हिंदुस्तान ज़िंक के चक्र का चक्कर

हिंदुस्तान ज़िंक पहले साल 2003 तक भारत सरकार की कंपनी हुआ करती थी। अब कबाड़ी से अरबपति अनिल अग्रवाल के वेदांता समूह की कंपनी है। कंपनी की 845.06 करोड़ रुपए की इक्विटी में वेदांता समूह की हिस्सेदारी 64.92 फीसदी है, जबकि भारत सरकार के पास अब भी उसके 29.54 फीसदी शेयर हैं। फ्लोटिंग स्टॉक कम होने के बावजूद उसका शेयर बहुत ज्यादा ऊपर-नीचे नहीं होता। 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 155.25 रुपए (21 अप्रैल 2011) और न्यूनतम स्तर 108.62 रुपए (26 नवंबर 2010) का है। जाहिर है, इसका शेयर बड़े संयत भाव से चलता है।

कल उसका दो रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 500188) में 2.11 फीसदी बढ़कर 121.25 रुपए और एनएसई (कोड – HINDZINC) में 2.32 फीसदी बढ़कर 121.40 रुपए पर बंद हुआ है। भाव उच्चतम व न्यूनतम स्तर के औसत 131.94 रुपए में न्यूनतम स्तर की तरफ झुका हुआ है। कल ही कंपनी ने सितंबर 2011 की तिमाही के नतीजे भी घोषित किए हैं। बिक्री साल भर पहले की अपेक्षा 19.91 फीसदी बढ़कर 2593.49 करोड़ रुपए हो गई है तो शुद्ध लाभ 41.74 फीसदी बढ़कर 1344.69 करोड़ रुपए हो गया है। क्या धंधा है! 51 फीसदी का शुद्ध लाभ मार्जिन!!

कंपनी ज़िंक (जस्ता), लेड (सीसा) व चांदी के खनन व स्मेल्टिंग का काम करती है। उसकी आय का 90 फीसदी हिस्सा जस्ते व सीसे से आता है, जबकि करीब 10 फीसदी चांदी से। सितंबर 2011 की तिमाही में उसका रिफाइंड चांदी उत्पादन 12 फीसदी बढ़कर 49,274 किलोग्राम हो गया है, जबकि चांदी से हुई उसकी आय 120.67 फीसदी बढ़कर 239.39 करोड़ रुपए हो गई। इस दौरान उसका रिफाइंड जस्ते व सीसे का उत्पादन 5 फीसदी बढ़कर 2,01,821 टन हो गया है, जबकि इनसे हुई आय 13.9 फीसदी बढ़कर 2320.31 करोड़ रुपए हो गई है।

जिंसों के धंधे में लगी कंपनियों में निवेश करते वक्त हमेशा तीन बातें ध्यान में रखना चाहिए। एक, उनके शेयरों के भाव हमेशा संबंधित जिंस के भाव से जुड़कर चलते हैं। दो, जिंस के भाव के उतार-चढ़ाव से कई गुना ज्यादा उतार-चढ़ाव कंपनी के शेयरों में आता है। मसलन, जिंस का भाव 5 फीसदी बढ़ा-घटा है तो कंपनी का शेयर 15 फीसदी ऊपर-नीचे हो सकता है। तीन, ऐसे शेयर हमेशा चक्र में चलते हैं। बढ़ने के बाद गिरना और गिरने के बाद फिर बढ़ना। इसलिए इनमें बहुत ज्यादा लांग टर्म नहीं चलता। चक्र के हिसाब से इन्हें बेचते-खरीदते रहना चाहिए।

हिंदुस्तान ज़िंक की बात करें तो उसके मुख्य उत्पाद ज़िंक व लेड की कीमतें अमेरिका से लेकर यूरोप पर छाए संकट के बादलों के चलते सितंबर तिमाही में ही 24 फीसदी गिर चुकी हैं। अक्टूबर में अभी तक लेड के भाव 5 फीसदी गिरे हैं, जबकि ज़िंक करीब-करीब सपाट है। कंपनी प्रबंधन का मानना है कि मांग व सप्लाई के संतुलन को देखते हुए ज़िंक के दाम 1900 डॉलर (93,480 रुपए) प्रति टन से करीब 16 फीसदी बढ़कर 2200 डॉलर (1,08,240 रुपए) हो जाएंगे। इस लिहाज से उसके शेयरों को 20 फीसदी तो बढ़ ही जाना चाहिए। लेकिन जिस तरह वैश्विक संकट सघन होता जा रहा है, उसमें दाम और नीचे आ गए तो कंपनी की आय से लेकर उसका शेयर नीचे आ सकता है।

वैसे, एचडीएफसी सिक्यूरिटीज ने इसमें 120 रुपए को स्थिर स्तर माना है। उसका आकलन है कि ज़िंक के दाम 11 से 13 फीसदी और नीचे आ सकते हैं, जबकि चांदी के भाव 21 से 67 फीसदी बढ़ सकते हैं। कंपनी की कुल आय इस साल घट सकती है। फिर, नया खनन विधेयक कहता है कि बेस मेटल से जुड़ी कंपनियों को अपनी रॉयल्टी के बराबर हिस्सा स्थानीय लोगों के विकास के लिए देना होगा। यानी, कंपनी का रॉयल्टी खर्च आगे दोगुना हो सकता है। शेयर का मूल्यांकन अभी पिछले चक्र के ऊपरी औसत से 19 फीसदी ज्यादा चल रहा है। इसलिए हो सकता है कि यह नीचे आ जाए।

हमारा मानना है कि हिंदुस्तान ज़िक का शेयर इस समय मई 2010 के बाद सबसे कम पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। मई 2010 में इसका न्यूनतम पी/ई अनुपात 8.80 था। अभी 8.65 चल रहा है। इस आधार पर कि उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 14.02 रुपए है। इसलिए इस समय इसमें निवेश किया जा सकता है। असल में कंपनी के पास अभी 16,296 करोड़ रुपए का कैश व निवेश है। वह इस कैश को खनन के विस्तार पर लगाना चाहती है ताकि इससे कुछ अतिरक्त कमाई हो सके। हालांकि इसमें एक शेयरधारक के रूप में सरकार की अनुमति अड़चन बन सकती है क्योंकि उसके पास अब भी कंपनी के 29.54 फीसदी शेयर हैं।

एफआईआई के पास कंपनी के 1.31 फीसदी और डीआईआई के पास 1.75 फीसदी शेयर हैं। इस तरह सही मायनों में कहें तो आम पब्लिक के पास कंपनी के केवल 2.48 फीसदी शेयर ही हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 60,705 है। इनमें से 57,778 यानी 95 फीसदी एक लाख से कम निवेश वाले छोटे शेयरधारक हैं जिनके पास कंपनी के कुल 1.02 फीसदी शेयर हैं। अंत में एक बात और। कंपनी ने चालू साल के लिए दो रुपए के शेयर पर 1.50 रुपए यानी 75 फीसदी का अंतरिम लाभांश घोषित किया है। इस तरह वह अपने कैश में से 634 करोड़ रुपए शेयरधारकों को बांट देगी। हालांकि इसका अधिकतम हिस्सा वेदांता समूह और भारत सरकार को ही मिलना है। लेकिन कंपनी ने तय किया है कि वह आगे शेयर के अंकित मूल्य के अनुपात के रूप में नहीं, बल्कि अपने शुद्ध लाभ के अनुपात के रूप में लाभांश दिया करेगी। ऐसा होने पर सचमुच डिविडेंड सही मायनों में लाभ-अंश बन जाएगा।

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