निर्भय निर्गुण

भय व भ्रमों के चलते हम चीजों को आधा-अधूरा या आड़ा-तिरछा देखते हैं। सच देखने के लिए हमें निर्भय होना पड़ेगा और इसके लिए समाज व परंपरा से मिली सुरक्षा को तोड़कर असुरक्षित हो जाना जरूरी है।

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