प्रधानमंत्री ने अपने पत्र में दावा किया है कि उनकी सरकार ने हर नीति व निर्णय के ज़रिए गरीबों, किसानों, युवाओं व महिलाओं के जीवनस्तर को सुधारने और उन्हें सशक्त बनाने के ईमानदार प्रयास किए हैं। सरकार की तरफ से नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर, सुब्रह्मण्यम ने कहा है कि देश में गरीबी आबादी के 5% तक सिमट गई है। लेकिन फिर ऐसा क्यों है कि हमारे 81.35 करोड़ या 58.10% लोग सरकार से हर महीने मुफ्तऔरऔर भी

आगामी लोकसभा के चुनावों की तारीख घोषित हो गई। इसी के साथ देश लोकतंत्र के महोत्सव की तैयारी में जुट गया है। तारीखों के ऐलान के ठीक एक दिन पहले दस सालों से देश के प्रधानमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने अपने हस्ताक्षर से सभी देशवासियों के नाम एक पत्र जारी किया है। यह पत्र निश्चित रूप से आपके भी ह्वॉट्स-ऐप नंबर पर आया होगा। सबसे पहला सवाल तो यही कि हम सभी का ह्वॉट्स-ऐप नंबर प्रधानमंत्री केऔरऔर भी

मुठ्ठी भर खासजन सरकारी कृपा और दलाली से फलते-फूलते ही जा रहे हैं, जबकि करोड़ों आमजनों की हालत पतली होती जा रही है। पिछले कुछ सालों में एक तरफ उन पर ऋण का बोझ बढ़ता गया। दूसरी तरफ उनकी खपत घटती चली गई। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 में देश के आम परिवारों पर कुल ₹9 लाख करोड़ का ऋण था। यह बोझ साल भर बाद ही 2022-23 में 76% बढ़कर ₹15.8 लाखऔरऔर भी

विश्व अर्थव्यवस्था ठहरी पड़ी है तो निर्यात की मांग नहीं निकल रही। देश के भीतर निजी खपत ठीक से नहीं बढ़ रही। ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर-दिसंबर 2023 की तिमाही में यह 1.8% बढ़ी है, जबकि अप्रैल से दिसंबर 2023 तक के नौ महीनों में 3.5% बढ़ी है। ऐसे में दिसंबर तिमाही में जीडीपी की 8.4% बढ़त को लेकर कोई चाटेगा क्या? निजी क्षेत्र इसलिए भी नया निवेश नहीं कर रहा क्योंकि उसके पास मांग से कहींऔरऔर भी

सरकार अपना बेहताशा खर्च पूरा करने के लिए आमजन से वसूली के साथ-साथ जमकर ऋण लेती रही है। पर,  कॉरपोरेट क्षेत्र को रियायत व प्रोत्साहन यह कहकर देती रही है कि इससे वो नया निवेश करने को प्रेरित होगा, जिससे रोज़गार के नए-नए अवसर पैदा होंगे। ज़मीनी हकीकत क्या है? सितंबर 2022 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रोत्साहनों की चर्चा के बाद निजी क्षेत्र की तुलना हनुमान से करते हुए कहा था – का चुप साधिऔरऔर भी

सरकार की कोशिश है कि खर्च करनेवाले व्यक्तियों से जीएसटी और एक्साइज़ व कस्टम ड्यूटी के साथ ही अधिकतम इनकम टैक्स वसूल लिया जाए, जबकि लाभ कमानेवाली कंपनियों को टैक्स में ज्यादा से ज्यादा छूट दी जाए। इसके ऊपर कॉरपोरेट क्षेत्र को मिल रही ऋण-माफी और पीएलआई जैसी स्कीमों में दी जा रही सब्सिडी अलग से। लाखों करोड़ रुपए के ऐसे ‘प्रोत्साहन’ से आखिर क्या सचमुच देश का कोई भला हो रहा है, क्षमता विस्तार और नएऔरऔर भी

इनकम टैक्स भले ही प्रत्यक्ष टैक्स हो। लेकिन इसे साल में ₹2.5 लाख से ज्यादा कमानेवाला हर देशवासी देता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हमारी प्रति व्यक्ति आय वित्त वर्ष 2022-23 में ₹99,404 तक पहुंची थी और अब ताज़ा अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2023-24 में ₹1,06,134 रह सकती है। इसके ढाई गुना से ज्यादा कमाकर इनकम टैक्स देने वालों की संख्या 7.78 करोड़ हो चुकी है, जिसमें से 7.65 करोड़ बाकायदा टैक्स रिटर्न दाखिल करते हैं।औरऔर भी

सगाई पिछले साल जनवरी में। शादी इस साल जुलाई में। लेकिन इसके बीच तीन दिन के शादी-पूर्व धूम-धड़ाके पर ₹1500 करोड़ से ज्यादा उड़ा डाले। यह अनंत विलास कथा उस भारत में हो रही है जहां 81.35 करोड़ लोग प्रतिमाह 5 किलो मुफ्त राशन के मोहताज़ हैं, जहां पिछले दस साल में अरबों डॉलर की दौलत रखनेवाले अमीरों की संख्या 11 गुना बढ़ गई और जहां 21 खरबपतियों के पास 70 करोड़ भारतीयों की कुल दौलत सेऔरऔर भी

चुनावी लोकतंत्र की सारी राजनीति परसेप्शन या माहौल बनाने पर चलती है। रोज़ी-रोटी चलाने के बोझ से दबे करोड़ों मतदाताओं के पास फुरसत नहीं कि राजनीतिक पार्टियों की कथनी और करनी के मर्म को समझकर वोट डालें। उनकी याददाश्त छोटी होती है और वे माहौल के हिसाब से बहते व वोट देते हैं। शेयर बाज़ार का भी यही हाल है। राजनीति व शेयर बाज़ार, दोनों ही जगहों पर छोटे समय में सत्य नहीं चलता। भाव या सत्ताऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीसरी बार सत्ता में वापसी का इतना विश्वास है कि कैबिनेट बैठक में नई सरकार के पहले 100 दिनों का एक्शन-प्लान तय कर डाला। बैठक में प्रमुख मंत्रालयों के सचिवों ने बाकायदा प्रजेंटेशन रखा कि 2047 में विकसित भारत के विज़न के लिए अगले पांच सालों में क्या-क्या किया जा सकता है। इसमें गरीबी का खात्मा, हर युवा को हुनरमंद बनाना और कल्याण योजनाओं को पूर्णाहुति तक पहुंचाना शामिल है। वैसे यह कवायतऔरऔर भी