मेंस ऑडिट में डिफेंस सर्विसेज की रिपोर्ट नंबर-15 के पांचवें अध्याय में धाधली के ऐसे तमाम किस्से ब्योरेवार ढंग से पेश किए गए हैं।

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