सीबीआई को लोकपाल के तहत नहीं लाएंगे, प्रधानमंत्री का दो-टूक ऐलान

अभी तक केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) जैसी संस्थाएं ही खुद को लोकपाल के अधीन लाए जाने का विरोध कर रही थी। लेकिन अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी साफ कर दिया है कि लोकपाल का गठन हो जाने के बाद भी सीबीआई स्वतंत्र रूप से काम करती रहेगी।

प्रधानमंत्री ने शुक्रवार को राजधानी दिल्ली में सीबीआई और राज्यों के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के 18वें द्विवार्षिक सम्मेलन में कहा, “हमें आशा है कि आनेवाले महीनों में एक मजबूत व कारगर लोकपाल का गठन हो जाएगा। लोकपाल बन जाने के बाद इसका जो भी प्रारूप और काम होगा, हमारी प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को सुनिश्चित करने के हमारे प्रयासों में बहुत महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी।”

बता दें कि अण्णा की टीम व दूसरे सामाजिक कार्यकर्ता चाहते हैं कि लोकपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ शीर्ष निकाय के रूप में काम करे और इस काम में अब तक लगी सीबीआई व सीवीसी जैसी संस्थाओं को उसके तहत ले आया जाए। लेकिन वर्तमान सीवीसी प्रदीप कुमार अपनी शक्ति घट जाने के डर से इसका पुरजोर विरोध करते रहे हैं। सीबीआई के निदेशक ए पी सिंह ने भी शुक्रवार को मीडिया से बात करते हुए कहा, “लोकपाल का एक ड्राफ्ट बिल सीबीआई की भ्रष्टाचार-निरोधक शाखा को लोकपाल के अधीन लाने की बात करता है। लेकिन ऐसा करना न तो व्यावहारिक है और न ही किया जाना चाहिए। भ्रष्टाचार से लड़ने की प्रणाली को मजबूत करने के किसी भी प्रयास में सीबीआई का स्वतंत्र रहना जरूरी है।”

हालांकि टीम अण्णा के सदस्य अरविंद केजरीवाल का कहना है कि उनकी जानकारी के मुताबिक सीबीआई ने संसद की स्थाई समिति को जो प्रस्ताव सौंपा है, उसमें सरकार से पूरी तरह स्वतंत्र किए जाने और लोकपाल के तहत लाए जाने की बात कही गई है। उनकी राय है कि सीबीआई के भ्रष्टाचार-निरोधक शाखा को लोकपाल में मिलाने के बजाय पूरी सीबीआई को लोकपाल के अधीन लाया जाए।

खैर, अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साफ कर दिया कि सरकार सीबीआई पर अपना नियंत्रण छोड़ने को तैयार नहीं है और उसे लोकपाल के दायरे से बाहर ही रखा जाएगा। प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की पीठ थपथपाते हुए कहा कि जांच एजेंसियों को सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ जांच की मंजूरी देने के लिए तीन महीने की समयसीमा बनाने का फैसला सैद्धांतिक तौर पर कर लिया गया है। यह समयसीमा सीबीआई के अनुरोध पर भी लागू होगी।

उन्होंने कहा, “भ्रष्‍टाचार से निपटने के लिए सबसे बेहतर विकल्‍प है कि ऐसा करने के मौके ही कम कर दिए जाएं। अगर सरकारी कर्मचारियों की जवाबदेही और सरकार के फैसलों में पारदर्शिता है तो सार्वजनिक कार्यों में गैर-कानूनी निजी लाभ के खिलाफ शक्ति-संतुलन बढ़ाया जा सकता है। सार्वजनिक जीवन में ऐसी पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए हमने छह साल पहले एक मजबूत साधन के तौर पर सूचना का अधिकार अधिनियम बनाया था। हर साल हजारों करोड़ रूपये के सरकारी अनुबंधों में होने वाली अनियमितताओं को न्‍यूनतम करने के लिए मंत्री समूह एक सार्वजनिक खरीद कानून के मुद्दे पर ही विचार कर रहा है। मुझे उम्‍मीद है, अगले कुछ महीनों में इस तरह के कानून पर संसद में हम एक विधेयक को पेश करने में सक्षम होंगे।”

उन्होंने बताया कि भारत ने जून 2011 में भ्रष्‍टाचार के खिलाफ संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ सम्‍मेलन में भी अपनी पुष्टि कर दी है। इससे भ्रष्‍टाचार-निरोधक प्रयासों और भ्रष्‍टाचार के सीमापार मामलों में अंतरराष्‍ट्रीय सहयोग में मजबूती आएगी। लेकिन प्रधानमंत्री ने माना कि अदालतों के लंबित मामले लोगों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। इसके लिए सरकार मामलों की तवरित सुनवाई के लिए सीबीआई की 71 विशेष अदालतों के लिए मंजूरी प्रदान कर चुकी है। इनमें से अधिकांश अदालतों में कामकाज शुरू हो चुका है।

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