देश के गृहमंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जोड़ीदार अमित शाह ने 8 दिसंबर को किसान नेताओं के साथ हुई बैठक में कहा था कि अगर सरकार सभी घोषित 23 फसलों को एमएसपी पर खरीदने लग जाए तो उसे हर साल 17 लाख करोड़ रुपए देने पड़ेंगे। अगर ऐसी बात है तो क्या एमएसपी केवल दिखाने के लिए है, देने के लिए नहीं। हाथी के दांत दिखाने के और, खाने के और? सवाल उठता है कि आखिरऔरऔर भी

भारतीय रिजर्व बैंक और उसके गवर्नर शक्तिकांत दास ने अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए कृषि क्षेत्र से बड़ी उम्मीद लगा रखी है। दास का कहना है, “कृषि व संबंधित गतिविधियां ग्रामीण मांग को आवेग देकर हमारी अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार का नेतृत्व कर सकती हैं।” सही बात है। नेतृत्व ज़रूर कर सकती हैं। लेकिन अर्थव्यवस्था का पूरा उद्धार नहीं कर सकतीं क्योंकि हमारे जीडीपी में कृषि, वानिकी व मत्स्य पालन जैसी संबंधित गतिविधियो का योगदान घटते-घटते 14 प्रतिशतऔरऔर भी

आज नगरों-महानगरों की चौहद्दियों से लेकर राज्यों की सीमाओं और गांवों के ब्लॉक व पाठशालाओं तक लाखों मजदूर अटके पड़े हैं। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल व पंजाब तक से प्रवासी मजदूर अपने गांवों को कूच कर चुके हैं। जो नहीं निकल पाए हैं, वे माकूल मौके व साधन के इंतज़ार में हैं। उन्हें अपने मुलुक या वतन पहुंचने की बेचैनी है। एक बार गांव पहुंच गए तो शायद कोरोना का कहर खत्म होने के बाद भी वापस शहरों काऔरऔर भी

भारत ही नहीं, पूरी दुनिया की अधिकतर आबादी अभी या तो लॉकडाउन में है या काफी रोकटोक के साथ काम पर जा रही है। कोरोना वायरस का प्रकोप समाप्त करने की रणनीति यह नहीं है, यह बात सभी जानते हैं। इसका मकसद बीमारी के विस्फोट का दायरा घटाने और बचाव का ढांचा खड़ा करने के लिए समय हासिल करने तक सीमित है। फ्लू के वायरस की तरह यह गर्मी आने के साथ नरम पड़ जाएगा, यह समझऔरऔर भी

पिसान अवधी का शब्द है जिसका अर्थ है आटा। वाकई, हमारी केंद्र सरकार ने दाल पर ऐसा रवैया अपना रखा है जिससे किसानों का पिसान निकल गया है। इससे यही लगता है कि या तो वह घनघोर किसान विरोधी है या खेती-किसानों के मामले में उसके कर्ताधर्ता भयंकर मूर्ख है। वैसे, शहरी लोग बड़े खुश हैं कि अरहर या तुअर की जो दाल साल भर पहले 180-200 रुपए किलो बिक रही थी, वह अब 60-70 रुपए किलोऔरऔर भी

आर्थिक विवेक कहता है कि किसानों की कर्जमाफी गलत है। रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल से लेकर देश के सबसे बड़े बैंक, एसबीआई की चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य तक इसका विरोध कर चुकी हैं। लेकिन राजनीतिक विवेक कहता है कि चुनावी वादा फटाफट पूरा कर दिया जाए। इसलिए अगर योगी सरकार ने भाजपा के लोक संकल्प पत्र के वादे को पूरा करते हुए पहली कैबिनेट बैठक में ही पांच एकड़ तक की जोतवाले 94 लाख लघु वऔरऔर भी

शरद पवार जैसे बहुरंगी कलाकार की जगह मई 2014 में जब राधा मोहन सिंह को केंद्रीय कृषि मंत्री बनाया गया तो आम धारणा यही बनी कि ज़मीन से जुड़े नेता होने के नाते वे देश की कृषि अर्थव्यवस्था ही नहीं, किसानों के व्यापक कल्याण का भी काम करेंगे। संयोग से उससे करीब सवा साल बाद मंत्रालय का नाम भी बदल कर कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय कर दिया गया। लेकिन उसके बमुश्किल महीने भर बाद राधा मोहनऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ को मंजूरी दे दी। यह योजना इसी साल खरीफ सीजन से लागू हो जाएगी। इस फैसले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, “यह एक ऐतिहासिक दिन है। मेरा विश्वास है कि किसानों के कल्याण से प्रेरित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन लाएगी।” सरकार की तरफ से जारी सूचना में कहा गया है कि किसानों केऔरऔर भी

इंद्र देव लगता है इस बार भी एनडीए सरकार पर मेहरबानी नहीं करने जा रहे हैं। बुधवार को मौसम विभाग की तरफ से जारी दक्षिण पश्चिम मानसून के दीर्घकालीन पूर्वानुमानों से यही संकेत मिलता है कि इस साल बारिश सामान्‍य से कुछ कम रहने की आशंका है। पिछले साल मौसम विभाग का शुरुआती अनुमान जुलाई-सितंबर के दौरान 95 प्रतिशत बारिश का था। बाद में इसे घटाकर 87 प्रतिशत किया गया। अंततः वास्तविक बारिश सामान्य की 88 प्रतिशतऔरऔर भी

आमतौर पर ग्वार की खेती करनेवाले किसान मार्च तक अपनी सारी फसल बाज़ार में उतार देते हैं। लेकिन इस साल उन्होंने खींच-खांच कर करीब डेढ़ महीने और इंतज़ार किया। जैसे ही उनकी फसल खलिहान से निकलकर बाज़ार में पहुंच गई, सरकार ने ग्वार और ग्वार गम की फ्यूचर ट्रेडिंग पर तेरह महीने पहले, मार्च 2012 से लगाया गया बैन उठा लिया। फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) के फैसले के बाद एमसीएक्स और एनसीडीएक्स ने मंगलवार, 14 मई 2013औरऔर भी