9-10 मार्च को सावधान! बाकी ठीक

बीएसई सेंसेक्स 623 अंक उठा था तो हिचकी का आना लाजिमी था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम की चिंता में बाजार 128 अंक गिरकर खुला। फिर 157 अंक ऊपर चढ़ गया। और, फिर चौरस हो गया। इस बीच बाजार के स्वघोषित वित्त मंत्री (एनालिस्ट) बजट की मीनमेख निकालने में जुटे हैं। खासकर राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के बारे में उनका कहना है कि इसे हासिल नहीं किया जा सकता।

ऐसी ही गलती सीएलएसए ने 2003 में की थी जब उसने कुछ ऐसी ही बातों के आधार पर भारतीय बाजार में बेचने की रिपोर्ट जारी की थी। उसने कहा था कि बजट के कर राजस्व में प्राप्तियां बढ़ा-चढ़ा कर दिखाई गई हैं, इसलिए राजकोषीय घाटे को तय सीमा में नहीं रखा जा पाएगा। अगले दिन बाजार खुला तो सेंसेक्स 5150 से गिरकर 4900 पर आ गया। लेकिन मेरा यकीन मानिए, वही 4900 सेंसेक्स का अब तक का सबसे निचला पायदान बन चुका है। बाजार ने फिर कभी उस स्तर की तरफ पलटकर झांका तक नहीं।

इसी तरह साल 2008 में कोटक सिक्यूरिटीज व शंकर शर्मा ने ऑन-रिकॉर्ड कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था (जीडीपी) की विकास दर घटकर 5 फीसदी व 3 फीसदी के नीचे चली जाएगी और सेंसेक्स 6000 तक डूब जाएगा। सेंसेक्स गिरकर 8300 तक पहुंचा तो जरूर। लेकिन वो स्तर बीएसई के स्क्रीन पर दोबारा कभी नहीं आया। वही शंकर शर्मा अब सेंसेक्स में 14,000 का लक्ष्य बता रहे हैं। उनके पुराने लक्ष्यों की जो सद्गति हुई है, उसे देखते हुए लगता है कि बाजार का हाल आगे अच्छा ही रहेगा।

मेरे कहने का मतलब बड़ा साफ है। आप खुद के विशेषज्ञ होने का दावा कर सकते हैं। लेकिन कभी भी अर्थव्यवस्था के बारे वित्त मंत्री जितना नहीं जान सकते। वित्त मंत्रालय व आर्थिक सलाहकारों समेत पूरा सरकारी तंत्र उनके लिए काम कर रहा होता है, जबकि आप (एनालिस्ट/विशेषज्ञ) तो चंद हजार रुपयों के लिए अपनी जुबान और दिमाग के छल्ले फेंकते रहते हैं।

मै मानता हूं कि वित्त मंत्री ने अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश रख छोड़ी है। इंफ्रास्ट्रक्चर की मद में डाले गए 2.14 लाख करोड़ रुपए या तो जीडीपी की विकास दर को 9.5 फीसदी पर पहुंचा देंगे या खर्च नहीं किए गए तो राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.2 फीसदी पर आ जाएगा। मुझे नहीं लगता कि भारत सुपरिभाषित मानकों व प्रणालियों के अभाव में अभी इतनी विशाल राशि खर्च करने लायक स्थिति में है। आज की तारीख में भी हम यही दावा करते हैं कि सरकारी खर्च के हर रुपए में से 50 पैसा नेताओं की जेब में चला जाता है। इस समय भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को लेकर जिस तरह का बवंडर मचा हुआ है, उसमें किसी एक वित्त वर्ष में इतनी बड़ी रकम का खर्च हो पाना असंभव है। इतना बड़ा खर्च आर्थिक विकास को लेकर कुछ चमत्कार कर सके, इसके लिए मुकम्मल व्यवस्था बनानी पड़ेगी।

कृपया ध्यान दें कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार मात्र सात सालों में एक लाख करोड़ डॉलर से दोगुना होकर दो लाख करोड़ डॉलर पर पहुंच गया है। इसने एक ऐसा आधार पैदा कर दिया है जिसे दुनिया का कोई भी निवेशक अनदेखा नहीं कर सकता। अपनी रिपोर्टों में वे दिखा देते हैं कि भारत में ये कमजोरी है, वो कमजोरी हैं, लेकिन इसके फौरन बाद सस्ते में खरीदने की जुगत में लग जाते हैं। वे जानते हैं कि भारत में बांटो और राज करो की नीति वे अब भी चला सकते हैं। भारतीय बाजार पर उनके दबदबे को खत्म करने के लिए हमें क्रांतिकारी उपायों की दरकार है। इसके बाद यह दुनिया चीन की तरह ही हमारे भी कदमों में झुक जाएगी।

खैर, ये सब बाद की बातें हैं। अभी तो ट्रेडर शॉर्ट सौदे करने में जुटे हुए हैं। वे ऐसा करते ही रहेंगे क्योंकि उनका मानना है कि यह महज तात्कालिक राहत की रैली है और वे शॉर्ट सेलिंग से नोट बना सकते हैं। उनके लिए मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं। 9 मार्च और 10 मार्च को सावधान रहें, संभल कर रहें। अगर इन दो दिनों में कुछ खास नहीं होता तो बहुत उम्मीद है कि निफ्टी 5800 तक चला जाएगा।

जो इंसान सही तरीके से जीता है, वो सही सोचता है। उसकी चुप्पी भी दूसरों के शब्दों से ज्यादा ताकतवर होती है।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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